अलविदा स्वामी अग्निवेश


अलविदा स्वामी अग्निवेश

 

पुरुषोत्तम शर्मा

 

आज के दौर में स्वामी अग्निवेश का हमारे बीच से जाना भारत में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए चल रहे आंदोलनों की बड़ी क्षति है। स्वामी अग्निवेश आजीवन उत्पीड़ित जनता के पक्ष में लड़ते रहे। आजाद भारत में बंधुआ मजदूरों की मुक्ति की ऐतिहासिक लड़ाई उन्होंने लड़ी।

 

मेरी स्वामी अग्निवेश से मुलाकात 1981 में हुई। जब कामरेड नागभूषण पटनायक की रिहाई के लिए दिल्ली में हमने एक संयुक्त संघर्ष समिति बनाई थी। उसमें जुड़ने वाले तमाम जन संगठनों में बंधुआ मुक्ति मोर्चा भी था। स्वामी अग्निवेश को उस समिति का सह संयोजक बनाया गया था। उन दिनों वे हरियाणा भवन में रहते थे। वहीं इस संघर्ष समिति की ज्यादातर बैठकें होती थी।

 

कामरेड नागभूषण पटनायक की रिहाई के लिए सरकार मजबूर हुई। उसके बाद भी बंधुआ मजदूरों  के प्रदर्शनों, छत्तीसगढ़ में शंकर गुहा नियोगी के नेतृत्व में चले मजदूरों के आंदोलन का दमन, बिहार में सामंती गिरोहों द्वारा किये जा रहे जन संहारों आदि के सवाल पर वे कई बार हमारे साथ संयुंक्त आंदोलनों में रहे। 

 

देश भर के आंदोलनों के बीच समन्वय बनाने को लेकर दिल्ली में होने वाली 90 दशक की संयुक्त बैठकों में भी हम एक साथ शामिल होते थे। इन बैठकों में शंकर गुहा नियोगी, मेधा पाटकर, डॉ शमशेर सिंह बिष्ट, शरद जोशी, भूपेन्द्र सिंह मान, स्वपन मुखर्जी, कामरेड मुल्कराज, शमशुल इश्लाम, आनंद स्वरूप वर्मा आदि कई महत्वपूर्ण राजनीतिक कार्यकर्ता हिस्सा लेते थे।

 

मोदी दौर में स्वामी अग्निवेश पर दो बार भगवा गुंडों ने संगठित हमला किया। झारखण्ड में उन पर भगवा गुंडों द्वारा किए गए हमले के बाद अपनी पार्टी भाकपा (माले) की ओर से मैं और कामरेड राजेन्द्र प्रथोली उन्हें समर्थन देने उनके जंतर मंतर स्थित कार्यालय गए थे। उसके बाद भी वे जंतर मंतर और संसद मार्ग पर होने वाले प्रदर्शनों में शामिल होते रहे।

 

स्वामी अग्निवेश को भाकपा (माले)  और अखिल भारतीय किसान महासभा की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि।