लखीमपुर खीरी कांड, भाग-3, शहीद के घर पर शव के साथ दिन भर दिया धरना


पुरुषोत्तम शर्मा

हम सुबह 8 बजे से पहले ही चौखड़ा फार्म स्थित शहीद लवप्रीत के घर पहुँच गए. उनके घर के पास तब तक भारी पुलिस फोर्स की तैनाती हो चुकी थी.  उस वक्त कम ही लोग उनके घर पर थे.  हमारी टीम ने लवप्रीत के पिताताऊ आदि परिवार जनों से बातचीत की. उनके रिस्तेदारों ने माना कि रात में हम लोग हस्तक्षेप न करते तो प्रशासन के दबाव में शहीद की अंतेष्टि रात के अंधेरे में ही हो जाती. हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड रुलदू सिंह मानसा ने परिवार से पूछा क्या उन्हें एफआईआर की कापीपोस्टमार्टम रिपोर्ट और मुआवजा मिल गया है? उन्होंने बताया की कुछ भी नहीं. कामरेड रुलदू सिंह मानसा ने कहा कि अब आपको प्रशासन से पहले एफआईआर की कापीपोस्टमार्टम रिपोर्ट की मांग करनी है. उन्हें देखकर जब हम संतुष्ट होंगे तभी अंतेष्टि होगी.  क्योंकि अगर हमने पहले अंतेष्टि कर दी और बाद में पता चला कि एफआईआरपोस्टमार्टम रिपोर्ट ठीक नहीं है तो हम कुछ नहीं कर पाएंगे. उन्होंने कहा हम आपके साथ यहीं धरना देकर बैठे हैं. जब इसका समाधान होगा तभी अंतेष्टि होगी. उसके बाद परिवार ने प्रशासन के समुख उक्त मांग रख दी.  

 


अब प्रशासन के हाथ पाँव फूलने लगे. तत्काल एसडीएम पलिया मौके पर पहुंचे और एफआईआर की कापीपोस्टमार्टम रिपोर्ट बाद में ले आने का वायदा करने लगे. परिवार ने अंतेष्टि से मना कर दिया. बाद में जिलाधिकारी खीरी और एसपी खीरी भी मनाने पहुंचे पर बात नहीं बनी. भीड़ बढ़ती जा रही थी. किसान नेता वीएम सिंह भी वहाँ पहुंचे पर परिवार व लोगों द्वारा ज्यादा भाव न दिए जाने के कारण कुछ समय बाद लौट गए. इस बीच तृणमूल कांग्रेस की राज्य सभा सांसद डोला सेन के नेतृत्व में तृणमूल के तीन सांसदों का दल भी परिवार से मिल कर गया. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता भानु प्रताप सिंह के साथ ही जिले के तमाम किसान नेता और सामाजिक कार्यकर्ता भी यहाँ पहुँच रहे थे. एक बार फिर से जिलाधिकारी खीरीएसपी खीरी पहुंचे पर बात फिर नहीं बनी.

 

लगभग दो बजे किसान नेता राकेश टिकैत और हरियाणा के किसान नेता सुरेश कौथ भी वहाँ पहुंचे. उन्होंने बताया कि एफआईआर की कापीपोस्टमार्टम रिपोर्ट की मांग पर बाकी तीन शहीद किसानों की अंतेष्टि भी रोकी गई है. अंत में सायं तीन बजे जिलाधिकारी खीरी एफआईआर की कापीपोस्टमार्टम रिपोर्ट लेकर आए. 



इन दस्तावेजों की जांच वरिष्ठ अधिवक्ता भानु प्रताप सिंह ने की. उन्होंने कहा कानूनी रूप से एफआईआर और तीन शहीदों की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट ठीक हैमगर जिन शहीद की मौत गोली लगने से हुई है उसमें गोली का जिक्र नहीं है. इस पर प्रशासन से चौथे शहीद का फिर से मेडिकल कराने का समझौता होने के बाद बाकी तीन शहीदों की अंतेष्टि करने का फैसला मौके पर मौजूद किसान नेताओं और परिवार ने मिल कर लिया. इस तरह लगभग साढ़े तीन बजे शाम को शहीद लवप्रीत को अंतिम विदाई देकर उनकी अंतेष्टि की गई. उसके बाद हम इसी भगवंत नगर पंचायत में भाकपा माले नेता कामरेड सियाराम और कामरेड लक्ष्मी नारायण के घर गएजहां हमारी टीम के लिए भोजन बना था.  


