लखीमपुर खीरी कांड – किसान आंदोलन से निपटने का सत्ता संरक्षित नया क्रूर फार्मूला

पुरुषोत्तम शर्मा

 

सरकार द्वारा लखीमपुरपीलीभीतशाहजहांपुर जिलों की इंटरनेट सेवा बंद कर देने के कारण मैं तीन दिन बाद लखीमपुर खीरी दौरे की तस्वीरें साझा कर पाया. अक्टूबर की शाम साढ़े चार बजे उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले स्थित तिकोनिया में अंजाम दिए गए किसानों के इस जघन्य हत्याकांड की खबर मैंने देखी. मैंने तुरन्त वहां कार्यक्रम में शामिल संभावित किसान नेताओं से संपर्क के लिए कोशिश की. पर तेजेंदर विर्क, गुरमीत मंगट सहित किसी के साथ बात नहीं हो पा रही थी. इसी बीच पता चला कि तेजेंदर विर्क गम्भीर रूप से घायल हैं. किसी तरह एनएपीएम की ऋचा सिंह का फोन लगाउनसे पता चला कि वो लखीमपुर जिला अस्पताल में घायल तेजेंदर विर्क के साथ हैं. 


उत्तर प्रदेश में अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य सचिव ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा से बात कीतो पता चला कि उनके नेतृत्व में हमारे नेताओं एपवा नेता कृष्णा अधिकारीअ. भा. खेत एवं ग्रामीण मजदूर सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीराम चौधरीकिसान महासभा राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य अफरोज आलम और भाकपा माले नेता ओम प्रकाश सिंह की एक टीम सीतापुर से तत्काल घटनास्थल के लिए रवाना हो गई है. मैंने उन्हें बताया कि घायल किसान नेता तेजेंदर विर्क और अन्य गम्भीर घायल लखीमपुर के जिला अस्पताल में हैंपहले उन्हें मिल लें फिर घटना स्थल पर जाएं. इस घटना के बाद मौके पर बाहर से जाने वाली यह पहली टीम अखिल भारतीय किसान महासभा की थी.  

 

हमारी टीम ने अस्पताल में घायलों से मुलाकात की और फिर तिकोनिया घटना स्थल पर पहुंच कर किसानों के साथ वहीं पड़ाव डाल दिया. अखिल भारतीय किसान महासभा और भाकपा माले के पलिया ब्लाक के स्थानीय नेताओं की एक टीम युवा कामरेड अजय और लक्ष्मी नारायण के नेतृत्व में पहले ही शाम सवा चार बजे तक घटना स्थल पर पहुँच चुकी थी. घटना स्थल के लिए दिल्ली से किसान नेता राकेश टिकैत के नेतृत्व में एक टीम रात को ही चल पड़ी.  वे सुबह तक घटनास्थल पहुंच भी गए. मैंने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड रुलदूसिंह मानसा और राष्ट्रीय महासचिव कामरेड राजा राम सिंह से सम्पर्क किया और इस घटना पर चर्चा की. राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड रुलदू सिंह ने अपनी टीम में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रेम सिंह गहलावतमुझे और अखिल भारतीय किसान महासभा का घटक संगठन पंजाब किसान यूनियन के साथी कामरेड हैप्पीसुखविंदर सिंह और रोहित को लेकर रात तीन बजे ही लखीमपुर खीरी के लिए प्रस्थान का कार्यक्रम घोषित कर दिया.  

 

इस तरह अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड रुलदू सिंह मानसा के नेतृत्व में हम छः सदस्यों की टीम लखीमपुर खीरी के लिए प्रस्थान कर गई. पुलिस ने बरेली के बाद हमें रास्ते में दो जगह रोकने की कोशिश की और एक जगह हमें गलत रास्ते पर मोड़ दिया. फिर भी हम तारीख शाम को तिकोनिया घटनास्थल पर पहुंच ही गए. लखीमपुर जाने की घोषणा कर सुबह देर से चले बाकी किसान नेताओं और राजनीतिक नेताओं को फिर पुलिस ने आगे नहीं बढ़ने दिया. पीलीभीत जिले में प्रवेश करते ही हमारे फोन में इंटरनेट सेवा ने काम करना बंद कर दिया. इस जिले में पहुंचते ही जगह-जगह सड़कों पर किसानों के धरने और पुलिस की बेरीकेट के कारण जाम मिलने से हमें काफी देर हो रही थी. पूरनपुर में किसान महासभा के कार्यालय में हमारे लिए भोजन की व्यवस्था की गई थी. भाकपा माले जिला सचिव कामरेड देवाशीषमाले के वरिष्ठ नेता और पीलीभीत बार एशोसिएशन के लोकप्रिय अध्यक्ष कामरेड किशनलालकिसान महासभा के नेता देवी दयालकामरेड सईदनगीना जी आदि यहाँ हमारा इंतजार करते मिले.  

