पंजाब 2024 - इंडिया गठबंधन कर सकता है एनडीए का पूरा सफाया

पुरुषोत्तम शर्मा

2024 के रण को लेकर देश भर में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई हैं. पिछले नौ वर्षों के मोदी राज में देश में विपक्ष के नेताओं, जन आन्दोलन की आवाजों, लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थाओं पर जिस तरह के फासीवादी हमले बढ़े हैं, उसने देश के विपक्ष को एक मंच पर आकर इसका मुकाबला करने की प्रेरणा दी है. इस वर्ष की शुरुआत में फरवरी माह में पटना में आयोजित सीपीआई एमएल लिबरेशन के राष्ट्रीय महाधिवेशन में देश में बढ़ते फासीवाद के खिलाफ एक मंच पर आकर एकता की शुरुआत करने वाला विपक्ष पटना, बेंगलुरु, मुम्बई की संयुक्त बैठकों के बाद वर्तमान सत्ता के लिए एक बड़ी चुनौती बन कर उभर आया है. देश की प्रमुख 28 विपक्षी पार्टियों के मोर्चे इंडिया की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भाजपा को भी उसके खिलाफ उन्नीस वर्षों से मृत पड़े एनडीए को जीवित दिखाने की असफल कोशिश करनी पड़ी है. यही नहीं इंडिया गठबंधन से भयभीत मोदी सरकार अब भारत के संविधान से इंडिया शब्द ही हटाने की वकालत करने लगी है.

अभी हाल में हुए 6 राज्यों की सात विधानसभा सीटों के उपचुनाओं में चार पर इंडिया के उम्मीदवार जीते जबकि एनडीए तीन पर ही जीत दर्ज कर सका है. इन उपचुनाओं में यूपी की घोषी, पश्चिम बंगाल की धूपगुड़ी और झारखंड की डुमरी सीटों पर इंडिया से जुड़े दलों के उम्मीदवारों की जीत भाजपा व एनडीए के लिए बड़ा झटका है. अब विपक्षी गठबंधन इंडिया का पूरा जोर इस वर्ष के अंत तक आने वाले पांच विधानसभा चुनाओं में भाजपा को शिकस्त देने और 2024 के लोकसभा चुनाओं में देश भर में भाजपा व एनडीए के खिलाफ संयुक्त उम्मीदवार देकर इस फासिस्ट सरकार से देश को मुक्त करने पर केन्द्रित है. इसके लिए मुम्बई बैठक में एलान कर दिया गया है कि साझा उम्मीदवारों के लिए राज्य स्तर पर इंडिया के घटक बातचीत शुरू करें. सितम्बर अंत तक बड़ी संख्या में ऐसी सीटों को चिन्हित करने का लक्ष्य लिया गया है. विभिन्न राज्यों में इंडिया के घटक दलों के बीच 2024 में संयुक्त उम्मीदवारों की सीटों को चिन्हित करने की तैयारियां अब जोर पकड़ने लगी हैं.

पंजाब की बात की जाए तो राज्य में इंडिया गठबंधन से जुड़े पांच दल मौजूद हैं. इन्डियन नेशनल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, सीपीआई एमएल लिबरेशन, सीपीएम और सीपीआई. पर पंजाब में अभी भी इनके बीच 2024 की तैयारियों को लेकर कोई चर्चा या साझा बैठक नहीं हो पाई है. इसका मुख्य कारण आम आदमी पार्टी व कांग्रेस का पंजाब के वर्तमान राजनीतिक हालात को लेकर व्यावहारिक मूल्यांकन का न होना है. कांग्रेस के पास अभी पंजाब में सात लोकसभा सीट हैं. जबकि आप की राज्य में दो तिहाई बहुमत की सरकार और एक सांसद है. लोकसभा की दो-दो सीटें अकाली दल व भाजपा के पास हैं, जबकि एक सीट अकाली दल मान के पास है. ऐसे में कांग्रेस व आप दोनों दलों को लगता है कि 2024 के बदले माहौल में पंजाब में वही ज्यादातर सीटें जीतने जा रहे हैं. इन दोनों प्रमुख दलों को समझना होगा कि आज पंजाब की राजनीतिक स्थिति न तो 2019 जैसी है और न ही फरवरी 2022 जैसी. जरूर अभी भी पंजाब में भाजपा और अकाली दल के खिलाफ लोगों का गुस्सा कम नहीं हुआ है. पर आज के दौर में केप्टन अमरेंदर सिंह समेत दर्जनों कांग्रेसी विधायक व नेता भाजपा की शरण में जा चुके हैं. वहीं 2024 के चुनाव करीब आने तक पंजाब में फिर से भाजपा-अकाली गठबंधन की संभावना बनी हुई है.

