विभाजनकारी राजनीति और बड़ी पूंजी की सेवा का छुपा एजेंडा - गतांक से आगे जारी

विभाजनकारी राजनीति और बड़ी पूंजी की सेवा का छुपा एजेंडा -


गतांक से आगे जारी...


पुरुषोत्तम शर्मा


 


न बिके न खाए गए


फिर भी दो तिहाई तक कम हुआ पालतू गौ वंश


मेरा गाँव तालेश्वर है जो तहसील स्याल्दे, जिला अल्मोड़ा उत्तराखंड में स्थित है. आज से 17 साल पहले उत्तराखंड में गौ रक्षा कानून लागू हुआ था. तब से अब तक मेरे गाँव में दो तिहाई पशुधन कम हो गया है. मेरे बगल का गाँव लालनगरी है. जब मैंने वहां के पूर्व प्रधान भाजपा कार्यकर्ता लीलाधर जोशी से गिनती कराई तो वहां भी इसी अवधि में दो तिहाई पशुधन कम निकला. इसी तहसील के कोटसारी गाँव में आज से 20 साल पहले 120 जोड़ा बैल लोगों ने पाले थे. वहां की आशा हैल्थ वर्कर धना कत्यूरा के अनुसार वहां अब कुल चार जोड़ा बैल बचे हैं. जिससे आप बाक़ी बचे पशुधन के आंकड़े की कल्पना खुद कर सकते हैं. उत्तराखंड के किसान नेता आनंद नेगी ने बताया कि भिक्यासैंण तहसील के हउली और डुमना गावों में भी दो तिहाई पशुधन कम हो गया है. पौड़ी गढ़वाल में थलीसैंण ब्लाक के मासूं, पजियाणा, किमोज, डांग, बसोला जैसे गावों का हाल भी यही है. पहाड़ के जिस भी जिले के लोगों से मैंने जानकारी ली, सभी जगह एक सी स्थिति मिली. जबकि इस दौर में किसानों के गाय-बैल न बिके और न ही पहाड़ में उन्हें खाया जाता है. फिर गौ रक्षा कानून के लागू होने के बाद ये दो तिहाई पशु कहां गए इसका जवाब इस कानून को लाने वालों को देना होगा.


आज पहाड़ के गांवों में खेती के बंजर होने के प्रमुख कारणों में से गौ वंश की बिक्री पर रोक भी एक कारण है. क्योंकि हल बैल पर आधारित पहाड़ की खेती में गाय बैलों की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगने के बाद किसानों ने गौ वंश को पालना लगभग छोड़ दिया है. इसका नतीजा है कि अब वहां गावों में खेत जोतने के लिए बैलों का भी अभाव हो गया है और जिन जमीनों पर चरागाह थे वहां अब झाड़ी और जंगल उग आए हैं. इससे बाद जंगली जानवर आबादी के और करीब पहुँच कर खेती को भारी पैमाने पर नुकसान पहुंचा रहे हैं.


जारी.....