गौतम नवलखा मामले में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस समेत पांच जजों ने खुद को सुनवाई से अलग किया
रवीश कुमार
नई दिल्ली। भीमा कोरेगांव से जुड़े गौतम नवलखा मामले में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश समेत पांच जजों ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। आपको बता दें कि नवलखा ने बांबे हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें उन्होंने भीमा कोरेगांव मामले में अपने खिलाफ चलाए जा रहे मुकदमे को रद्द करने की अपील की है ।
कल यानि बृहस्पतिवार को जब यह मामला जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुआई वाली बेंच के सामने आया तो उसमें शामिल जस्टिस एस रविंद्र भट्ट ने उसकी सुनवाई करने से इंकार कर दिया। और मामले से खुद को अलग कर लिया। इस बेंच में तीसरे जज के रूप में जस्टिस विनीत शरण सदस्य हैं। कोर्ट की कार्यवाही में नवलखा का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि उनके मुवक्किल की तीन सप्ताह पहले हाईकोर्ट से मिली अग्रिम जमानत की मियाद शुक्रवार को खत्म हो रही है। इसका संज्ञान लेने के बाद कोर्ट ने आज के लिए मामले की सुनवाई का भरोसा दिया।
सबसे पहले नवलखा की याचिका 30 सितंबर को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के सामने आयी थी। लेकिन उन्होंने खुद को उससे अलग कर लिया था। और उसके पीछे उन्होंने कोई कारण भी नहीं बताया। उसके अगले दिन यह जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी औऱ जस्टिस बीआर गवई के सामने पेश की गयी। लेकिन इन तीनों जजों ने भी खुद को केस से अलग कर लिया। उसके बाद बृहस्पतिवार को इसे जस्टिस मिश्रा की बेंच के सामने पेश किया गया।
2015 में नेशनल ज्यूडिशियल कमीशन को असंवैधानिक बता कर खारिज करने वाले जस्टिस कुरियन जोसेफ ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताया कि कोई भी जज अगर खुद को किसी मामले से अलग करता है तो उसको उसके पीछे के कारणों को बताना जरूरी है। यह उसका संवैधानिक कर्तव्य है। रिटायर्ड जस्टिस मदन बी लोकुर ने भी इस बात की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि किसी केस से अलग होने का मामला इतना सामान्य नहीं होता है। जैसा कि लगता है। अब जबकि यह बिल्कुल सामान्य बनता जा रहा है इसलिए यह मौका आ गया है जब इस पर कुछ प्रक्रियागत या फिर कोई समग्र नियम बनना चाहिए। अगर उचित नियम बन जाते हैं तो जजों के लिए भी किसी बेंच से अलग हो पाना बेहद मुश्किल होगा।
जज सुनवाइयों से किसी खास परिस्थिति में ही अलग होते हैं। हितों की टकराहट का मामला हो या फिर बेंच से जुड़े होने पर भी पक्षपाती फैसला होने की आशंका हो। जैसे अगर कोई जज किसी कंपनी या फिर उसका शेयर धारक है तो उसके लिए उस कंपनी से जुड़ा कोई केस सुनना उचित नहीं रहेगा।
मामले पर कुछ वरिष्ठ पत्रकारों की प्रतिक्रिया:
पंच न्यायाधीश ……?
विख्यात मानवाधिकार एक्टिविस्ट गौतम नवलखा के केस को सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों ने सुनने से पलायन किया। इन जजों में मुख्यन्यायाधीश गोगोई साहब भी शामिल हैं। इंडियन एक्सप्रेस के दिली संस्करण के प्रथम पेज पर प्रकाशित खबर के मुताबिक़ किसी भी जज ने सुनवाई नहीं करने (रेकसु) का कारण नहीं दिया है। यह खुद में गंभीर बात है।
अब न्यायपालिका ही लोगों के लिए आशा-विश्वास की किरण है। यदि यह किरण भी धुंधली पड़ने लगी तो जनता कहां और किसके पास जायेगी ? क्या न्यायाधीश इस सम्बन्ध में सोचते हैं या भविष्य का नफ़ा-नुकसान ध्यान में रखते हैं ? इससे लोकतंत्र के लिए संकट पैदा होगा और कार्यपालिका की अधिनायकवादी प्रवृतियां बढ़ेंगी।
याद रहे, यह वर्ष विश्विख्यात वकील मोहनदास करमचंद गांधी की 150 जयंती का है जो झूठे केसेज लेने इस इंकार करते रहे ,जज भी उनके विरुद्ध फैसला देकर शर्मिदा होते रहे। यही वकील महात्मा भी बना। क्या न्यायपालिका इतिहास नहीं बना सकती ? कार्यपालिका के दबाव बढ़ रहे हैं , इस तरह की आशंकाएं जनता में घर करती जा रही हैं। स्वर्गीय जस्टिस लोया की मौत का मामला आज भी रहस्य व सवालों के कटघरे में खड़ा हुआ है।
न्यायपालिका से हार्दिक विनम्र निवेदन है की वह इस धुंध को दूर करे। यही देशभक्ति है और संविधान के प्रति ज़िम्मेदारी।
राम शरण जोशी
भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में गौतम नवलखा के खिलाफ एफआईआर हुई थी। मगर बांबे हाईकोर्ट ने 4 अक्तूबर तक गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी। गौतम नवलखा ने सुप्रीम कोर्ट ने याचिका डाली कि एफआईआर रद्द की जाए। सुप्रीम कोर्ट की तीन बेंच ने इस केस से खुद को अलग कर लिया है। चीफ जस्टिस सहित पांच जस्टिस ने सुनवाई से अलग कर लिया है। वैसे शुक्रवार को जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच में सुनवाई होगी लेकिन पांच पांच जलों का खुद को इस केस से अलग करना कुछ तो कहता होगा। वैसे इसके कारण नहीं बताए गए हैं। यह सूचना है कि आप सोचें और समझे।
…जनचौक से साभार