देश संकट में, सद्बुद्धि के दुश्मन सत्ता में
पुरुषोत्तम शर्मा
कोरोना संकट के समय लॉक डाउन के 45 दिन बाद भी स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में अव्यवस्था के लिए केंद्र की मोदी सरकार की चौतरफा आलोचना हो रही है। राज्य सरकारें भी जरूरत के संशाधन न देने की शिकायतें करती रही हैं।
इन स्थितियों में कोई सुधार के बजाए कोरोना की जांच व इलाज के लिए कल केंद्र सरकार ने अपने नियमों में ही बदलाव कर दिया है। इस बदलाव मुख्य लक्ष्य है कि कम से कम लोगों की जांच हो और कम से कम लोग अस्पतालों में भर्ती रहें। यह निर्णय ऐसे समय लिया गया है जब देश में कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि इन नए बदलावों को अब तक आए अपने अनुभव और अमेरिका व जर्मनी के अनुभव को देखते हुए किया गया है।
हम अब तक अपने जरूरत की जांच किट और सुरक्षा किट भी उपलब्ध कराने में असमर्थ रहे हैं। अमेरिका और जर्मनी तो अपने देश में मौतों की रफ्तार को रोक पाने में भी अब तक पूरी तरह असफल हैं। फिर भी अनुभव के लिए यही तीन देश चुने गए।
दुनिया के तमाम देश कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए चीन, दक्षिण कोरिया, क्यूबा, वियतनाम, भारत में केरल के सफल अनुभवों से सीख ले रहे हैं। जबकि मोदी सरकार अपनी असफलता को छुपाने के लिए इस युद्ध में सर्वाधिक असफल अमेरिका और जर्मनी के अनुभव लागू करने की बात कर रही है।
ऐसे में भारत के लिए चिंतित होने और अपनी आवाज उठाने के अलावा हमारे पास फिलहाल कोई विकल्प नहीं है। मोदी मंडली के लिए सद्बुद्धि की कामना भी नहीं कर सकते, क्योंकि यह मंडली सद्बुद्धि की सबसे बड़ी दुश्मन है।