वर्तमान किसान आन्दोलन की पृष्ठभूमि

वर्तमान किसान आन्दोलन की पृष्ठभूमि 

पुरुषोत्तम शर्मा

"किसानों का दिल्ली पड़ाव" पुस्तक अंश गतांग से आगे.......

आज दिल्ली के बार्डरों और देश भर में जिस किसान आन्दोलन की लहर आपको दिख रही है, उसकी बुनियाद घाटे की खेती के कारण 2017 तक ही देश में साढ़े तीन लाख किसानों की आत्महत्या और मध्य प्रदेश के मंदसौर में 6 जून 2017 को पुलिस की गोली से हुई 6 युवा किसानों की हत्या के बाद उपजा किसानों का आक्रोश है. मंदसौर में प्रधानमंत्री के वायदे के अनुसार फसलों की लागत का डेढ़ गुना दाम की मांग पर किसानों का आन्दोलन चल रहा था, जिसमें भाजपा की शिवराज सरकार की पुलिस ने 6 युवा किसानों को पकड़-पकड़ कर ठंडे दिमाग से गोली मारी थी. इस गोलीकांड के बाद देश के कई प्रमुख किसान संगठनों ने 6 जुलाई 2017 को मन्दसौर जाकर शहीद किसानों को श्रद्धांजलि देने की घोषणा की. इसी प्रक्रिया में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआइकेएससीसी) अस्तित्व में आई, जिसने “कर्ज मुक्ति” और “लागत का डेढ़ गुना दाम” की दो सूत्रीय मांग पर मंदसौर से दिल्ली तक “किसान मुक्ति यात्रा” की घोषणा की. चार चरणों में चली इस किसान मुक्ति यात्रा में दर्जनों किसान नेताओं ने देश के 19 राज्यों में लगभग 12 हजार किमी की यात्रा की. देश भर में सैकड़ों जन सभाएं, सैकड़ों किसान सम्मेलन व गोष्ठियां तथा दिल्ली में 2 राष्ट्रीय रैलियाँ की गयी. लगभग 20 लाख किसानों से सीधे संवाद किया गया. इस पूरी मुहिम में एआइकेएससीसी से जुड़ने वाले संगठनों की संख्या 250 से ऊपर पहुंच गयी.


पंजाब में 17 जत्थेबंदियों (संगठनों) का एक साझा मंच किसानों के आंदोलनों की अगुवाई पहले से ही कर रहा था. उसके अलावा भी कुछ और साझे मंच और स्वतंत्र किसान संगठन सक्रिय थे. पर इनमें किसानों के मुद्दों पर एक आपसी समझ हमेशा बनी रही. इसी तरह कक्काजी के नेतृत्व वाला भारतीय किसान महासंघ, बलबीर सिंह राजोवाल के नेतृत्व वाला बीकेयू, राकेश टिकैत के नेतृत्व वाला बीकेयू जैसे किसान संगठन भी अलग से आन्दोलनों का आह्वान करते रहे. 29-30 नवम्बर 2018 को दिल्ली में हुई किसान संसद में किसानों ने “कर्जा मुक्ति” और “सी 2 + सहित उपज की कुल लागत का डेढ़ गुना दाम” से संबंधित दो विधेयक पास किये. जिन्हें बाद में सेतकारी संगठन के सांसद राजू शेट्टी और सीपीएम के राज्यसभा सांसद कामरेड रागेश ने लोकसभा व राज्यसभा में निजी विधेयकों के रूप में पेश किया. किसान आन्दोलन की इन कार्यवाहियों ने घाटे की खेती के कारण आत्महत्या को मजबूर भारत के किसानों की दो प्रमुख मांगों को राजनीतिक एजेंडे में ला दिया. विपक्ष की 21 पार्टियों ने इन मुद्दों को समर्थन दिया. हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में स्वयं प्रधानमंत्री के दावेदार नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने पर इन मांगों को पूरा करने का वायदा किया था. पर किसानों के राष्ट्रव्यापी आन्दोलन के बाद भी मोदी सरकार ने किसानों की इन दोनों मांगों के प्रति उपेक्षा का ही भाव दिखाया. 


