भारत के किसानों का ऐलान 

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति 


भारत के किसानों का ऐलान


हम हैं भारत के किसान
जो प्रकृति की कोख से प्राथमिक कृषि-उत्पाद पैदा करते हैं; वो सब जो फसल उगाने से लेकर झूम की खेती करने, मधुमक्खी पालन, रेशम-कीट के पालन, कृमिपालन और कृषि-वानिकी में लगे हैं;
जिनमें शामिल हैं महिला, दलित, घुमन्तू और आदिवासी किसान; साथ ही भूस्वामी, पट्टेदार, बंटाईदार, खेतिहर मजदूर तथा बागान श्रमिक; और मछुआरे, दुग्ध-उत्पादक, मुर्गीपालक, पशुपालक, पशुचारक तथा लघु वनोपज को एकत्र करने वाले



हम यह मानते हैं कि
किसानों की खुशहाली सिर्फ भारत के अधिसंख्य परिवारों की आर्थिक सलामती का सवाल नहीं है, यह राष्ट्रीय गरिमा और हमारी सभ्यता की विरासत को बचाने का सवाल है;
किसान कोई अतीत के कूड़ेदान का छिलका नहीं है; खेती, किसान और गाँव भारत और विश्व के भविष्य का मर्म है; और,
किसान-आंदोलनों की मांग हमारे संविधान के दर्शन, मौलिक अधिकार तथा राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों के अनुरूप है;


हम जानते हैं अपनी जिम्मेवारी, चूंकि हम हैं 
धूप-छाँव, ऊंच-नीच में खून-पसीने की कमाई के हकदार;
सदियों के ज्ञान, कौशल तथा संस्कृति के पालनहार;
खाद्य-सुरक्षा, संरक्षा और संप्रभुता के चौकीदार; और
जैव-विविधता तथा आबोहवा के मददगार;


हमारा चिंतन है


ऐसी किसानी जो कमाऊ हो, आबोहवा के लिहाज़ से टिकाऊ हो;  समातमूलक और इन्साफपरस्त हो;


लेकिन हमारी चिंता है 
भारतीय कृषि का संकट, जो आर्थिक के साथ सामाजिक भी है, आबोहवा के संग अस्तित्व को भी डुबो सकता है;
किसानों के जीवन व आजीविका पर पारिस्थितिकीय क्षय तथा विनाश  का दुष्प्रभाव;
कृषि-भूमि की अभूतपूर्व सिकुड़न और विनाश, पानी के निजीकरण, जबरन विस्थापन, वंचना और पलायन से खाद्य सुरक्षा और जीविका पर पड़ती चोट;
राजसत्ता की ओर से कृषि की निरंतर होती उपेक्षा और किसान-समुदाय के साथ हो रहा भेदभाव;
गांव के दबंगों और अफसरों की लूट के आगे किसानों की लगातार बढ़ती बेबसी;
बड़े, आखेट-वृत्ति तथा मुनाफाखोर कारपोरेशनों का भारतीय कृषि के एक व्यापक हिस्से पर नियंत्रण;
देश भर में कर्जे के तले डूबते और आत्महत्या करते किसान;
किसानों तथा गैर-किसानों के बीच बढ़ती विषमता; तथा,
किसान-संघर्षों पर सरकार के बढ़ते दमन;


अब करते हैं ऐलान, हम अपने इन संवैधानिक अधिकारों का 
जीवन और गरिमामय आजीविका का;
सामाजिक सुरक्षा तथा प्राकृतिक एवं अन्य आपदाओं से बचाव का;
जल,जंगल, जमीन तथा सामुदायिक संपदा समेत प्राकृतिक संसाधनों का;
बीज और आहार-प्रणाली में विविधता तथा टिकाऊ प्रौद्योगिक विकल्पों के चयन का; और,
अपने अरमानों को साकार करने एवं अपनी नियती खुद गढ़ने की खातिर अभिव्यक्ति, संगठन, प्रतिनिधित्व तथा वैधानिक संघर्ष का 
 
तदनुसार, हम भारत की संसद का आह्वान करते हैं कि वह तत्काल
कृषि-संकट के समाधान के लिए एक विशेष सत्र आयोजित करे जिसमें भारत के किसानों के, किसानो के हाथों और किसानों के लिए तैयार इन दो विधेयकों को पारित और क्रियान्वित किया जाय:
1. किसान कर्ज-मुक्ति विधेयक, 2018; तथा
2. कृषि-उत्पाद पर गारंटीशुदा लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य का अधिकार(किसान)
विधेयक, 2018.



साथ ही, हम सरकार से मांग करते हैं कि निम्नलिखित को सुनिश्चित करे:
1. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तंहत गारंटीशुदा रोजगार की सीमा प्रति परिवार बढ़ाकर 200 दिन की जाय, कानून में निर्दिष्ट समय-सीमा के भीतर दिहाड़ी का भुगतान हो तथा पारिश्रमिक अकुशल खेतिहर मजदूर के लिए निर्धारित न्यूनतम मजदूरी के समान हो;
2. औद्योगिक मूल्यों के नियंत्रण के जरिए या फिर प्रत्यक्ष अनुदान के जरिए किसानों के लागत-मूल्य में कमी लायी जाय;
3. सभी खेतिहर परिवारों को व्यापक सामाजिक सुरक्षा मुहैया की जाय जिसमें 60 साल से ज्यादा उम्र के हर किसान को 5000 रुपये प्रति माह पेंशन देना शामिल है;
4. आधार अथवा बायोमीट्रिक सत्यापन से बगैर लिंक किए और प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण की राह ना अपनाते हुए सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सार्विक किया जाय और राशन में खाद्यान्न के साथ मोटा (पोषक) अनाज, दाल, चीनी तथा तेल शामिल हो;


