दिल्ली हिंसा के लिए यंग इंडिया ने मांगा अमित शाह का इस्तीफा, दीपंकर, कविता, कन्नन और आनंद पटवर्धन भी हुए शामिल

दिल्ली हिंसा के लिए यंग इंडिया ने मांगा अमित शाह का इस्तीफ़ा


नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी ‘गुड’ गवर्नेंस नीति की खुद ही बलाईयां लेते नहीं थकते। पर देश के बेहतरीन दिमाग़ों के लिए जानी जाने वाली आईएएस बिरादरी के लिए चुने जाने वाले पूर्व आईएएस कनन गोपीनाथन ऐसा नहीं मानते। वो कहते हैं कि ‘‘मुझे नहीं लगता कि इस सरकार के पास सोचने की क्षमता है। इलेक्शन जीतने की है, पर सरकार चलाने की न नाॅलेज है न कैपिसिटी है।“ कनन जंतर-मंतर पर यूथ इंडिया के सीएए, एनआरसी, एनपीआर के विरोध में निकाले गए ‘‘पीस एंड जस्टिस”  मार्च में हिस्सा लेने आए थे। कनन गोपीनाथन वही आईएएस अफसर हैं जो भारत सरकार के कश्मीर में धारा 370 हटाने और वहां के लोगों के मूल अधिकारों को छीनने के विरोध में अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं। 


बता दें कि यंग इंडिया के आह्वान पर 3 मार्च को सीएए, एनआरसी, एनपीआर के खि़लाफ़ और दिल्ली में मुसलमानों के साथ सत्ता की सरपरस्ती में पुलिस की देख-रेख में जो हिंसा को अंजाम दिया गया है उसके विरोध में रामलीला मैदान में देश भर से आए नौजवान पहुंचे तो दिल्ली पुलिस ने जगह-जगह धरपकड़ शुरू कर दी। हालांकि पहले से इस कार्यक्रम की परमिशन आयोजकों द्वारा ले ली गई थी। पर ऐन वक़्त पर बताया गया कि उनकी अनुमति ख़ारिज कर दी गई। इसके साथ ही उनको जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने से भी मना कर दिया गया। बावजूद इसके युवाओं ने जबरन जंतर-मंतर पर सभा की।


सभा को संबोधित करते हुए सीपीआई (एमएल) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने मंच से ऐलान किया कि हमें एनआरसी पूरे देश में कहीं भी नहीं चाहिये। बिहार की नीतिश-बीजेपी सरकार की आंदोलन के दबाव में बदली बोली पर उन्होनें कहा कि अभी हमने देखा कि बिहार विधान सभा में हमारे विधायकों ने जब बिहार विधानसभा से प्रस्ताव पारित करने की मांग उठाई तो नितीश जी ने बीच का रास्ता निकाला और उन्होंने भी कह दिया कि बिहार को एनआरसी नहीं चाहिये। और हमने देखा कि भारतीय जनता पार्टी के लोगों ने भी हां कर दिया। भारतीय जनता पार्टी के लोग जो जगह-जगह एनआरसी-एनआरसी कर रहे हैं आज वो बिहार विधान सभा में इस आंदोलन के बढ़ते दबाव के आगे कह रहे हैं कि बिहार को एनआरसी नहीं चाहिये। बिहार को अगर नहीं चाहिये तो बंगाल को क्यों चाहिये? बिहार-बंगाल को नहीं चाहिये तो पूरे हिंदुस्तान को एनआरसी नहीं चाहिये। और इसीलिए हम किसी एक राज्य की बात करने नहीं आए हैं। एनआरसी को पूरी तरह से वापस करो।


ये कह रहे हैं कि एनआरसी अभी नहीं लागू होगा। इसका मतलब क्या है\ अभी तक कोई योजना नहीं बनी है। इसका मतलब क्या\ इसका मतलब है कि ये अपने हिसाब से समय चुनकर एनआरसी हमारे ऊपर थोपना चाहते हैं। हम ये एलान करने आए हैं कि अभी नहीं और कभी भी नहीं। इस देश में हमें एनआरसी मंजूर नहीं है। हम कतई इसे लागू नहीं होने देंगे। एनपीआर एनआरसी का ही दूसरा नाम है। 