उलटे कोरोना संकट की आड़ लेकर मोदी सरकार ने देश के संशाधनों के निजीकरण और कॉरपोरेटीकरण को रफ्तार देने के लिए आर्थिक सुधारों के नाम पर एक के बाद एक काले कानूनों की झड़ी लगा दी. उसी कड़ी में चार श्रम कोड बिलों के साथ ही खेती के कॉरपोरेटीकरण और अन्न के व्यापार व भंडारण को कॉरपोरेट के हाथ सौंपने सहित तीन कृषि अध्यादेशों को लाकर भारत के किसान आन्दोलन के ऐजेंडे पर अपना ऐजेंडा थोप दिया. इन तीन कानूनों के साथ ही मोदी सरकार बिजली सुधार अध्यादेश 2020 में बिद्युत विभाग के पूर्णतः निजीकरण और सबके लिए सामान रेट पर बिजली का प्रावधान ले आई. इसके चलते अब बड़े उद्योग, पांच सितारा होटल, एक बीपीएल परिवार और किसान के ट्यूबवैल पर एक ही रेट में बिजली मिलेगी. इसी तरह वायु प्रदूषण के लिए लाए गए मोदी सरकार के अध्यादेश में पराली जलाने वाले किसान के लिए एक करोड़ रूपए तक जुर्माने और पांच साल तक की सजा का प्रावधान रखा गया है. इन कानूनों ने किसान आन्दोलन के पूरे विमर्श को ही बदल दिया. जो किसान आन्दोलन पिछले साढे तीन साल से कर्ज मुक्ति और लागत का डेढ़ गुना दाम की मांग पर केन्द्रित था, वह अब खेती के कारपोरेटीकरण और खाद्य सुरक्षा पर खतरे के खिलाफ मुड़ गया. 



नए हालात में पंजाब के किसानों ने दिखाया संघर्ष का रास्ता 


खेती किसानी की तबाही के दस्तावेज के रूप में मोदी सरकार के तीन कृषि अध्यादेशों का मुखर विरोध पंजाब की धरती से हुआ. पंजाब के किसान संगठनों और एआइकेएससीसी से जुड़े संगठनों ने इन काले कानूनों के खिलाफ 9 अगस्त 2020 को पूरे देश में “कॉरपोरेट खेती छोड़ो” दिवस मनाया. इस विरोध दिवस में लाखों किसानों ने देश भर में भागीदारी की. बाद में इन अध्यादेशों को गैर संसदीय परम्परा से संसद में जबरन पास कराने की मोदी सरकार की कार्यवाही के बाद तो पंजाब का किसान सड़कों पर उतर आया. मध्य सितम्बर के बाद ही पंजाब में स्थाई धरने, चक्का जाम, रेल रोको जैसे कार्यक्रम किसानों ने शुरू कर दिए. बदली हुई स्थितियों में पंजाब के 31 किसान संगठनों ने एक साझा मोर्चा बनाया. 25 सितम्बर को पंजाब बंद और देश भर में प्रतिरोध कार्यक्रम की घोषणा पंजाब के संगठनों और एआइकेएससीसी ने मिलकर की. इस कार्यक्रम को देश भर में किसानों का व्यापक समर्थन मिला. कर्नाटका में भी बंद सफल रहा. कर्नाटक में पुलिस दमन के विरोध में फिर 28 सितम्बर को किसान संगठनों ने बंद की घोषणा की. दक्षिण भारत से लेकर पूर्वोत्तर के असम तक भी लाखों किसान प्रतिरोध कार्यक्रम में उतरे. 


किसानों द्वारा एक अक्टूबर 2020 से पूरे पंजाब में रेलवे लाइनों, टोल नाकों, रिलायंस के पैट्रोल पम्पों, अम्बानी-अदानी के रिटेल स्टोर व गोदामों पर अनिश्चित कालीन धरना शुरू कर उनकी आर्थिक गतिविधियों को ठप्प कर दिया गया. किसान संगठनों ने इन काले कानूनों को जबरन पारित कराने वाले भाजपा सांसदों, उनके सहयोगियों के घेराव व सामाजिक बहिष्कार की भी घोषणा कर दी. पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के गाँव में भी किसानों ने स्थाई धरना लगा दिया और उनसे एनडीए से बाहर आने की मांग की. पंजाब में हर ग्राम पंचायत में इन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पास किये जाने लगे. किसानों के आन्दोलन का यही दबाव था कि पहले अकाली कोटे की केन्द्रीय मंत्री हरसिमरन कौर ने केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया और बाद में अकाली दल ने भी एनडीए से बाहर आने की घोषणा कर दी. पंजाब सरकार ने किसानों से रेल ट्रेक खाली करने की मांग की. अब किसानों ने पजाब की अमरिंदर सरकार पर दबाव बनाना शुरू किया कि वे पहले पंजाब विधान सभा में केंद्र के कानूनों को अप्रभावी बनाने वाले बिल लाएं. 


