कृषि और खाद्य भंडारण क्षेत्र को कारपोरेट के हवाले करने का पैकेज

मोदी सरकार का आर्थिक पैकेज


कोरोना संकट की आड़ में कृषि और खाद्य भंडारण क्षेत्र को कारपोरेट के हवाले करने की घोषणा


पुरुषोत्तम शर्मा


किसानों के नाम पर तीसरे दिन भी वित्तमन्त्री की प्रेस कांफ्रेंस में फिर से उन्हीं आंकड़ों को जारी कर पहले किसानों को धोखा देने की चालाकी बरती गई। पर हां अंत आते-आते वित्तमन्त्री कृषि क्षेत्र में कारपोरेट का दखल बढाने के मोदी सरकार के असली मंशूबे की पैकेजिंग करने लगी।


1  अपने 20 लाख के हवाई कोरोना पैकेज की घोषणा करते हुए प्रधान मंत्री ने सुधारों के जिन 4 एल की चर्चा की थी, इसमें पहला एल लेंड यानी जमीन थी। मोदी सरकार कोरोना संकट की आड़ में देश के भूमि सुधार कानून 2013 को फिर से बदल कर जमीन की कारपोरेट लूट का रास्ता खोलने जा रही है। जबकि देश के किसान तीन बार मोदी सरकार को ऐसे बदलाव वापस लेने पर मजबूर कर चुके हैं।


2 - मोदी सरकार "आवश्यक वस्तु अधिनियम" में संशोधन करेगी। अब यह अधिनियम सिर्फ आपदा या संकट काल में ही लागू किया जाएगा।  बाकी दिनों में जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं के भंडारण की कोई सीमा नहीं रहेगी। ताकि जमाखोर और व्यापारी आवश्यक वस्तुओं का कृतिम अभाव पैदा कर उनकी कालाबाजारी के जरिए जनता की लूटने की खुली कानूनी छूट पा सकें।


3 - मोदी सरकार "एग्रीकल्चर मार्किटिंग एक्ट" में बदलाव करेगी। इसका मतलब क्या है? इस बदलाव के तहत किसानों की फसलों की जिस खरीद को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार की एजेंसियों को करना पड़ता था, वह व्यवस्था खत्म की जाएगी। अब व्यापारी व विचौलिए गांवों में किसानों की फसल को अपने भाव पर खरीदने के लिए स्वतंत्र होंगे। अनाज के भंडारण की जो व्यवस्था पहले भारतीय खाद्य निगम करता था, उसकी जगह अब प्राइवेट कंपनियों को यह अधिकार सौंपा जाएगा। मंडी एक्ट में बदलाव कर सरकारी मंडियों की जगह प्राइवेट मंडियां ले लेंगी। इस तरह से फसलों की खरीद, भंडारण और विपणन पर पूरी तरह कारपोरेट का कब्जा हो जाएगा।


4 - वित्तमन्त्री के अनुसार मोदी सरकार कृषि क्षेत्र के लिए एक "जोखिम रहित कानूनी ढांचा" लाएगी। ताकि किसान को फसल बोते समय उससे प्राप्त होने वाले मूल्य की जानकारी मिल जाए और किसानों की फसलों की गुणवत्ता सुधरे।


यह जोखिम रहित कानूनी ढांचा और कुछ नहीं देश में खेती के कारपोरेटीकरण की जमीन तैयार करने के लिए पूरे देश में कांट्रैक्ट खेती को कानूनी रूप देना है।
इस कानून के आने के बाद कारपोरेट कंपनियां किसानों की जमीनों पर अपने ज्यादा मुनाफे की फसलों का उत्पादन कराकर उसे निश्चित भाव पर खरीदने की गारंटी देगी। इससे बीज, उत्पादन और विपणन के लिए हमारी खेती कारपोरेट कंपनियों के मुनाफे के उत्पादों की गुलाम हो जाएगी। 


इसे समझना हो तो पिछले साल गुजरात और महाराष्ट्र में ऐसी ही कांट्रेक्ट खेती में पेप्सी को कम्पनी के चिप्स बनाने वाली कम्पनी के लिए आलू उगाने वाले कुछ किसानों की कहानी सुनें। उन किसानों ने वही आलू बाजार के लिए उगाया तो कंपनी ने कई किसानों पर मुकदमा कर कोर्ट से आदेश करा कर उन्हें जेल भिजवा दिया। कम्पनी के लोग गांवों में किसानों के खेतों व घरों में छापे डालने लगे कि कहीं हमारी क्वालिटी का आलू किसान बाहर के लिए पैदा तो नहीं कर रहे?


फिर जब खेती कारपोरेट के हाथ जाएगी तो वह अनाज के बजाए मुनाफे के उत्पाद पैदा कराएंगे जिससे खाद्य सुरक्षा को गम्भीर खतरा पैदा हो जाएगा। जबकि किसान  अपने परिवार और देश के लिए 15 वर्षों से घाटे की खेती के बावजूद खाद्यान का उत्पादन कर रहा है। 


इस लिए भारत के किसानों के लिए मोदी सरकार का यह कोरोना आर्थिक पैकेज पूरी तरह किसानों की तबाही और खेती के कारपोरेटीकरण का पैकेज है। जो न सिर्फ किसानों के खिलाफ है बल्कि भारत जैसी दुनियां की सबसे बड़ी आबादी के देश की खाद्य सुरक्षा के लिए भी गम्भीर खतरा है।