अगर आपको एनआरसी करना ही नहीं है तो एनपीआर क्यों करना है\ एनपीआर के ज़रिये ये एक छोटी सूची तैयार करेंगे। कुछ लोगों को जिनको डाउटफुल करार दिया जाएगा इस लिस्ट के आधार पर उन पर एनआरसी थोपने की कोशिश होगी। सब समझते हैं कि हमारे संविधान से मिले हमारे सारे अधिकार इसलिए हमें मिले हैं क्योंकि हम इस देश के नागरिक हैं। अगर हमारी नागरिकता पर ही सवाल खड़ा कर दिया जाएगा तो ज़ाहिर है कि हमारे सारे अधिकार – शिक्षा, स्वास्थ्य, बोलने, वोट डालने के अधिकार सब हमसे छीन लिए जाएंगे। इसीलिए आज पूरे भारत में पूरी एकता बनाते हुए सीसीए, एनपीआर, एनआरसी का विरोध हो रहा है।”


माले के दिल्ली सचिव रवि राय ने बताया कि दिल्ली पुलिस नहीं बल्कि पूरी दिल्ली की पुलिस ने मिलकर आज होम मिनिस्ट्री के इशारे पर यंग इंडिया के मार्च पर हमला किया। रामलीला मैदान से सैकड़ों युवाओं को गिरफ्तार किया गया। यूपी से निकलने वाली 20 से ज्यादा बसों को रोक दिया गया। इनके बस ड्राइवरों तक को गिरफ्तार किया गया। इंद्रलोक से आने वाली महिला प्रदर्शनकारियों के साथ मारपीट की गई और स्टेडियम में डिटेन कर के रखा गया। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन तक से युवाओं को डिटेन किया गया। विश्वविद्यालय मेट्रो का गेट बंद कर दिया गया। दिल्ली के हर हिस्से से जहां से भी मार्च के लिए लोग निकल रहे थे वहां पुलिस ने रोकने की कोशिश की। इतनी मुस्तैदी दिल्ली में साम्प्रदायिक हिंसा के समय पुलिस ने नहीं दिखाई।  लेकिन आज जब यंग इंडिया सड़क पर उतर कर इसके लिए जिम्मेदार अमित शाह का इस्तीफा मांगने निकली तो गजब मुस्तैदी दिखाई। अभी 4 दिन पहले इस हिंसा के एक और मास्टर माइंड कपिल मिश्रा को गोली मारो मार्का शांति रैली की इजाज़त दी गयी लेकिन आज युवाओं को अमन और न्याय के लिये मार्च करने से रोकने की हर संभव कोशिश की गई।   


लेकिन इनके हर दमन से लड़ते हुए हजारों नौजवान जन्तर मन्तर पहुंचे और अमित शाह के इस्तीफे की मांग की। 


यंग इंडिया से जुड़ीं दिल्ली यूनिवर्सिटी से पाॅलिटिकल सांइस में एमए कर रही दामिनी ने बताया कि यंग इंडिया सीएए, एनआरसी, एनपीआर के विरोध में एक मंच का गठन किया गया था जिसमें देश भर से बहुत से छात्र संगठन जुडे़ हैं। लाॅयर्स एसोसिएशन्स हैं। डाॅक्टर्स एसोसिएशन हैं। ट्रेड यूनियन हैं। किसान भी हिस्सा ले रहे हैं। और टीचर्स एसोसिएशन भी हैं। पुलिस ने रामलीला मैदान से हमें हटा दिया। पर फिर भी यहां जंतर-मंतर पर लोग इकट्ठा हुए हैं। क्योंकि हम दिल्ली में ये दंगा नहीं बर्दाश्त कर सकते। अपने हिंदू-मुस्लिम भाई-बहनों और दोस्तों पर ये जुल्म बर्दाश्त नहीं करेंगे।


परमिशन के बाद भी रोके जाने के सवाल पर दामिनी कहती हैं कि ‘‘ये वो दौर चल रहा है जब हम नफरत के खि़लाफ़ आवाज़ उठाते हैं, अपने हक़ की मांग करते हैं तो हमें रोका जाता है। क्योंकि वो हमें सरकार के खि़लाफ़ कुछ करने देना ही नहीं चाहते।’’


