ईको सिस्टम की रक्षा में किसानों का परम्परागत ज्ञान ज्यादा समृद्ध- गतांक से आगे

ईको सिस्टम की रक्षा में किसानों का परम्परागत ज्ञान ज्यादा समृद्ध-


गतांक से आगे


पुरुषोत्तम शर्मा


सत्ता द्वारा संचालित बाहरी हस्तक्षेप ईको सिस्टम के लिए बड़ा खतरा


राज्य बनने के बाद जल-जंगल-जमीन पर स्थानीय निवासियों के परम्परागत आधिकार बहाल करने और पारस्थितकीय तंत्र से ज्यादा छेड़–छाड़ किये बिना विकास का वैकल्पिक ढांचा खड़ा करने की जो जिम्मेदारी राज्य के नए नेतृत्व के जिम्मे थी, वह अपनी वर्गीय प्रतिबद्धता के चलते भाजपा–कांग्रेस की सरकारों के रूप में उसके ठीक विपरीत रास्ता चुनती गई. राज्य की आर्थिकी को मजबूत आधार देने के नाम पर ऊर्जा प्रदेश और पर्यटन प्रदेश के नारे गूँजने लगे. विद्युत कंपनियों की बड़ी–बड़ी मशीनों के निर्वाध आवागमन के लिए सड़कों को चौड़ा कर इन सड़कों और सुरंगों का सारा मलवा पेड़ों सहित नदियों में उड़ेल दिया गया. राज्य में राजस्व वसूली के बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शराब के व्यवसाय को मुख्य व्यवसाय का दर्जा दे दिया गया.


राज्य के सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति औसत आय को बढाने के नाम पर जमीनों और नदियों में खनन की लूट का कारोबार पनपाया गया. नतीजे के तौर पर नदी घाटियों पर विद्युत कंपनियों और खनन माफिया का कब्जा और मनमानी बढ़ती गई. पर्यटन व्यवसाय के नाम पर और “इको ट्यूरिज्म” को बढ़ावा देने के नाम पर सड़कों, नदी घाटों और जंगलों पर सत्ता के संरक्षण में कब्जा करने की होड़ में कांग्रेस, भाजपा, बसपा, यूकेडी और सपा जैसी कोई भी पार्टी पीछे नहीं रही.


अब तक राज्य में विद्युत कम्पनियां 1700 वर्ग किलोमीटर जंगल साफ़ कर चुकी हैं. विभिन्न योजनाओं के लिये राज्य सरकार 17 हजार वर्ग किलोमीटर वन भूमि को हस्तांतरित कर चुकी है. मगर इसके बदले निर्धारित क्षेत्र में बृक्षारोपण की अनिवार्य शर्त को खानापूरी के लिए दूसरे राज्यों में दर्शाकर आवंटित धन की जमकर लूट की गई. गंगा नदी के सौ मीटर बाहर तक कोई निर्माण न करने के माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद हरिद्वार से लेकर गंगोत्री-केदारनाथ तक गंगा व अन्य नदियों के जल को छूते हुए होटल व्यवसायियों, धार्मिक संस्थाओं और सरकारी विभागों द्वारा भवन निर्माण 15 जून 2013 तक बे रोक टोक जारी था.


जारी....