बाघ का हमला और खाकी के खौफ में जीते गरीब

बाघ के हमले और खाकी की खौफ़,


प्रकाश अधिकारी


गोयल कॉलोनी पीलीभीत (उत्तर प्रदेश) के लोगों की आँखो में स्पष्ट देखा जा सकता है। लगातार हो रहे बाघ के हमलों से भयभीत लोगों की गुहार कौन सुने? अपनों के खोने का दर्द और पुलिसिया बर्बरता ने इन्हें असहाय बना दिया। उस पर जनप्रतिनिधियों द्वारा अनदेखी और शासन-प्रशासन की गैर जिम्मेदाराना रवैया से, बचने-बढ़ने की आस खोते जा रहे हैं।


ये लोग अपनी वजूद बनाये रखने के लिये आक्रोशित हो कर 'अपने जिंदा होने' का एहसास कराते हैं। जीने की इस जद्दोजहद भरी चीख़ को,पुलिसिया डंडों तले चुप करने की कोशिशें जारी है। उत्तर प्रदेश के पीलीभीत टाइगर रिजर्व के माला रेंज के जंगल से सटे 8 गांव बंगालियों समुदाय का हैं।


जंगल में बाघों को संरक्षित किये जा रहे हैं। मात्र 400 मीटर की दूरी पर बसे है गांव। जंगल किनारे तारबाड़ से घेराबंदी तो गए, जो नाकाफ़ी है। अपने खेत खलियानों की रखवाली और खेती करने से डरे हुए छोटे किसान-मजदूर पलायन कर रहे है। असहाय लोगों को बाघ ने अपना निवाला बनाना शुरू किया। बाघ के हमलों की फ़ेहरिस्त लम्बी है।


लॉक डाउन की अवधि में इस पंचायत क्षेत्र से बाघ के हमले से 4 की दर्दनाक मौत और 2 गंभीर रूप से घायल अपने जिंदगी और मौत से लड़ रहे हैं। वन विभाग से संसाधनों की अभाव व लापरवाही की वजह से दर्जनों लोग, अपनी जान गवाँ चुके हैं।


विगत दिनों माला रेंज में बाघिन के हमले से सुमिन्दर विश्वास की मौत के बाद लोगों की सब्र का टूट गए। वन विभाग को सूचना देने के बावजूद भी कोई (गैरजिम्मेदार) अधिकारियों के न आने से, ग्रामीण आक्रोशित हो गए। पीड़ितों को आक्रोशित होते देख जिम्मेदार(गैरजिम्मेदार) अधिकारियों का वहाँ से खिसक जाना उनके उनके घोर लापरवाही को दर्शाता हैं।


अपनी सुरक्षा की गुहार लगाते ग्रामीणों ने, शव रख कर अपनी दर्द को (बहरी) शासन-प्रशासन तक पंहुचाना चाहते थे। उच्च अधिकारियों से सुरक्षा की मांग रखी,पर कहते है न "जिसकी लाठी उसकी भैंस"। शव से लिपट कर रो रहें, पीड़ित परिजन, महिला-बच्चों को पुलिस द्वारा बेरहमी से पीटना, क्या कानून के रखवालों का विभक्त चेहरा उजागर नहीं करते हैं?


ग्रामीणों के साथ जानवरों जैसा सलूक करते हुए लाठीचार्ज किया गया। जनप्रतिनिधियों की अनुपस्थिति, पुलिस की मनमानी तौर पर पीड़ित परिवार व ग्रामीण महिलाओं-बच्चों पर लाठी बरसाना, मौलिक अधिकार की बात करना, इनके लिए शायद त्रासदी हैं।


इस घटना के बाद पुलिस प्रशासन गोयल कॉलोनी को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया। खाकी के ख़ौफ़ से गोयल कॉलोनी के ग्रामीण बेहद डरे हुए हैं, व पलायन कर रहे हैं। इसीलिए शीर्षक दिया गया-"आदमखोरों के साए में जीते निरीह लोग"। दूसरी कड़ी में दबिश के दौरान रात 2:00 बजे पुलिस फोर्स ने घरों से उठा- उठा कर, मारते-पीटते हुए अपने साथ ले गए।


लगभग 30 नामजद और 115-120 अज्ञात लोगों पर विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किये गए। मृतक के भाई की पत्नी व अन्य ग्रामीणों को उठा ले गए। इनकी पीड़ा सुनने वाला कौन? कहाँ गए वे लोग? जो मानव-हितैषी, समाज-हितैषी के दम भरते हैं?


(रिपोर्ट के छपने से पूर्व भाकपा (माले) जिला सचिव कामरेड देवाशीष ने बताया कि वे पीड़ितों से लगातार संपर्क में हैं। अभी पुलिस ने पीड़ित लोगों पर मुकदमा कर दिया है। पकड़े गए ज्यादातर लोगों को निजी मुचलके पर छोड़ा गया है। उन्हें लॉक डाउन कहने के बाद कोर्ट से जमानत कराने को कहा गया है। - संपादक)