आॅल इंडिया प्रोग्रेसिव वूमेन एसोसिएशन (एपवा) की सचिव कविता कृष्णन ने भी विरोध प्रदर्शन में भाग लिया। सरकार के जन विरोधी रवैये पर कविता कहती हैं कि ‘‘दिल्ली पुलिस जंतर-मतंर पर आने वाले हर शख़्स का वीडियो ले रही है। कैमरा लगा है यहां। हर व्यक्ति से पूछ रही है आप कहां, किस प्रदर्शन में जा रहे हो? मैं ये पूछना चाहती हूं कि दिल्ली में जहां दंगे हो रहे थे, हत्याएं हो रही थीं, आगजनी हो रही थी वहां आपने जगह-जगह कैमरे तोड़ दिए। ताकि पहचान न हो पाए कि कौन लोग गुनहगार हैं। दंगाईयों को बचाने के लिए दिल्ली पुलिस ने वहां काम किया। दिल्ली पुलिस ने घायल लोगों को लात मारी है और उन्हें अस्पताल पहुंचने से रोका है।



यहां शांति के लिए जो लोग जुट रहे हैं। बिल्कुल निहत्थे, शांति के लिए सिर्फ़ अपनी आवाज़ लेकर संविधान, लोकतंत्र की रक्षा के लिए जुट रहे हैं, सरकार से सवाल करने जुट रहे हैं। उनके वीडियो बना रहे हैं, पहचान कर रहे हैं। कह रहे हैं कि आपमें से एक-एक को हम याद रखेंगे। 


सरकार से सवाल करना लोकतंत्र की परिभाषा है। सरकार से सीएए, एनपीआर,एनआरसी को लेकर सवाल करना लोकतंत्र की परिभाषा है। ये सरकार की तरफ से दिया जाने वाला कोई तोहफ़ा नहीं है जो फ्री में दिया जा रहा है। ये हमारा संवैधानिक अधिकार है। 


अमितशाह जिनकी दिल्ली पुलिस है उनकी क्या मंशा है इससे बिल्कुल साफ पता चल रही है। आप सोचते हैं कि उनको सिर्फ कैरियर चाहिये। बढ़िया से बढ़िया देश की सेवा करने के लिए आईएएस जैसे पद कनन गोपीनाथन जैसे लोगों ने छोड़े हैं। जब उनको लगा कि देश की सेवा और सरकार की सेवा में फर्क़ है। ऐसी सरकार की सेवा मैं नहीं करूंगा जो कश्मीर को बंदी बना रहे हैं और पूरे देश में फासीवादी कानून को लागू कर रहे हैं। इसलिए वो देश की सेवा में उतर गए हैं। ये हैं युवाओं की स्प्रिट। यंग इंडिया देश को बचाने का काम करेगा। हिंदू-मुस्लिम, सिख हैं जो देश को बचा रहे हैं। इन लोगों में अभी भी भारत जिंदा है। भगत सिंह का भारत ज़िन्दा है। अंबेडकर का भारत ज़िन्दा है। फातिमा का भारत ज़िन्दा है। 


दिल्ली पुलिस वाले कह रहे हैं कि हम इसलिए बैठे हैं कि हम मार्च को रोकें। इसके बावजूद जो इतनी बड़ी संख्या को शहर-देशभर से यहां लोग आए हैं। ये युवाओं की स्प्रिट को दिखाता है और ये भी बताता है कि सरकार किस चीज़ से डरती है। सरकार गोली मारो कहने वालों को नहीं हाथ लगाएगी। यहीं से 10 कदम की दूरी से गोली मारो का नारा लगा था। अभी राजीव चौक मैट्रो के आस-पास। उनके बारे में पुलिस से पूछिये उनका क्या किया? पुलिस कह रही है हां, हमने उन्हें दो मिनट रोका फिर वो चले गए। एक पुलिस के एलआईयू के व्यक्ति से मैंने पूछा क्या बात है, उनको क्यों छोड़ दिया गया? और हमको यहां आप परेशान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ‘‘मैडम क्या बताएं आप लोग तो सरकार की नज़र में टुकड़े-टुकड़े गैंग हैं। और वो तो राष्ट्रभक्त हैं।’’ हमनें कहा वो हत्यारे हैं, गोली मार रहे हैं तब भी राष्ट्र भक्त हैं! बोला – ‘‘क्या करें, यही होम मिनिस्ट्र का आॅर्डर है।’’