आन्दोलन के दबाव में पंजाब सरकार को तीनों कृषि बिलों को अप्रभावी बनाने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाना पड़ा. साथ ही केन्द्र के बिजली सुधार अध्यादेश 2020 के खिलाफ भी एक विधेयक पास किया गया. इन बिलों को राज्य विधानसभा में भाजपा के दो विधायकों के अलावा बाक़ी सभी विधायकों का समर्थन मिला. इसके बाद किसान संगठनों ने माल गाड़ी की आवाजाही के लिए रेलवे ट्रैक को खाली कर दिया. पर केंद्र सरकार ने राजनीतिक बदले की कार्यवाही के चलते एक माह बाद तक भी पंजाब में रेलें नहीं चलाई. 14 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने पंजाब के 29 किसान संगठनों को वार्ता के लिए दिल्ली बुलाया. मगर वार्ता में कोई भी केंन्द्रीय मंत्री उपस्थित नहीं था. किसान संगठनों ने नौकरशाहों से वार्ता करने से इनकार कर बैठक का बहिष्कार किया और कृषि भवन के बाहर आकर विरोध प्रदर्शन किया. 14 अक्टूबर को ही एआइकेएससीसी ने “एमएसपी अधिकार दिवस” के आह्वान के तहत देश भर की मंडियों के घेराव की घोषणा की थी. यह कार्यक्रम भी पूरे देश में सफल रहा. एआइकेएससीसी ने 26-27 नवम्बर को किसानों के “दिल्ली चलो” कार्यक्रम की योजना बनाई.


देश भर के सभी किसान संगठनों में एका बनाने के लिए 27 अक्टूबर को दिल्ली के गुरुद्वारा रकाब गंज में देश के तमाम किसान संगठनों की एक साझा बैठक एआइकेएससीसी ने बुलाई. बैठक में एआइकेएससीसी के घटक संगठनों के अलावा कक्काजी के नेतृत्व वाला भारतीय किसान महासंघ, भाकियू राजोवाल, भाकियू चढूनी, भाकियू उग्रराहां सहित कई अन्य किसान संगठन भी शामिल हुए. सभी संगठनों ने एक साझे मंच में एकताबद्ध होकर इस लड़ाई को लड़ने पर सहमति दी. इस साझे मंच में शामिल देश भर के किसान संगठनों की संख्या अब 500 से ऊपर हो चुकी थी. उग्रराहां ने कार्यक्रमों पर तो सहमती दी पर साझे मोर्चे के बारे में निर्णय बाद में बताने को कहा. इस बैठक में 5 नवम्बर को पूरे देश में चक्का जाम आन्दोलन की घोषणा की गयी. साथ ही 26-27 नवम्बर को किसानों के “दिल्ली मार्च” का एलान किया गया. रेल सुविधा अभी भी सामान्य न होने के कारण पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और यूपी के किसानों से दिल्ली आने का आह्वान किया गया. बाक़ी दूर के राज्यों में किसानों से ब्लाक, तहसील, जिला व राज्य मुख्यालयों पर धरने-प्रदर्शन करने का आह्वान किया गया. इन कार्यक्रमों को संचालित करने के लिए साझे मंच की ओर से एक 7 सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया.



