योगी सरकार को तगड़ा झटका, हाईकोर्ट सख्त, शाम तीन बजे तक सीएए विरोधी आंदोलनकारियों के पोस्टर हटाने के आदेश Yogi Adityanath योगी सरकार को तगड़ा झटका, हाईकोर्ट सख्त, शाम तीन बजे तक सीएए विरोधी आंदोलनकारियों के पोस्टर हटाने के आदेश कानून, देश, राजनीति, राज्यों से, समाचार इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक विशेष बेंच ने लखनऊ में विरोधी-सीएए विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा के आरोपी व्यक्तियों की तस्वीरों और विवरणों वाले बैनर लगाने के लिए योगी सरकार के अधिकारियों की खिंचाई की। मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की पीठ ने कहा कि कथित सीएए प्रोटेस्टर्स के पोस्टर लगाने की राज्य की कार्रवाई ‘अत्यधिक अन्यायपूर्ण’ थी और यह संबंधित व्यक्तियों की पूर्ण स्वतंत्रता का एक ‘अतिक्रमण’ था। बता दें विगत वर्ष 19 दिसंबर, 2019 को सीएए के विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा में शामिल होने के लिए लगभग 60 लोगों को वसूली नोटिस जारी किए गए हैं, जिनके विवरण के साथ लखनऊ प्रशासन ने शहर में प्रमुख क्रॉस-सेक्शन पर होर्डिंग्स लगाए थे। सूत्रों के मुताबिक राजधानी लखनऊ के हजरतगंज क्षेत्र में मुख्य चौराहे और विधानसभा भवन के सामने सहित महत्वपूर्ण चौराहों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर आंदोलनकारियों के पोस्टर लगाए गए हैं। प्रसिद्ध मानवाधिकार वकील मोहम्मद शोएब, कार्यकर्ता और पूर्व आईपीएस अधिकारी एस आर दारापुरी, व सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता सदफ जाफ़र, आदि के चित्र भी एक बैनर में लगाए गए थे। मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए, उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच आज ने (रविवार) सुबह 10 बजे एक विशेष अदालत आयोजित करने का फैसला किया। अदालत ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि दोपहर तीन बजे से पहले ये होर्डिंग्स को हटा देना चाहिए और इस बारे में अदालत को 3 बजे अवगत कराना चाहिए।’ अपराह्न 3 बजे, राज्य की ओर से एजी को अदालत की सहायता के लिए उपस्थित होने की संभावना है। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) की राज्य इकाई ने सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ गत 19 दिसंबर के राष्ट्रव्यापी प्रतिवाद में भाग लेने के कारण सदफ जफर, एसआर दारापुरी, मो0 शोएब, दीपक कबीर जैसे लखनऊ के प्रतिष्ठित सामाजिक-सांस्कृतिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की अपराधियों की तरह राजधानी के चौराहे पर फोटो लगवा कर वसूली की नोटिसें चिपकाने की उत्तर प्रदेश सरकार की कार्रवाई की कड़ी निंदा की थी। लखनऊ के सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलनकारियों की तस्वीरों को सरकार द्वारा चौराहों पर लगाए जाने को ग़ैर क़ानूनी बताते हुए कांग्रेस ने इसे अपने विरोधियों के चरित्र हनन की आपराधिक और षड्यंत्रकारी राजनीति बताया था। कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश चेयरमैन शाहनवाज़ आलम ने जारी बयान में कहा था कि जिन कथित आरोपियों की जमानत पर सुनवाई के समय अदालत ने योगी सरकार और पुलिस को ही कटघरे में खड़ा किया, जिनके ख़िलाफ़ सरकार कोई कमज़ोर सुबूत भी नहीं दे पाई उन लोगों के नाम का पोस्टर किसी अपराधी की तरह शहर में चस्पा करा कर सरकार ने ख़ुद अदालत की अवमानना की है जिसे अदालत को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए।