5. कानून अथवा दबंगई के मार्फत पशुओं के व्यापार पर आयद सभी प्रतिबंधों को हटाते हुए आवारा पशुओं की समस्या का निदान किया जाय, किसानों को जंगली तथा आवारा पशुओं से फसलों को पहुंचे नुकसान की भरपायी हो तथा पशुशाला के निर्माण में मदद मुहैया करायी जाय;
6. किसान की सहमति के बगैर भूमि-अधिग्रहण और भूमि-समुच्चयन ना हो; व्यावसायिक भूमि के विकास अथवा भूमि-बैंक के निर्माण के लिए कृषि-भूमि का अधिग्रहण या उसके उपयोग में बदलाव ना किया जाय; भूमि-अधिग्रहण, पुनर्वास तथा पुनर्स्थापना अधिनियम 2013 में वर्णित उचित मुआवजे तथा पारदर्शिता संबंधी अधिकार के राज्य स्तर पर हो रहे हनन या इस कानून के उल्लंघन को रोका जाय; भूमि के उपयोग तथा कृषि-भूमि की सुरक्षा बाबत नीति बनायी जाय;
7. चीनी मिलों को आदेश दिया जाय कि गन्ना किसानों को गन्ने की बिक्री के 14 दिनों के भीतर अगर वे बकाया नहीं चुकाते तो बकाया रकम पर 15 फीसद सालाना दर से ब्याज दें; गन्ने की एफआरपी चीनी की 9.5 प्रतिशत रिकवरी से जोड़ते हुए निर्धारित की जाय;
8. जिन कीटनाशकों को अन्यत्र प्रतिबंधित कर दिया गया है उन्हें वापस ले लिया जाय और व्यापक जरुरत, विकल्प तथा प्रभाव के आकलन के बगैर जीन-संवर्धित जी-एम बीजों को अनुमति ना दी जाय;
9. खेती तथा खाद्य-प्रसंस्करण में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति ना दी जाय, खेती को मुक्त व्यापार समझौते -जिसमें प्रस्तावित रिजनल कंप्रेहेंसिव इकॉनॉमिक पार्टनरशिप(आरसीईपी) भी शामिल है- से बाहर रखा जाय;
10. सरकारी योजनाओं के लाभ प्राप्त करने के निमित्त सभी काश्तकारों का पंजीकरण और सत्यापन अनिवार्य हो, चाहे वे खुदकाश्त करते हों, चाहे बंटाईदार किसान, महिला किसान, ठेके पर खेती करने वाले किसान, पट्टे पर खेती करने वाले किसान या फिर खेतिहर मजदूर हों; तथा
11. निर्वनीकरण के नाम पर आदिवासियों किसानों को उजाड़ना बंद हो, पंचायत(अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम तथा वनाधिकार अधिनियम, 2006 को हल्का किये बिना सख्ती से लागू किया जाय;


और, आगे सरकार से आग्रह करते हैं कि वह ऐसी नीतियां बनायें जो
12. भूमिहीनों को भूमि तथा जीविका का अधिकार प्रदान करे जिसमें खेती की जमीन तथा घर की जमीन, मछली मारने के लिए पानी तथा मामूली खनिजों के खनन आदि का अधिकार शामिल है;
13. प्राकृतिक आपदा से फसल को हुए नुकसान की भरपायी पर्याप्त, समय पर और कारगर तरीके से हो; ऐसी व्यापक फसल बीमा अमल में आये जो किसानों को लाभ पहुंचाये ना कि सिर्फ बीमा कंपनियों को और जिसमे हर किसान को सभी फसलों पर हर किस्म के जोखिम से बीमा कवर प्रदान किया जाय, फसल बीमा में नुकसान के आकलन के लिए हर खेत को एक इकाई माना जाय, सूखा प्रबंधन से संबंधित नियमावली में हुए किसान-विरोधी परिवर्तनों को वापस लिया जाय;
14. किसानों के लिए टिकाऊ साधनों के मार्फत सुनिश्चित सुरक्षाकारी सिंचाई की व्यवस्था हो, खासकर वर्षासिंचित इलाकों में;
15. दूध पर गारंटीशुदा लाभकारी मूल्य सुनिश्चित हो, उस मूल्य पर खरीद की व्यवस्था बने और मिड डे मील तथा समेकित बाल विकास कार्यक्रम आदि के जरिए दूध को पूरक पोषाहार के रूप में दिया जाय;
16. आत्महत्या के शिकार किसान-परिवारों के सभी कर्ज माफ हों और ऐसे परिवारों के बच्चों को विशेष अवसर मुहैया कराये जायें;
17. अनुबंध कृषि अधिनियम(कांट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट 2018) का पुनर्विचार हो और इसके नाम पर हो रही कारपोरेट लूट से किसानों को बचाया जाय;
18. कृषि के कारपोरेटीकरण तथा कृषि पर बहुराष्ट्रीय निगमों का दबदबा बढ़ाने की जगह कृषक उत्पादक संगठनों तथा कृषक सहकारी समितियों के तहत उपार्जन, प्रसंस्करण तथा विपणन को बढ़ावा दिया जाय; और
19. खेती-बाड़ी को लेकर उपयुक्त फसल-चक्र पर आधारित तथा स्थानीय बीज-विविधता को बढ़ावा देने वाली एक पारिस्थिकीगत समझ को बढ़ावा दिया जाय जो आर्थिक रुप से कमाऊ, पारिस्थिकीय रुप से टिकाऊ, स्वावलम्बी तथा जलवायु-परिवर्तन को


सह सकने में सक्षम कृषि का मार्ग प्रशस्त कर सके।