किसानों को रोकने के लिए बने भारी बैरीकेटों को तोड़ते दिल्ली की ओर बढे किसान


26-27 नवम्बर 2020 को दिल्ली मार्च के लिए निकले पंजाब और हरियाणा के किसानों के जत्थों को रोकने के लिए हरियाणा की भाजपा सरकार ने पूरी तैयारी की थी. हरियाणा की खट्टर सरकार द्वारा दुश्मन की सेना को रोकने जैसी तैयारी के बैरीकेट हरियाणा-पंजाब के बॉर्डर के हर प्रवेश द्वार व हर जिले की सीमाओं में लगा दिए गए थे. 26 नवम्बर की दोपहर किसान महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड रुलदू सिंह मानसा के नेतृत्व में मालवा क्षेत्र के पांच जिलों के दसियों हजार किसान 400 ट्रैक्टर, दर्जनों ट्रक व सैकड़ों कारों, मोटरसाइकिलों पर सवार होकर बामणवाला बॉर्डर पर लगे भारी बैरीकेटों के पास पहुँच गए. बामणवाला बेरीकेट पर पहुंचे किसानों का काफिला बढ़ता जा रहा था. उधर अम्बाला के पास भी हरियाणा सीमा के शम्भू बार्डर पर भी इसी तरह के बैरीकेट लगाकर पंजाब के किसानों के जत्थों को रोका गया था. वहां के लगभग 20 हजार किसानों के जत्थों का नेतृत्व बीकेयू नेता बलबीर सिंह राजेवाल और डॉ सतनाम सिंह अजनाला कर रहे थे. इसी बीच खबर आई कि करनाल जिले में किसानों का प्रवेश रोकने के लिए लगाए गए पुलिस बैरीकेट को हरियाणा में भाकियू चढूनी के नेता गुरुनाम सिंह चढूनी के नेतृत्व में किसानों ने तोड़ दिया है. फिर क्या था, बामणवाला व शम्भुजी बॉर्डर पर भी पुलिस बेरीकेट तोड़ने का निर्णय लिया गया.


कामरेड रुलदू सिंह के नेतृत्व में किसानों का यह बड़ा जत्था पुलिस बेरिकेटों को तोड़ते हुए हरियाणा में प्रवेश कर गया. पीछे से आ रहा 250 ट्रैक्टर ट्रालियों का दूसरा काफिला भी उनसे रात्रि विश्राम स्थल पर मिलने वाला था. बामणवाला बॉर्डर के बाद रतिया, सरदूलगढ़ व खनौरी में लगे भारी पुलिस बैरीकेटों को भी तोड़ते हुए यह जत्था रेवाड़ी की तरफ रात्रि विश्राम के लिए आगे बढ़ा. इस जत्थे में शामिल किसानों को दिल्ली की ओर सांपला बहादुरगढ़ बैरीकेट की तरफ जाना था. बामणवाला बॉर्डर के साथ ही किसानों ने अम्बाला के शम्भू बार्डर में भी पुलिस बेरीकेटों को तोड़ हरियाणा में प्रवेश किया. यहाँ पुलिस ने किसानों पर पानी की बौछार और आंसूगैस के गोले भारी मात्रा में दागे. पर दिल्ली कूच को आमादा किसानों को रोक पाना पुलिस के बस में नहीं था. बामणवाला व शम्भूजी अम्बाला बॉर्डर पर कंटीले तारों की बाड़ युक्त बैरीकेट, उसके पीछे क्रेनों से लगाए गए बड़े-बड़े बोल्डर और उसके पीछे भारी ट्रकों को तिरछा लगा कर पुलिस ने तीन स्तर की बैरीकेटिंग की थी. पर किसानों ने इन सभी बाधाओं को पार कर हरियाणा में प्रवेश कर लिया. पुलिस बैरीकेटों को तोड़ते वक्त युवा किसानों का उत्साह देखने लायक था. हालांकि दमन के बावजूद आन्दोलन पूरी तरह अनुशासित रहा. 

26 नवम्बर की रात को हरियाणा पुलिस ने दिल्ली जाने वाले सभी राष्ट्रीय राजमार्गों और सड़कों पर गहरी चौड़ी खाइयां खुदवा कर चार स्तर की बैरिकेटिंग व्यवस्था कर दी थी. पर हरियाणा और पंजाब के किसानों के जत्थों ने उन्हें भी भर कर आगे कूच किया और 27 नवम्बर को दिल्ली के सिंघु व टीकरी बार्डरों पर पहुँच गए. उधर उत्तर प्रदेश पुलिस ने भी आंदोलनकारी किसानों को दिल्ली न पहुँचने देने के लिए ऐसी ही तैयारी की थी. नर्मदा बचाओं आन्दोलन की नेता मेधा पाटकर और लोक संघर्ष मोर्चा की नेता प्रतिभा सिंदे के नेतृत्व में आए मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक के 400 किसान कार्यकर्ताओं के जत्थे को 26 नवम्बर को ही आगरा जिले के बॉर्डर पर रोक दिया गया. ये लोग वहीं धरने पर बैठ गए. उत्तराखंड से सटे रामपुर बॉर्डर पर यूपी पुलिस ने उत्तराखंड से तराई किसान संगठन के नेता तेजेंद्र विर्क के नेतृत्व में आए किसानों के जत्थे को भी रोक दिया. किसानों ने वहीं सड़क पर ही धरना दे दिया. 