उमर ख़ालिद ने कहा कि 17 फरवरी को मेरा महाराष्ट्र में दिया एक भाषण जिसके लिए मुझे दोषी बनाया जा रहा है। जो मैंने वहां बोला वो बात आज यहां फिर से दोहराने में मुझे कोई गुरेज़ नहीं है। मैंने बोला था कि जब डोनाल्ड ट्रंप भारत आएंगे तो हम ये बताएंगे कि भारत के अंदर महात्मा गांधी के उसूलों की धज्ज्यिां उड़ाई जा रही हैं। मैं फिर से बोलता हूं आज हमारे देश के अंदर जब गोली मारो चिल्ला-चिल्लाकर बोलते हैं तब इस दिल्ली में जिस दिल्ली में महात्मा गांधी ने अपना आखि़री उपवास हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए रखा, जब उस दिल्ली को जलाया जा रहा है मैं फिर से बोलता हूं इस देश की सरकार महात्मा गांधी के उसूलों की धज्जियां उड़ा रही है।


सरकार देश को बांटने का काम करेगी तो हम महात्मा गांधी के उसूलों को बचाने का और इस देश को जोड़ने का काम करेंगे। हम सड़कों पर संविधान को बचाने आते हैं। संविधान का दायरा वो पार करते हैं जो खुलेआम गोली मारो चिल्ला रहे हैं। हिम्मत है ज़ी न्यूज़, टाइम्स नाॅउ में तो चलाओ अनुराग ठाकुर पर एक दिन प्राइम टाइम। कपिल मिश्रा पर प्राइम टाइम।


यंग इंडिया के मंच से भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने दिल्ली दंगों के लिए सरकार पर सीधा निशाना साधते हुए कहा कि ‘‘जो भी दंगा हुआ दिल्ली में 23 तारीख़ को कपिल मिश्रा के भाषण के बाद हुआ। वो बड़े-बड़े भाषण दे रहा था। डीसीपी बराबर में खड़े थे। इतने हथियार और पत्थर सब हमने देखे। कैसे पहुंचे ? ये सब सरकार ने किया है। राज्य प्रायोजित दंगा है ये। सरकार रोक सकती थी। गृह मंत्री रोक सकते थे। रोका क्यों नहीं? क्योंकि आम लोग मरे। इससे उनकी राजनीति चमकेगी।


कनन गोपीनाथन ने मीडिया के सवालों के जवाब देते हुए उन महत्वपूर्ण बिंदुओं को चिन्हित किया जो देश में नफ़रत को पालने-पोसने का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिंदू-मुसलमानों को एक-दूसरे से दूर नहीं पास रहकर नफ़रत की राजनीति को हराना होगा।


सवाल: दिल्ली में दंगे पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार की आलोचना हो रही है। इसको आप किस नज़रिये से देखते हैं? 


कनन गोपीनाथन: भारत का विश्व स्तर पर एक डेमोक्रेटिक-प्रोग्रेसिव, सोशल सोसाइटी होने की कैपिटल थी।  जिस वक़्त सभी देश बोलते थे कि ये देश आगे नहीं जाएगा तब भी हम एक लोकतांत्रिक तरीके से आगे बढ़ते रहे। आज हर जगह आप देखेंगे हमारे मंत्री, फाॅरेन सेक्रेटरी यही कह रहे हैं कि एनआरसी से बांग्लादेश में असर नहीं पड़ेगा। मलेशिया सवाल पूछेगा तो हम उसका पाम आॅयल नहीं लेंगे। अभी इंडोनेशिया, ईरान, टर्की, इंग्लैंड ने भी सवाल उठाया।  यूएन के सेक्रेटरी जनरल, एक्टिविस्ट लगातार बोल रहे हैं। आज की लड़ाई में सारा विश्वास जो हमने विदेश में पाया है आज के आज ख़त्म करना चाहते हैं।


