कोरोना काल में पहाड़ के लोगों व प्रगतिशील बुद्धिजीवियों के लिए
पर हमारे बुद्धिजीवी भी सत्ता के षड़यंत्रों के आसान शिकार बन गए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बीमारी से बचाव के लिए शारीरिक दूरी अपनाने की सलाह दी थी। पर हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे बदल कर अपनी राजनीति के माफिक ढाला और सामाजिक दूरी का नारा दे दिया। ऐसा करके मोदी सरकार ने व्यक्ति को समाज से अलगाव में डाल दिया और देश के संशाधनों को पूंजीपतियों के लिए सुलभ कर मेहनतकशों को उससे वंचित कर दिया। जबकि शारीरिक दूरी और सामाजिक एकता के बल पर और संशाधनों का सार्वजनिक स्वामित्व के जरिये ही इस बीमारी से लड़ा जा सकता है।