योगी सरकार को तगड़ा झटका, हाईकोर्ट सख्त, शाम तीन बजे तक सीएए विरोधी आंदोलनकारियों के पोस्टर हटाने के आदेश
Yogi Adityanath
योगी सरकार को तगड़ा झटका, हाईकोर्ट सख्त, शाम तीन बजे तक सीएए विरोधी आंदोलनकारियों के पोस्टर हटाने के आदेश कानून, देश, राजनीति, राज्यों से, समाचार इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक विशेष बेंच ने लखनऊ में विरोधी-सीएए विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा के आरोपी व्यक्तियों की तस्वीरों और विवरणों वाले बैनर लगाने के लिए योगी सरकार के अधिकारियों की खिंचाई की।


मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की पीठ ने कहा कि कथित सीएए प्रोटेस्टर्स के पोस्टर लगाने की राज्य की कार्रवाई ‘अत्यधिक अन्यायपूर्ण’ थी और यह संबंधित व्यक्तियों की पूर्ण स्वतंत्रता का एक ‘अतिक्रमण’ था। बता दें विगत वर्ष 19 दिसंबर, 2019 को सीएए के विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा में शामिल होने के लिए लगभग 60 लोगों को वसूली नोटिस जारी किए गए हैं, जिनके विवरण के साथ लखनऊ प्रशासन ने शहर में प्रमुख क्रॉस-सेक्शन पर होर्डिंग्स लगाए थे।  
सूत्रों के मुताबिक राजधानी लखनऊ के हजरतगंज क्षेत्र में मुख्य चौराहे और विधानसभा भवन के सामने सहित महत्वपूर्ण चौराहों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर आंदोलनकारियों के पोस्टर लगाए गए हैं।
प्रसिद्ध मानवाधिकार वकील मोहम्मद शोएब, कार्यकर्ता और पूर्व आईपीएस अधिकारी एस आर दारापुरी, व सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता सदफ जाफ़र, आदि के चित्र भी एक बैनर में लगाए गए थे।
मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए, उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच आज ने (रविवार) सुबह 10 बजे एक विशेष अदालत आयोजित करने का फैसला किया।
अदालत ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि दोपहर तीन बजे से पहले ये होर्डिंग्स को हटा देना चाहिए और इस बारे में अदालत को 3 बजे अवगत कराना चाहिए।’ अपराह्न 3 बजे, राज्य की ओर से एजी को अदालत की सहायता के लिए उपस्थित होने की संभावना है।


भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) की राज्य इकाई ने सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ गत 19 दिसंबर के राष्ट्रव्यापी प्रतिवाद में भाग लेने के कारण सदफ जफर, एसआर दारापुरी, मो0 शोएब, दीपक कबीर जैसे लखनऊ के प्रतिष्ठित सामाजिक-सांस्कृतिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की अपराधियों की तरह राजधानी के चौराहे पर फोटो लगवा कर वसूली की नोटिसें चिपकाने की उत्तर प्रदेश सरकार की कार्रवाई की कड़ी निंदा की थी।


लखनऊ के सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलनकारियों की तस्वीरों को सरकार द्वारा चौराहों पर लगाए जाने को ग़ैर क़ानूनी बताते हुए कांग्रेस ने इसे अपने विरोधियों के चरित्र हनन की आपराधिक और षड्यंत्रकारी राजनीति बताया था।
कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश चेयरमैन शाहनवाज़ आलम ने जारी बयान में कहा था कि जिन कथित आरोपियों की जमानत पर सुनवाई के समय अदालत ने योगी सरकार और पुलिस को ही कटघरे में खड़ा किया, जिनके ख़िलाफ़ सरकार कोई कमज़ोर सुबूत भी नहीं दे पाई उन लोगों के नाम का पोस्टर किसी अपराधी की तरह शहर में चस्पा करा कर सरकार ने ख़ुद अदालत की अवमानना की है जिसे अदालत को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए।