भीड़ की मानसिकता के खिलाफ सत्य के लिए लड़ने का जुनून है गांधी


"आज के दौर में गांधी" विषय पर दिल्ली में एआईपीएफ की गोष्ठी


पुरुषोत्तम शर्मा


दिल्ली के गांधी शान्ति प्रतिष्ठान में 5 अक्टूबर 2019 को आयोजित “आज के दौर में गांधी” विषयक गोष्ठी में प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रो.अरुण कुमार, रंगकर्मी प्रो. शमशुल इस्लाम और लेखक सुभाष गताड़े को सुनना काफी सुखद था. कार्यक्रम का आयोजन 'आल इंडिया पीपुल्स फोरम' (एआइपीएफ़) की ओर से किया गया गया था. कार्यक्रम की अध्यक्षता समाजवादी नेता और एआईपीएफ़ के राष्ट्रीय पार्षद शम्भू सरण श्रीवास्तव ने की और संचालन एआईपीएफ के राष्ट्रीय संयोजक गिरिजा पाठक ने किया. दिल्ली की संगवारी सांस्कृतिक टीम ने क्रांतिकारी गीतों के जरिये कार्यक्रम को और भी सार्थक बना दिया. कार्यक्रम में बड़ी संख्या में राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संगठनों से जुड़े लोगों के अलावा छात्रों-बुद्धिजीवियों ने भी हिस्सा लिया.


गांधी विकेन्द्रित व्यवस्था के पक्षधर थे - प्रो. अरुण कुमार, प्रख्यात अर्थशास्त्री


कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रो. अरुण कुमार ने कहा कि आज तकनीकि में आए बड़े बदलाव के कारण लोग गांधी और उनकी विचारधारा को अप्रसांगिक बताते हैं. पर आज देश में केंद्रीकृत होती व्यवस्था के विपरीत गांधी विकेन्द्रित व्यवस्था के पक्षधर थे, जिसे वे ग्राम स्वराज्य के साथ जोड़ते थे. गांधी का स्वदेशी का नारा विदेशी दासता के खिलाफ था. आज ट्रेड (व्यापार) का दौर है. जो व्यापार में आगे है वही दुनिया में आगे है. मालों के आयात और उच्च तकनीक के आयात ने हमारी अर्थव्यवस्था को तबाह किया है. इसने हमारी खेती और रोजगार को ख़त्म किया है. जबकि गांधी समाज के अंतिम व्यक्ति की बात करते थे. गांधी शिक्षा और ट्रस्टीशिप के माध्यम से सबकी बराबरी की बात करते थे.


उन्होंने कहा कि तकनीकि के विकास ने भारत और दुनिया के पैमाने पर भारी असमानता और बेरोजगारी को बढाया है. भारत में 9 परिवारों के पास 70 करोड़ परिवारों के बराबर सम्पति है. 1 प्रतिशत लोगों के पास देश की 50 प्रतिशत संपत्ति है. यह पूरी दुनिया में हो रहा है. अमेरिका में भी 1920 के बाद आज सबसे ज्यादा असमानता है. तकनीकी के विकास के बाद बिना ड्राइवर की टैक्सी चलने लगी हैं. आगे ट्रक, बस से लेकर रेल व जहाज भी बिना ड्राईवर/पाइलेट के चलेंगे. आने वाले समय में डॉक्टर, एकाउंटेंट और वकीलों का काम भी कम्प्यूटर से लिया जाएगा. तब अंदाजा लगाएं कि कितनी और किस स्तर की बेरोजगारी का सामना हम करने जा रहे हैं. मोदी सरकार ने बेरोजगारी व मंदी से निबटने के लिए दो माह में जो भी पैकेज दिए वो संगठित क्षेत्र को ही दिए. जबकि देश में संगठित क्षेत्र मात्र 6 प्रतिशत है. 94 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र को कोई राहत नहीं दी गयी है.