 


पूरनपुर चौराहे पर तीन तारीख की शाम से ही किसानों ने जाम लगा दिया था. जब हम वहाँ पहुंचे तो लगभग एक हजार किसान जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी थीसड़क पर सभा कर रहे थे. कामरेड रुलदू सिंह मानसा ने यहाँ किसानों को संबोधित किया.  हर जगह किसानों के जाम के वाबजूद किसान संगठनों के झंडे लगी गाड़ियों को आंदोलनकारी जगह देकर आगे बढ़ाते गए. इस यात्रा में मैंने देखा कि इस किसान आंदोलन में हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड रुलदू सिंह मानसा की लोकप्रियता सिर्फ पंजाब में ही नहीं बल्कि यूपी और उत्तराखंड के सिख किसानों के बीच भी बढ़ी है. हर जगह जाम के बीच से जब संगठन का झण्डा लगी हमारी गाड़ी आगे बढ़ रही थीतो सिख किसान खासकर नौजवान गाड़ी में बैठे कामरेड रुलदू सिंह मानसा को पहचान जाते थे और उनके पास आ जाते थे. कई नौजवान उनकी तस्वीरें लेते या गाड़ी के बाहर से ही उनके साथ सैलफ़ी खिंचवाते.

 

क्या इसके लिए ही गृह मंत्रालय में किरन रिजजू की जगह लाए गए अजय मिश्रा?

 

लखीमपुर खीरी का तिकोनियाँ कांड जन आंदोलनों से निपटने का मोदी सरकार और भाजपा-आरएसएस एक नया माडल है. इससे पहले के आंदोलनों से निपटने के केन्द्रीय गृह मंत्रालय के सभी फार्मूले किसान आंदोलन से निपटने में फेल होने के बाद यह नया क्रूर फार्मूला ईजाद किया गया है. इससे पहले महिलाओं की व्यापक भागीदारी के साथ लंबे चले उत्तराखंड आंदोलन से निपटने में सत्ता द्वारा महिलाओं पर बर्बर यौन हमले का प्रयोग अक्टूबर 1984 की रात को मुजजफ्फर नगर में आजमाया गया था. देश इस बात को अभी भी नहीं भूला है कि बाद में इसी भाजपा सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उस कांड को रचने वाले मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह को सजा दिलाने के बजाए प्रमोशन देकर अपना प्रिंसपल सेक्रेटरी बना दिया था.  

 

विरोधियों या गवाहों को रास्ते से हटाने के लिए सड़क दुर्घटना के नाम पर उनकी हत्या कर देना आम उदाहरण रहे हैं. इसे हमने उन्नाव बलात्कार कांड में भी देखा है. पर जन आंदोलनों से भी ऐसे निपटा जाएगायह कल्पना से भी बाहर की बात थी. दरअसल किसान आंदोलन के बीच में ही केन्द्रीय मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल में किरन रिजजू की जगह यूपी की तराई से जहां आन्दोलनरत सिख किसानों की बहुतायत हैअजय मिश्रा को गृह मंत्रालय में लाने के पीछे भी यही कारण जुड़ा होगा कि उनका इस्तेमाल इस आंदोलन से निपटने में किया जा सके. अजय मिश्रा की पृष्ठिभूमि कितनी आपराधिक है, 25 सितंबर 2021 को पलिया में किसान आंदोलनकारियों के खिलाफ दिए गए उनके धमकी भरे वायरल भाषण में उन्होंने अपने मुंह से खुद बयान किया है.