दिल्ली पुलिस ने लगातार मांग के बावजूद किसानों को दिल्ली के रामलीला मैदान में धरने के लिए इजाजत नहीं दी थी. किसान संगठनों ने अपनी साझा बैठक में तय किया था कि दिल्ली मार्च में पुलिस जहां रोकेगी वहीं सड़क पर धरने लगा देने हैं. परन्तु जब पुलिस ने हरियाणा में भी किसानों को प्रवेश की इजाजत नहीं दी तो किसानों ने पुलिस बैरीकेटों को तोड़ दिल्ली की तरफ बढ़ने का फैसला लिया. इधर दिल्ली के सिंघु व टीकरी बॉर्डर पर जमे किसान दिल्ली प्रवेश की मांग पर अड़े रहे. जब पुलिस ने इजाजत नहीं दी तो 27 नवम्बर को दोपहर बाद टीकरी बॉर्डर से पुलिस बेरीकेट को तोड़ किसानों के जत्थे दिल्ली में प्रवेश करने लगे. अभी लगभग 20 ट्रैक्टर ही दिल्ली सीमा में प्रवेश किए थे, सूचना मिली कि पुलिस ने बुराड़ी का निरंकारी मैदान धरने के लिए दे दिया है और किसानों ने बुराड़ी जाना है. मौके पर मौजूद किसान नेतृत्व ने तत्काल फैसला लेकर बुराड़ी जाने से इनकार कर दिया और वहीं बॉर्डर पर जमे रहने का फैसला किया. उधर 26 नवम्बर को तमाम रुकावटों के बाद भी दिल्ली के जंतर-मंतर पर किसानों और मजदूरों ने प्रदर्शन किया. उनके समर्थन में छात्र संगठन आइसा और एसएफआई के कार्यकर्ता भी जंतर मंतर पर प्रदर्शन में शामिल हुए. 


जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करते किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव कामरेड पुरुषोत्तम शर्मा, अखिल भारतीय किसान सभा के नेता कृष्णा प्रसाद, जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष आईसी घोष सहित सैकड़ों लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया. गिरफ्तार होने वालों में कई ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता तथा आप पार्टी से बाहर निकले पंजाब के चार विधायक भी शामिल थे. अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव पुरुषोत्तम शर्मा को जंतर-मंतर पर तब गिरफ्तार किया गया जब प्रदर्शन के बाद जनचौक की संवाददाता बीना उनका इंटरव्यू ले रही थी. पुलिस ने बार बार बताने पर भी कि बीना पत्रकार हैं, उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया. वहीं गुरुग्राम से किसानों के जत्थे के साथ दिल्ली आ रहे स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव को भी पुलिस ने गुरुग्राम में गिरफ्तार किया. शाम तक सभी गिरफ्तार लोगों को छोड़ दिया गया. 28 नवम्बर से भाकियू टिकैत के कार्यकर्ताओं ने दिल्ली यूपी को जोड़ने वाले गाजीपुर बॉर्डर पर भी किसानों का मोर्चा लगा दिया. बाद में यहां उत्तराखंड के किसानों का जत्था भी पहुँच गया. 2 दिसंबर को पश्चिमी यूपी के किसानों ने दिल्ली नोएडा लिंक मार्ग को भी चिल्ला बॉर्डर पर जाम कर दिया. इससे दिल्ली नोएडा प्रमुख लिंक मार्ग भी बंद हो गया है. उधर बड़ौत में क्षेत्र के किसान संगठनों ने बैठक कर 3 दिसम्बर से दिल्ली बागपत हाइवे पर मोर्चा लगाने का निर्णय लिया. इस फैसले से गुस्साई योगी सरकार की पुलिस 2 दिसम्बर की रात बड़ौत क्षेत्र के जुझारू और वरिष्ठ किसान नेता नरेंद्र राणा के घर पहुंच गई और उन्हें आंदोलन न करने की हिदायत देने लगी. 