प्रो. अरुण कुमार ने कहा गांधी ऐसी तकनालाजी के खिलाफ थे जो रोजगार छीने और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए. इस लिए वे विकास के पश्चिमी माडल के खिलाफ थे. उनका ग्राम स्वराज का नारा उस समय पश्चिम में उभर रही केंद्रीकृत व्यवस्थाओं के विकल्प में एक विकेन्द्रित व्यवस्था का नारा था. गांधी व्यक्ति को समाज का हिस्सा मानते थे तथा बाजार और तकनीकि पर समाज का नियंत्रण चाहते थे. पर आज के बाजारीकरण का दर्शन इसे नहीं मानता है. आज बाजार के नियमों को सामाजिक जीवन पर लागू किया जा रहा है जबकि बाजार को पूंजीपति नियंत्रित करता है. जैसे लोकतंत्र में एक व्यक्ति एक वोट होता है, उसी तरह बाजार की जितने नोट उतने वोट की नीति होती है. इसी लिए सबसे अमीर अमेरिका दुनिया के बाजार पर हावी है.


उन्होंने कहा विश्व व्यापार संगठन के माध्यम से जो मुक्त व्यापार का रास्ता दुनिया में खुला है उसने दुनिया के लिए एक नया पैमाना तैयार किया है. विकसित और विकासशील व अविकसित देशों के लोगों के जीवन व उनके मूल्य तय किये गए हैं. इसके आधार पर ग्रीन तकनीकि या ई कचारा व प्लास्टिक कचरे का निष्पादन किया जा रहा है. विकसित राष्ट्रों के लोगों का जीवन व मूल्य ज्यादा लगा कर वहाँ के लिए ग्रीन तकनीकि का इस्तेमाल किया जा रहा है. जबकि विकासशील व अविकसित देशों के लोगों के जीवन व मूल्य को कम लगाकर वहां उनके जीवन को लीलने वाले ई कचरे, प्लास्टिक कचरे, प्रदूषित तकनालाजी की रिसाइकिंलिंग व प्रयोग को थोपा जा रहा है. इसके अनुकूल विश्व बैंक की नीतियों को बनाकर इन देशों को इसे लागू करने पर मजबूर किया जा रहा है.


प्रो. अरुण कुमार ने कहा आज की आर्थिक नीतियों में कर चोरी और स्मगलिंग के जरिये आमदनी बढ़ाना मुख्य उद्देश्य हो गया है. आज आदमी अच्छा या बुरा नहीं, आमदनी देखता है. बाजार की नीति ने मनुष्य को अब एक बड़ी मशीन का पुर्जा बना दिया है. उपभोगतावाद को बढाने के लिए प्रचार और प्रचार में सैक्स व हिंसा का इस्तेमाल किया जा रहा है. यह प्रचार एक ईमेज को बनाता है जिससे कोल्ड ड्रिक या कार भी हमारे स्टेटस में शामिल हो गया है. पूंजी और संसाधनों को एकत्र करना ही आदमी का स्टेटस हो गया है. इसके लिए उसे अराजनीतिक और असामाजिक बनाया जा रहा है. इंसान की ऐतिहासिक समझ मिटाई जा रही है. गांधी इस नकारात्मक प्रबृति की सख्त खिलाफत करते थे.


फासीवाद के हर हमले से गांधी को बचाने हम आगे आएँगे- प्रो.शमशुल इस्लाम


आज के फासीवादी दौर में गांधी पर हमले के समय गांधीवादी उन्हें बचाने नहीं आ रहे हैं. बल्कि इन हमलों के खिलाफ कम्युनिस्ट गांधी को बचाने सामने आ रहे है. यह इस लिए है कि गांधी के अनुयायियों ने जिस दिखावे के प्रजातंत्र का वायदा किया था, वह भी आज ख़त्म हो गया है. आज गांधी के हत्यारे रोज–रोज गांधी की हत्या कर रहे हैं, पर गांधी से अपनी तमाम राजनीतिक असहमतियों के बावजूद इस फासीवाद के दौर में हम भी रोज गांधी को बचाने सामने आएँगे. यह शब्द “ आज के दौर में गांधी” विषयक गोष्ठी में सांस्कृतिक कर्मी, लेखक प्रो. शमशुल इस्लाम ने कहे. उन्होंने कहा गांधी के विचारों से हमारे मतभेद वही हैं जो शहीदे आजम भगत सिंह और उनके साथियों के थे. गांधी आजादी की लड़ाई में हिंसा का विरोध इस लिए करते थे ताकि आजाद भारत में भी पूंजीवादी-सामन्ती सत्ता के खिलाफ कोई हथियार न उठाए.