 

एक साल से अनवरत चल रहे वर्तमान किसान आंदोलन में अब तक लगभग 650 किसानों ने शहादत दे दी है. ये ज्यादातर शहादतें बीमार होनेहृदयगति रुकने या दुर्घटनाओं के कारण हुई हैं. 2-4 किसानों की शहादतें सरकार के रुख से आई निराशा के कारण हुई आत्महत्याओं की वजह से भी हैं. सिर्फ दो शहादतें अब तक पुलिस की गोली से हुई, एक 26 जनवरी 2021 को और एक पिछले माह हरियाणा के करनाल में. पर लखीमपुर खीरी के तिकोनियां कांड की शहादतों ने पूरे देश में किसानों और न्याय पसंद लोगों को झकझोर कर रख दिया है. इस सुनियोजित हत्याकांड के वो सभी वीडियो अब सामने आ चुके हैंजिनमें तराई किसान संगठन के अध्यक्ष तेजेंदर विर्क के नेतृत्व में किसानों का एक छोटा जत्था शांतिपूर्ण तरीके से सड़क पर जा रहा है और केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा का बेटा आशीष मिश्रा अपनी तेज रफ्तार गाड़ियों के काफिले से पीछे से उन्हें रौंदता हुआ आगे बढ़ जाता है.  

 

यह भी सामने आ गया है कि इस हत्यारे काफिले का नेतृत्व कर रही गाड़ी खुद केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के नाम पर है जिसे उनका बेटा आशीष मिश्रा इस्तेमाल करता है. उस गाड़ी में बैठे कुछ लोगों की तस्वीरें भी सामने आ गई हैं जिनकी पहचान जांच की आधुनिक तकनीक से संभव है और उनसे पूछताछ कर इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम देने वाले सभी हत्यारों तक पहुंचा जा सकता है. इस घटना के दिन और समय पर अजय मिश्रा और उनके बेटे आशीष मिश्रा की मोबाइल फोन की लोकेशन और बातचीत का रिकार्ड भी इस जघन्य हत्याकांड में उनकी भूमिका को साफ कर देगा. कई चश्मदीद टीवी चैनलों और मीडिया को घटना का आँखों देखा हाल बता चुके हैंजिसमें आशीष मिश्रा के नेतृत्व में हत्यारों ने न सिर्फ गाड़ियों से रौंद कर किसानों की जान लीबल्कि इससे भी जी नहीं भरा तो गोलियां भी चलाई. क्या अब जन आंदोलनों से ऐसे ही निपटा जाएगाजैसा यहाँ लखीमपुर खीरी में हुआ?


आंदोलन के दबाव में 24 घंटे में ही झुकी सरकार, तभी हुआ शहीदों के शवों का पोस्टमार्टम

 

इस घटना को आंदोलनकारी किसानों को सबक सिखाने के लिए पूरी योजना के तहत अंजाम दिया गया. केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के 25 सितंबर को पलिया में दिए धमकी भरे भाषण के लिए उन पर मुकदमा दर्ज करने और उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग किसान संगठन लगातार कर रहे थे. 27 सितंबर को भारत बंद के मौके पर अखिल भारतीय किसान महासभा के बैनर तले एपवा नेत्री कामरेड कृष्णा अधिकारी, किसान महासभा के नेता कमलेश राय, आरती राय के नेतृत्व में पलिया में किसानों का एक बड़ा मार्च हुआ. 


इस मार्च में बीकेयू और भारतीय मजदूर किसान संगठन के कार्यकर्ता भी शामिल थे. इसमें मुख्य मांग किसानों को धमकाने वाले गृह राज्य मंत्री पर मुकदमा दर्ज करने और उन्हें मंत्रिमंडल से हटाने की ही थी. फिर तीन अक्टूबर को तिकोनियाँ में राज्य के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के आगमन पर किसानों ने उन्हें काले झंडे दिखाने का आह्वान किया था. इस शांतिपूर्ण विरोध के लिए ही किसान तिकोनियाँ में जुटे थे.  मंत्री किसानों के विरोध स्थल की ओर नहीं आए. जो गाड़ियां उस मार्ग से गुजरी थी उन्हें शांतिपूर्ण तरीके से किसानों ने काले झंडे दिखाए जिसकी वीडियो वायरल हैं. कार्यक्रम लगभग निपट चुका था और तेजेंदर विर्क के नेतृत्व में किसानों का एक जत्था सड़क पर चुपचाप पैदल लौट रहा था. इसी बीच किसानों के जघन्य हत्याकांड की इस नई साजिश को अंजाम दिया गया था.  


