फिर क्यों करते रहे भाजपा - आरएसएस प्रतिनिधिमंडल चीन की यात्राएं
इस एमओयू में क्या है यह तो कांग्रेस पार्टी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ही बता सकती है। इस संबंध में एक याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी है और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने चीन से साठ-गांठ के आरोप भी लगाए हैं । सरकार को इस गंभीर मामले की जांच करानी चाहिए।
भाजपा महासचिव राम माधव जो 2009 में खुद एक शिष्टमंडल के साथ चीन जा चुके थे, ने इसे एक गुडविल विजिट बताया था। 2014 की इस यात्रा के पहले राम माधव सितंबर 2014 में भी बीजिंग गए थे और उन्होंने वहां शी जिनपिंग की बाद में होने वाली भारत यात्रा की पृष्ठभूमि तैयार की थी। जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत आये थे तो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच भाजपा और सीपीसी के बीच नियमित और बेहतर विचार-विमर्श की भूमिका और कार्यक्रम भी बना था।
शिष्टमंडल के एक सदस्य के अनुसार, “पार्टी अनुशासन का पाठ समझना और चीन की आर्थिक नीतियों और विदेश नीति पर उसके नियंत्रण को समझ कर हम भारत में उसकी नीतियों के अनुसार काम कर सकते हैं।" यह शिष्टमंडल चीनी थिंक टैंक और विधि निर्माताओं से भी मिलेगा और "चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के आंतरिक सांगठनिक ढांचा, राजनीतिक क्रिया कलाप, और लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना में उसकी भूमिका का अध्ययन करेगा।” प्रतिनिधिमंडल की यात्रा से पहले ऐसा कहा गया था।
इस प्रकार हम देखते हैं कि 2008 से 2019 तक भाजपा के नेताओं और सीपीसी के नेताओं की मुलाकात का सिलसिला लगातार चलता रहा है। कांग्रेस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच 2008 में हुई मुलाकात पर अगर सरकार को लेशमात्र भी संदेह है कि वह मुलाकात भारत विरोधी कोई कृत्य है तो सरकार कार्यवाही करने के लिए सक्षम है। लेकिन अगर कांग्रेस और सीपीसी के बीच कोई विचार विमर्श हुआ है तो भाजपा ने तीन अवसरों पर अपने शिष्टमंडल भेजे हैं, फिर उसे किस नजर से देखा जाय?
इस प्रकार हम देखते हैं कि 2008 में कांग्रेस और सीपीसी के नेताओं से मुलाकात के बाद 2009 से 2019 तक भाजपा के नेताओं और सीपीसी के नेताओं से मुलाकात का सिलसिला बराबर चलता रहा है। कांग्रेस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच 2008 में हुई मुलाकात पर अगर सरकार को लेशमात्र भी सन्देह है कि वह मुलाकात भारत विरोधी कोई कृत्य है तो सरकार कार्रवाई करने के लिये सक्षम है। लेकिन अगर कांग्रेस पार्टी के सीपीसी से 2008 में विचार विमर्श में कोई संदेह है तो भाजपा की सीपीसी से तीन मुलाकातों को किस नजर से देखा जाय?
(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं। जनचौक से साभार)