भोजन के उपरांत सायं 5 बजे हम वापस दिल्ली की ओर चल पड़े. कामरेड प्रेम सिंह गहलावत के अपने पहले के परिचित खुटार के कोचर फार्म निवासी किसान और सामाजिक कार्यकर्ता गुरूपाल सिंह से रात को अपने फार्म पर हमारे ठहराने की बात की. हम खुटार गुरुद्वारे में पहुंचे. वहाँ चाय पीने के बाद गुरुपाल सिंह हमें अपने फार्म पर ले गए जहां हमने 5 अक्टूबर को रात्रि विश्राम किया. 6 अक्टूबर की सुबह नास्ते के बाद हम वहाँ से दिल्ली के लिए रवाना हुए. बरेली में हम अखिल भारतीय किसान महासभा के जुझारू नेता हरिनंदन पटेल के घर उनसे मिलने व चाय पीने गए. रास्ते में गढ़गंगा पर अमावस्या के नहान की भीड़ से हुए जाम में हम साढ़े तीन घंटे फंसे रहने के बाद देर शाम को दिल्ली पहुंचे.  

 


प्रशासन से हुए समझौते पर तैरते सवालों पर

 

लखीमपुर खीरी कांड पर प्रशासन के साथ हुए समझौते पर कई लोगों यहाँ तक कि संयुक्त किसान मोर्चे से जुड़े कुछ संगठनों ने भी सवाल उठाए हैं. कुछ लोगों ने तो इसे प्रशासनसरकार और हत्यारों की दलाली जैसे तगमों से भी नवाज दिया है. यहाँ तक कहा जा रहा है कि सरकार ने वहाँ पहुँचने की इजाजत सिर्फ राकेश टिकैत को ही दी थी. सवाल उठाने और आरोप लगाने में बड़ा अंतर होता है. आंदोलन के हित में सवाल उठाना कोई गलत बात नहीं है. अगर यही सच होता तो फिर अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य व राष्ट्रीय नेतृत्व की दो टीमेंतृणमूल कांग्रेस के तीन सांसदों की टीमहरियाणा के किसान नेता सुरेश कौंथपंजाब के किसान नेता राजिंदर पटियाला, कुलबीर वजीर, बाबा अनूपसिंह, उत्तर प्रदेश सिख संगत के नेता जसबीर सिंह विर्क, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता भानुप्रताप सिंहगाजीपुर बार्डर कमेटी के धर्मपाल सिंह और डी पी सिंह जैसे किसान नेता कैसे वहाँ पहुँच गए


असल में घटना स्थल पर वही किसान नेता नहीं पहुँच पाए जो दूसरे दिन भी देरी से चले। क्योंकि 4 अक्टूबर को सायं 3 बजे तक पोस्टमार्टम से पहले किसानों ने शवों के साथ धरना दिया था। और फिर 5 अक्टूबर सुबह 10 बजे तक राज्य का प्रशासन समझ रहा था कि शहीदों की अंत्येष्टि हो जाएगी।  पर जब वहां मौके पर मौजूद किसान नेताओं ने शहीदों के परिवारों के साथ मिलकर यह निर्णय ले लिया कि एफआईआर और पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट लिए बिना शहीदों की अन्तेष्ट नहीं होगी! तो प्रशासन के हाथ पांव फूलने लगे। शहीदों के शवों के साथ चले इन दोनों धरनों के बाद ही प्रशासन ने बाकी नेताओं को यहां पहुंचने से रोकने का निर्णय लिया होगा।

 


दूर रहकर आरोप लगाना और तीन दिन पुरानी लाशों को लेकर मृतक के परिवार के बीच बैठ पाने में बड़ा अंतर होता है. उस देश में जहां एक अदने से पुलिस के सिपासी के रिस्तेदार के खिलाफ एफआईआर लिखाना मुश्किल काम हैवहाँ आंदोलन के दबाव में 24 घंटे से भी कम समय में केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री के बेटे के खिलाफ 302 की एफआईआर और मंत्री के खिलाफ भी साजिश रचने की धारा 120 बी की एफआईआर होना किसान आंदोलन की कोई कम जीत नहीं है! 