इस हत्याकांड की खबर फैलते ही उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में आक्रोसित किसान सड़कों पर उतरने लगे थे. घटना से आक्रोशित किसानों ने शहीद किसानों चौखड़ा (भगवंत नगर पंचायत) तहसील पलिया, जिला लखीमपुर खीरी के लवप्रीत, धौरहरा जिला लखीमपुर खीरी के किसान छत्र सिंह, बहराइच जिले के नानपारा कोतवाली के बंजारन टांडा के किसान दलजीत सिंह व वहीं मटेरा थाना के मोहर्निया गांव के किसान गुरविंदर सिंह के शवों को लेकर धरना दे दिया था. पूरे क्षेत्र के साथ ही लखनऊ मण्डल, बरेली मण्डल की तराई और उत्तराखंड की तराई से किसान घटना स्थल की ओर चल पड़े. रात तक ही हजारों किसानों का जमवाड़ा तिकोनियाँ में हो चुका था.


आक्रोसित किसानों की मांग केन्द्रीय राज्य मंत्री व उनके पुत्र पर हत्या और हत्या की साजिश का मुकदमा दर्ज कर उनकी गिरफ़्तारी, केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री की बर्खास्तगी, शहीद हुए किसानों और घायलों को मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी थी. इस जघन्य हत्याकांड में मंत्री पुत्र की गाड़ी के नीचे निघासन जिला लखीमपुर खीरी के एक स्थानीय पत्रकार रमन कश्यप की भी शहादत हो गई थी. मगर उनके परिवार ने संयुक्त किसान मोर्चे या किसान संगठनों से संपर्क साधने के बजाय जिला प्रशासन के दबाव में आकर तुरंत ही उनकी अंतेष्टि कर दी. इस घटना में हत्यारों की तेज रफ्तार गाड़ी पलटने से हत्यारों की टीम में शामिल बीजेपी के तीन कार्यकर्ता भी मारे गए हैं. जिसमें शुभम मिश्रा, हरिओम मिश्रा, श्यामसुंदर निषाद की मौत हुई है.

 

अखिल भारतीय किसान महासभा की ओर से हमने तुरंत ही 4 अक्टूबर को राष्ट्रव्यापी प्रतिरोध दिवस मनाने का आह्वान कर दिया था. उसके बाद संयुक्त किसान मोर्चे और अन्य संगठनों की ओर से भी विरोध दिवस का आह्वान आ गया. 4 अक्टूबर को सुबह 10 बजते-बजते देश भर में किसान सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन करने लगे थे. रास्ते में जगह-जगह जाम में फंसे होने के कारण हम लगभग दो बजे खुटार पहुंचे. इसी बीच तिकोनिया में मौजूद किसान महासभा के उत्तर प्रदेश सचिव ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा का फोन आया कि प्रशासन से समझौता हो गया है.  


पलिया में आंदोलन स्थल पर हमारा इंतजार कर रहे किसान महासभा के नेता कमलेश राय और आरती राय ने भी यही सूचना दी. यहाँ जाम लगाए किसानों से पता चला कि अब शहीदों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजा जा रहा है, इस लिए अब जाम खोला जा रहा है. मैंने तराई किसान संगठन के उत्तराखंड अध्यक्ष सलविंदर सिंह को फोन किया तो पता चला वे खुटार तक पहुँच कर गुरुद्वारा में ही रुके हैं और अब समझौता होने के बाद यहीं से वापस लौट रहे हैं. प्रशासन के साथ हुए समझौते में केन्द्रीय राज्य मंत्री और उनके पुत्र पर धारा 302 व 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज करने, एक सप्ताह के अंदर उनकी गिरफ़्तारी, सभी शहीद किसान परिवारों को 45 लाख रुपए और गंभीर घायलों को 10 लाख रुपए का मुआवजा देने, शहीद परिवार में एक सदस्य को सरकारी नौकरी प्रमुख है. हमारी टीम ने इसके बावजूद घटना स्थल तक जाने और उसके बाद किसी एक शहीद किसान की अंतेष्टि में शामिल होकर ही लौटने का फैसला लिया और आगे बढ़ गए.  


......जारी