 कल के लिए कुछ रहे ना। वो समझ नहीं पा रहे हैं। मुझे नहीं लगता कि इस सरकार के पास सोचने की क्षमता है। इलेक्शन जीतने की है, पर सरकार चलाने की न नाॅलेज है न कैपिसिटी है। सिर्फ इसी बात पर नहीं, आप अर्थव्यवस्था देख लीजिये, रोज़गार, फाॅरन पाॅलिसी देख लीजिये। इंटरनल हारमनी देख लीजिये। हर एक चीज़ में गवर्नेंस कैसे होना है इसका कोई आईडिया नहीं है, कैपिसिटी नहीं है।


सवाल: क्या ब्यूरोक्रेसी पर दबाव बनाया जा रहा है?


कनन गोपीनाथन: अभी ब्यूरोक्रेसी को साइन करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। जबकि आपने उन्हें रिक्रूट किया है दिमाग़ चलाने के लिए। और आप चाहते हैं कि हम जो बोल रहे हैं वो बस वही करते रहें। उन्हें अपना दिमाग़ इस्तेमाल नहीं करने देने के चलते ही आप ऐसी बेवकूफ़ियां कर रहे हैं। 


सवाल: दिल्ली में मुसलमानों के घर चुन-चुनकर जलाए गए हैं। ग़रीब से ग़रीब को भी नहीं बक्शा गया है। मुसलमानों का कहना है कि 370 की वजह से हमें अगल माना जाता था अब तो वो भी हटा दिया फिर हमारे साथ ये सलूक क्यों?


कनन गोपीनाथन: कहीं न कहीं एक दूसरे के ऊपर शक़ को बढ़ाते गए और उस शक़ में जिस तरीके़ से भी नफ़रत डाली जा सकती है उसे डालकर वोट की राजनीति खेलते गए। इसीलिए आज हम यहां पर हैं। इसे हमें मानना पड़ेगा और दोबारा विश्वास बहाली के लिए फिर से काम शुरु करना पड़ेगा। हम एक-दूसरे को मिलें तो शक़ की नहीं प्यार की नज़र से देखें। हम इस देश के नागरिक हैं सभी। ऐसे शुरु करके आगे बढ़ना पड़ेगा। जैसे हिंदू ख़तरे में है एक तरह का नरेटिव खड़ा किया गया इसके कारण एक परसीक्यूशन मोड क्रिएट किया गया। इस लेवल तक नफ़रत भर दी है लगातार। उसी के बल पर आज सरकार भी बनी हुई है। मैं समझता हूं इसको रोकना ज़रूरी है। मीडिया के नाते, जनता-नागरिक के नाते हमें ये मेहनत करना ज़रूरी है। 


सवाल: दिल्ली में जो हुआ वो कपिल मिश्रा से शुरु नहीं हुआ। इसकी तैयारी पहले से थी। ये फिर से ना हो इसके लिए आप क्या सोच रहे हैं? लग रहा है ये यहीं रुकने वाला नहीं है।


कनन गोपीनाथन: मैं ये समझता हूं कि हमें एक-दूसरे के साथ ज़्यादा मिलना जुलना होगा। जिसे हम एवायड कर रहे हैं। वो चाहते हैं कि घेटोइज़ हो जाएं। मुसलमान एक जगह रहें। हिंदू एक जगह रहें। फिर उसमें भी आपस में बांटे। एक जाति एक जगह दूसरी जाति दूसरी जगह। इस तरह की घेटोइज़्म जब हो जाए तो एक दूसरे के लिए शक़-नफ़रत फैलाना बहुत आसान है। तो साथ में रहकर जब दंगा हो जाता है तो इसलिए अलग-अलग रहने लगते हैं। बहुत लंबा वक़्त लगेगा। एक दिन में नहीं होगा। हमें मेहनत करनी होगी। हम सबको मेहनत करनी होगी ताकि ये नफ़रत समाज से निकल जाए।


(जनचौक दिल्ली की हेड वीना की रिपोर्ट।)