उन्होंने कहा भारत में मनुस्मृति पर आधारित ब्राह्मणवाद असली फासीवाद है. यह परिवार में फासीवाद पैदा करता है. समाज में फासीवाद पैदा करता है. भारत में यह फासीवादी राजनीति की जमीन तैयार किए है. आज नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह फासीवाद नंगे रूप में सामने आ गया है. उन्होंने कहा जर्मनी और इटली के शासकों ने कम्युनिस्टों को रोकने के लिए ही फासीवाद को बढ़ावा दिया. उस समय सोवियत संघ के बाद कम्युनिस्टों की सबसे बड़ी संख्या इन्हीं देशों में थी. आज भारत में गांधीवादियों के राजनीतिक अवसान के बाद कम्युनिस्ट ही इन फासीवादी ताकतों की निगाहों में हैं, जिन्हें ये खुद की राजनीति के लिए खतरा समझते हैं.


प्रो. शमशुल इश्लाम ने कहा कि हम एक ऐसे फासीवाद से लड़ रहे हैं जो कई मुंह वाला है. एक तरफ गांधी के हत्यारे गोडसे का महिमा मंडन और गांधी की रोज-रोज हत्या, वहीं आरएसएस के मुखपत्र आर्गनाइजर के ताजे अंक में गांधी का महिमा मंडन किया गया है. उन्होंने कहा कि जिन्ना ने गांधी को 'चतुर बनिया' कहा था, आज वही बात भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह गांधी को बोलते हैं. नेताजी सुभाष चन्द्र बोष ने सिंगापुर के अपने एक भाषण में सर्वप्रथम गांधी को राष्ट्रपिता कहा था. पर जब अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड ट्रंप नरेंद्र मोदी को भारत का राष्ट्रपिता कहते हैं तो प्रधानमंत्री कार्यालय से इसका कोई खंडन नहीं आता है. एह कैसा राष्ट्र है जिसके दो-दो पिता हैं.


उन्होंने कहा कि आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार कांग्रेस के नेता थे. इन्होंने खिलाफत आन्दोलन में एक साल जेल में रहने के दौरान अंग्रेज अधिकारियों से करीबी रिश्ते बनाए , इसके लिए जेल में इनकी बेहतर देखभाल हुई. एक साल बाद जब ये जेल से निकले तो ये अकेले ऐसे आंदोलनकारी थे जिनका वजन जेल में 12.5 किलो बढ़ चुका था. जेल से निकलने के बाद हेगडेवार ने कहा में हिन्दू मुश्लिम एकता नहीं चाहता हूँ. इसी लिए कांग्रेस छोड़कर आरएसएस बना रहा हूँ. प्रो. शमशुल इस्लाम ने कहा कि आज भारत में इस ब्राह्मणवादी फासीवाद के खिलाफ जो भी लड़ाई में है वह हमारा साथी है.


1935 से ही गांधी की हत्या के लिए उन पर हमले कर रहे थे हिन्दुत्ववादी - सुभाष गाताड़े


चर्चित लेखक सुभाष गताड़े ने गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि 30 जनवरी 1948 को गोडसे द्वारा की गयी हत्या से पहले भी हिन्दुत्ववादियों ने पांच बार गांधी की हत्या की कोशिश की थी. इसकी शुरुआत पुणे में 1935 में तब हुई जब उनकी कार पर बम फेंका गया. संयोग से गांधी उस वक्त कार में नहीं थे. गांधी पर दूसरी बार चाकू से हमला पंचगढ़ी में गोडसे द्वारा किया गया. इसमें सहयोगियों द्वारा गांधी को बचा लिया गया. देवघर दौरे के दौरान गांधी पर वहाँ के पंडों द्वारा भी हमला किया गया था. एक बार ट्रेन में भी गांधी पर हमला हुआ था.  मदनलाल पाहवा ने भी गांधी पर बम फैंका था. पर संयोग से गांधी इन सभी हमलों में बच गए थे. ये तथ्य यह साबित करते हैं कि गांधी की हत्या के कारणों में पाकिस्तान को 55 करोड़ देने की गांधी की जिद का झूठ आरएसएस द्वारा फैलाया गया सफ़ेद झूठ था. क्योंकि 1935 से तो पाकिस्तान बना नहीं था.