जनता के सभी तबकों के सहयोग ने बनाया इसे ऐतिहासिक जन आन्दोलन 


किसानों के दिल्ली पड़ाव आन्दोलन को व्यापक जनता का इतना समर्थन मिलेगा, ऐसी उम्मीद केंद्र सरकार को नहीं थी. पिछले 30 वर्षों से आम तौर पर दिल्ली में होने वाली राष्ट्रीय रैलियों को दिल्ली वासी अच्छी नजर से नहीं देखते हैं. पर इस आन्दोलन के प्रति दिल्ली शहर का नजरिया बदला हुआ है. सरकार, सत्ताधारी पार्टी, आरएसएस, गोदी मीडिया के कुत्सित प्रचार के बावजूद समाज के विभिन्न हिस्सों से किसानों को जो सहयोग और समर्थन मिल रहा है, ऐसा दिल्ली व उसके आस-पास सिर्फ आजादी की लड़ाई के दौर में ही देखने को मिलता होगा. टीकरी और सिंघु बॉर्डर पर बड़ी संख्या में हरियाणा के किसानों के जत्थों के भी डेरा डालने के बाद सरकार के इस प्रचार पर लगाम लगी कि यह आन्दोलन सिर्फ पंजाब के किसानों का है. किसान लम्बी लड़ाई का मन बनाते हुए अपने साथ राशन, बिस्तर, बर्तन, गैस सिलेंडर व चूल्हा आदि लेकर ही निकले थे. बावजूद इसके हरियाणा के किसान गाँव-गाँव से राशन, सब्जी, दूध, लस्सी, गुड, मूंगफली, केले लेकर आ रहे हैं और किसानों के बीच जमकर बाँट रहे हैं. ईधन के लिए जलावनी लकड़ी और गैस भी किसानों को पर्याप्त मात्रा में निशुल्क ही बांटी जा रही है. 


फल व सब्जी मंडियों की संस्थाएं भी किसानों को निशुल्क सब्जी व फल बाँट रहे हैं. कुछ लोग तो खजूर और बादाम भी किसानों में बाँट गए. ट्रेडर्स एसोसिएशनों का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है, जिसके चलते आटा दाल, चीनी, चाय पत्ती, मसाले आदि की भी आंदोलनकारी किसानों को कोई कमी नहीं है. कई संस्थाओं ने लंगर भी लगाए हैं जिनमें रोजाना आन्दोलन को समर्थन देने आ रहे लोगों को पका हुआ भोजन भी मिल रहा है. किसान अपने ट्रेक्टरों की बैटरी से रात की रोशनी और मोबाइल चार्ज की व्यवस्था कर रहे हैं. क्षेत्र के व्यापारियों ने उन्हें बैटरी को निशुल्क चार्ज की व्यवस्था भी की है. कुछ संस्थाओं और कुछ स्थानीय डॉक्टरों ने मेडिकल कैम्प भी लगाए हैं. टीकरी बॉर्डर पर तो पंजाब के मानसा में आंदोलनों में मेडिकल कैम्प लगाने वाले डॉक्टर आंदोलनकारी किसानों के साथ ही आकर बॉर्डर पर अपनी सेवा दे रहे हैं. स्थानीय नर्सिंग होमों के डॉक्टर परामर्श शुल्क किसानों से नहीं ले रहे हैं. स्थानीय उद्योगों, कम्पनियों, व्यापारियों ने अपने सस्थानों के शौचालय और स्नानागार सुबह और शाम को आन्दोलनकारी किसानों के लिए खोल दिए हैं. प्रशासन ने सफाई और सचल शौचालय वाहनों की भी व्यवस्था की है. हांलाकि वह धरनों में बढ़ती संख्या के कारण कम पड़ती जा रही है.


