भारतीय कृषि के सम्मुख चुनौतियां-2

भारतीय कृषि के सम्मुख चुनौतियां-2


पुरुषोत्तम शर्मा


गतांक से आगे........


भारत में जोतों का आकार 


भारत में 67 प्रतिशत किसानों की जोत का आकार 1 हैक्टेयर से कम है. जबकि 18 प्रतिशत के पास 1 से 2 हैक्टेयर जमीन है. मात्र 2 प्रतिशत किसानों के पास ही 10 हैक्टेयर से ज्यादा भूमि है. 0.7 प्रतिशत किसानों के पास कुल खेती की जमीन का 10.5 प्रतिशत हिस्सा है. बटवारे के बाद सीमांत व छोटी जोतों की संख्या बढ़ रही है. जबकि भूमि के कुछ हाथों में केंद्रीकरण की नीति के कारण बड़ी जोतों के आकार में बढ़ैतरी हो रही है. भारत की 45 प्रतिशत ग्रामीण आबादी भूमिहीन है जिसमें से कुछ के पास नाम मात्र की जमीन है. भूमिहीनों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. 2001 से 2011 के बीच 90 लाख किसान खेती से बाहर हुए और खेत मजदूरों की संख्या में 35 प्रतिशत की बृद्धि दर्ज की गई.


भारत में कृषि की विकास दर


यूपीए एक के शासन में भारत की कृषि विकास दर 3.1 प्रतिशत और यूपीए दो के शासन में 4.3 प्रतिशत थी. भारत के किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने का दम्भ भरने वाले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के शासन के अंतिम वर्ष भारत की कृषि विकास दर 2.7 प्रतिशत पर आ गई है. प्रधान मंत्री मोदी के वायदे को देखें तो अगले तीन वर्षों में भारत की कृषि विकार दर को 15 प्रतिशत रहना होगा जो मोदी सरकार के रिकार्ड से संभव ही नहीं है.


भारत का वर्तमान कृषि संकट- बढ़ती किसान आत्महत्याएं           


कामरेडों ! आज जब हम यहाँ मिल रहे हैं, भारतीय कृषि अपने अब तक के सबसे बड़े संकट के दौर से गुजर रही है. इस कृषि संकट ने हमारे पूरे ग्रामीण समाज को अपनी आगोश में ले लिया है. जिसके कारण भारत की ग्रामीण संरचना में भारी बदलाव आ गया है. पिछले 13 वर्षों में कर्ज में डूबे साढे तीन लाख से ज्यादा भारतीय किसानों ने आत्महत्या कर ली है. जबकि पिछले 2 वर्षों से भारत सरकार ने किसानों की आत्महत्या के आंकड़ों को जारी करने से राष्ट्रीय अपराध शाखा को रोक दिया है. राष्ट्रीय अपराध व्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 1997 से 2012 के बीच भारत में 2,50,000 किसानों ने आत्महत्या की. मोदी राज में इन आंकड़ों को जारी करने पर रोक से पूर्व ही 48,000 किसान आत्महत्याएं कर चुके थे. भारत का पंजाब प्रान्त जो हरित क्रांति के बाद पूंजीवादी कृषि के विकास का माडल बना, वहाँ भी लगभग 16,000 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. इस दौर में किसान आत्महत्याओं की घटनाएं और बढ़ी हैं तथा इस संकट ने अब तक अछूते राज्यों व क्षेत्रों में भी दस्तक दे दी है.


 


क्रमशः जारी ....