उन्होंने कहा कि सनातनी और हिंदुत्व की राजनीति करने वाली ताकतें गांधी से इसलिए नफरत करती थी कि गांधी ने अपृश्यता के उन्मूलन का प्रस्ताव कांग्रेस में पारित करा लिया था. इसके साथ ही गांधी हिन्दू मुश्लिम एकता के मजबूत पैरोकार थे. वे सबको साथ लेकर चलना चाहते थे. नए भारत के निर्माण को लेकर आरएसएस का गांधी की सोच से यही भारी मतभेत था. इस लिए हिन्दुत्ववादी ताकतें जानती थी कि जब तक गांधी ज़िंदा हैं उनका प्रोजक्ट आगे नहीं बढ़ सकता है. इसके लिए आरएसएस ने गांधी को लेकर तमाम झूठ फैलाना शुरू किया. उनकी छवि को राक्षस की तरह पेश किया. इसी लिए आज भी महाराष्ट्र में गांधी की हत्या हुई के बजाय गांधी वध हुआ कहा जाता है. वध तो राक्षस का होता है. यह आरएसएस के प्रचार का परिणाम है.


गांधी साम्रदायिक विभाजन की राजनीति के खिलाफ तन कर खड़े थे. 1946 से 1948 तक वे बिहार, नौखाली (अब बंगादेश में), कोलकाता और दिल्ली में दंगा ग्रस्त क्षेत्रों में गए. विभाजन के दौरान हुए सांप्रदायिक दंगों और कत्लेआम के दौरान उन्होंने दिल्ली में कहा कि ऐसी स्थितियों में मैं भारत में मुश्लिम के साथ हूँ और पाकिस्तान में हिन्दू के साथ. वे शान्ति और हिन्दू मुश्लिम एकता के संदेश के लिए पाकिस्तान का दौरा करने की योजना बना रहे थे. जब देश के नेता 15 अगस्त 1947 को भीषण साम्प्रदायिक दंगों के बीच आजादी का जश्न मना रहे थे, गांधी कलकत्ता के दंगाग्रस्त क्षेत्र में हिन्दू मुश्लिम एकता के जुनून के साथ अनशन कर रहे थे. गांधी जानते थे कि नेहरू उनके विचारों के वारिश नहीं हैं, फिर भी उन्होंने नेहरू को ही अपना उत्तराधिकारी बनाया. गांधी क्यों हारे ? आज गोडसे का विचार क्यों हावी है? शायद इस लिए कि गांधी खुद सनातनी थे. राजनीति में जनता को समझाने के लिए उन्होंने खुद धर्म का इस्तेमाल किया, धर्म को विमर्श बनाया.


सुभाष गताड़े ने कहा साम्प्रदायिकता के खिलाफ हिन्दू मुश्लिम एकता के लिए गांधी का योगदान अविस्मरणीय है. उनके जीवन के अंतिम तीन साल काफी कड़े संघर्ष के साल थे. राष्ट्र निर्माण के इस निर्णायक संघर्ष में गांधी अकेले मैदान में थे. गांधी भीड़ की मानसिकता के खिलाफ सत्य के लिए लड़ने का जुनून थे. आज जब हमारे चारों ओर दंगाई मानसिकता फैलाई जा रही है, भीड़ हत्या हो रही हैं, बलात्कारी ऐश कर रहे हैं और बलात्कार पीड़िता जेल में हैं, ऐसे समय में गांधी की तरह सत्य के पक्ष में खड़े होने और लड़ने का जुनून खुद के अन्दर पैदा करने की जरूरत है.