जरूर 45 लाख रुपए का मुआवजा और एक नौकरी शहीद की पूर्ति नहीं कर सकता हैपर यह समझौता हर मायने में ठीक है. लखीमपुर खीरी कांड पर हुए समझौते पर आरोप लगाने वाले लोगों को अब आगे की बात करनी चाहिए. आंदोलन के दबाव में एफआईआर के आधार पर हत्यारे मंत्री पुत्र की गिरफ़्तारी हो चुकी है। अब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री की बर्खास्तगी और गिरफ्तारी की मांग पर आंदोलन को तेज कर सरकार को चौतरफा घेरने की कोशिश होनी चाहिए.  


गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी का आपराधिक पृष्ठिभूमि

क्षेत्र के लोगों ने बताया कि सांसद विधायक बनने से पहले का अपना इतिहास याद करने की धमकी देने वाले लखीमपुर खीरी कांड में आरोपी केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी का परिवार क्षेत्र में महाजनी यानी सूदखोरी का कार्य करता था। लोगों के अनुसार इनके परिवार के पास आज डेढ़ सौ एकड़ जमीन, एक पिटोल पंप, दो स्कूल हैं।

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री पर लखीमपुर खीरी जिले के ही तिकुनिया थाने में हत्याघर में घुसकर मारपीटबलवा आदि अपराधों में चार मुकदमे दर्ज थे. समाचार पत्रों में छपी खबरों के अनुसार अजय मिश्रा टेनी की तिकुनिया थाने में हिस्ट्री शीट भी खोली गई थी. हालांकि, बाद में हाई कोर्ट ने अजय मिश्रा की हिस्ट्री शीट को खारिज कर दिया था. दर्ज हुए मुकदमों की बात करें तो अजय मिश्रा टेनी पर तिकुनिया थाने में चार मुकदमे दर्ज थे. समाचार पत्रों के अनुसार अगस्त 1990 को तिकुनिया थाने में अजय मिश्रा टेनी के साथ लोगों पर हथियारों से लैस होकर मारपीट का आरोप लगाया गया था. जुलाई 2000 को इसी कस्बे के प्रभात गुप्ता की हत्या में अजय मिश्रा समेत चार लोग नामजद किए गए थे. 31 अगस्त 2005 को ग्राम प्रधान ने अजय मिश्रा टेनी समेत चार लोगों पर घर में घुसकर मारपीट और दंगा फसाद का मुकदमा दर्ज कराया था. 24 नवंबर 2007 को अजय मिश्रा समेत तीन लोगों पर घर में घुसकर मारपीट का चौथा मुकदमा दर्ज हुआ था. अजय मिश्रा पर 2005 और 2007 के मारपीट के मुकदमों में अजय मिश्रा का बेटा आशीष मिश्रा उर्फ मोनू भी नामजद था.

अजय मिश्रा पर दर्ज चार गंभीर मुकदमों में सबसे गंभीर मुकदमा प्रभात गुप्ता मर्डर केस का था. हत्या के इस मुकदमे में अजय मिश्रा टेनी निचली अदालत से बरी कर दिए गए. यह संयोग था कि 29 जून 2004 सुनवाई करने वाले जज ने अजय मिश्रा को हत्या के मुकदमे में बरी करने वाले जज का दूसरे ही दिन 30 जून 2004 रिटायरमेंट था. मृतक के परिवार ने कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में अपील दायर की और आज भी अजय मिश्रा हाई कोर्ट से जमानत पर हैं. इस मुकदमे में 12 मार्च 2018 से हाई कोर्ट ने भी सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा है. बीते सालों से फैसला सुरक्षित रखने पर हाई कोर्ट डबल बेंच में अपील दायर की गई है, जिस पर अक्टूबर 2021 में सुनवाई होनी है.