किसानों के आन्दोलन के समर्थन में 10 केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें, पंजाब व कर्नाटक की फिल्म इंडस्ट्री, हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के कई नामी कलाकार, लोक गायक, लेखक, पत्रकार खुल कर साथ आए हैं. देश के बड़े पुरुस्कार प्राप्त दर्जनों जाने-माने खिलाड़ियों, बड़े मैडलों से नवाजे गए सैकड़ों भूतपूर्व सैनिकों ने किसान आन्दोलन के पक्ष में अपने पुरस्कार और मैडल लौटाने की घोषणा कर दी है. पद्म पुरस्कार प्राप्त कुछ विशिष्ठ लोगों और ग्राम पंचायतों में भी पुरस्कार प्राप्त सरपंचों ने सरकार को अपने पुरस्कार लौटाने की घोषणा कर दी है. आइएएस/आइपीएस सहित अन्य ऊंचे पदों पर बैठे या रिटायर्ड सैकड़ों नौकरशाहों ने भी किसान आन्दोलन का पूरा समर्थन किया है. हालांकि आन्दोलन के मंच पर किसी भी राजनीतिक नेता को नहीं बोलने दिया जाता है, फिर भी वामपंथी पार्टियों सहित देश की विपक्ष की सभी पार्टियों का समर्थन किसान आन्दोलन के साथ है. इस आन्दोलन के पक्ष में पूरी दुनिया में आवाज उठ रही है. ब्रिटेन की संसद हो या कनाडा के राष्ट्रपति का वक्तव्य. दुनिया के सभी लोकतंत्र पसंद, न्याय पसंद और साम्राज्यवादी व कारपोरेट लूट के खिलाफ लड़ने वाली आवाजें भारत के वर्तमान किसान आन्दोलन को अपना नैतिक समर्थन दे रही हैं.



पंजाब में अब भी धरने यथावत, संघर्ष में जुटे लोगों के घर की जिम्मेदारी संभाली ग्रामीणों ने   


पंजाब से भारी संख्या में किसानों के दिल्ली मार्च में आने के बावजूद पंजाब में ढाई माह से चल रहे किसानों के धरने बदस्तूर जारी हैं. रेलवे स्टेशनों, रिलायंस के पैट्रोल पम्पों, अदानी-अम्बानी के मॉल और जियो के सेंटरों पर किसानों के धरने बदस्तूर जारी हैं. उन धरनों का नेतृत्व करने के लिए किसान संगठनों के नेताओं का एक छोटा हिस्सा पंजाब में ही रोका गया है. पंजाब में चल रहे इन धरनों में अब भारी संख्या में महिलाओं और युवाओं ने मोर्चा संभाल रखा है. दिल्ली पड़ाव की कहानियां पंजाब में आन्दोलन को जारी रखने के लिए रुके लोगों को दिल्ली की तरफ आकर्षित कर रही हैं. ऐसे में कार्यकर्ताओं की अदला-बदली लगातार हो रही है. मगर हर अदला-बदली में पंजाब लौटने वालों से ज्यादा दिल्ली बॉर्डर आने वालों की संख्या हो रही है. इससे आन्दोलन के मोर्चे पर किसानों की भागीदारी लगातार बढ़ रही है. 


दिल्ली मोर्चे पर आए किसानों की खेती व परिवार की जिम्मेदारी किसानों की ग्राम कमेटियों की है. ऐसी पंजाब में किसान आन्दोलन की परम्परा रही है. अगर कोई कार्यकर्ता किसान आन्दोलन में लम्बे समय के धरने या जेल में जाता है, तो गाँव के लोग उसकी खेती और परिवार की देखभाल किसान संगठनों की ओर से करते हैं. ऐसे परिवार में आने वाली आर्थिक जिम्मेदारियों को भी किसान संगठन ही उठाते हैं. इस आन्दोलन में भी यही हो रहा है. यहां तक कि आन्दोलन में गए कार्यकर्ता के परिवार के निशुल्क इलाज की भी जिम्मेदारी किसान संगठनों की इकाइयां संभालती हैं. किसान आन्दोलन में किसान परिवारों की कई पीढ़ियाँ आन्दोलन में हिस्सा लेती हैं. एक ही परिवार की दो, तीन, चार पीढ़ियों के सदस्य आपको इस आन्दोलन में भागीदारी करते दिखेंगे. दिल्ली पड़ाव आन्दोलन में टीकरी बॉर्डर आन्दोलन की कमान संभाल रही टीम की एकमात्र महिला किसान नेता जसबीर कौर नत्त का तीन पीढ़ियों का पूरा परिवार टीकरी बॉर्डर पर डटा मिला. उनके पति सुखदर्शन नत्त, बेटा, बेटी, बहू और छोटा सा पोता सब के सब घर खेती छोड़ आन्दोलन के मोर्चे पर डटे मिले. उनका परिवार पंजाब किसान यूनियन से जुड़ा है. यह पंजाब के किसान आन्दोलन की परम्परा है.