पंजाब में मान सरकार द्वारा नशे के कारोबार पर रोक लगाने के बजाय नशा विरोधी आन्दोलन के कार्यकर्ताओं पर झूठे मुकदमे लादना, नशा तस्करों द्वारा निडर होकर हत्याओं को अंजाम देना, महिलाओं को एक हजार रुपया प्रतिमाह देने जैसे लोक लुभावन वायदों पर चुप्पी साधने और बाढ़ की तबाही से बर्बाद किसानों, मजदूरों को राहत देने के बजाए पुलिसिया दमन जैसे मुद्दों से बड़े पैमाने पर आप सरकार से भी लोगों का मोहभंग हुआ है. ऐसे में पंजाब की राजनीति में हासिये पर खड़े भाजपा-अकाली दल 2024 में अपने अच्छे प्रदर्शन के लिए जी जान से जुटे हैं. भाजपा-आरएसएस ने पंजाब में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को बढाने के लिए पिछले दो साल से पूरी ताकत झोंकी है. वह दलित-जट्ट अंतर्विरोध को उभारने, सिख-हिन्दू व ईसाई-हिन्दू सांप्रदायिक विभाजन के हर मौके को भुनाने के प्रयास में जुटा है. हालांकि पंजाब की जनता ने इनकी साजिशों को अब तक परवान नहीं चढ़ने दिया है. पंजाब में अगर इंडिया गठबंधन को अच्छे नतीजे हासिल करने हैं, तो उसके पाँचों घटक दलों को अभी से भाजपा-अकाली साजिशों को चकनाचूर करने के लिए एक संयुक्त रणनीति बनाने के काम में जुट जाना होगा. 

आज पंजाब अभी फिर से नए आंदोलनों की जमीन बनता जा रहा है. मोदी राज में पंजाब के अंदर केंद्र का बढ़ता हस्तक्षेप, पाकिस्तान सीमा से सटे 50 किलोमीटर परिधि क्षेत्र को बीएसएफ के हवाले करने और सरकार गिराने की राज्यपाल की धमकी से लोगों में गुस्सा है. इसे पंजाब के लोगों ने देश के संघीय ढाँचे पर सीधा हमला माना है. जो नशे का सवाल पिछले 15 वर्षों से पंजाब की राजनीति के केंद्र में था, वह अब वहां नए जन आन्दोलन का मुद्दा बन चुका है. पिछले डेढ़ माह से सीपीआई एमएल लिबरेशन की पहल पर मानसा में नशे के खिलाफ मजदूरों-किसानों, शहरी नागरिकों व समाज के तमाम तबकों ने पक्का मोर्चा खोल दिया है. एतिहासिक किसान आन्दोलन के बाद पंजाब की किसान जत्थेबंदियों की एकता में जो विभाजन दिख रहा था, नशे के खिलाफ शुरू हुए मानसा मोर्चे पर वे सब एक मंच पर आ गए हैं. यही नहीं, मनरेगा में मजदूरी, महिलाओं को एक हजार रुपया प्रतिमाह भुगतान, भूमिहीनों को आवास व कृषि भूमि के पट्टे की मांग पर हाल में सीपीआई एमएल लिबरेशन के नेतृत्व में मजदूरों का आन्दोलन भी उठ खड़ा हो रहा है. बंदी सिंहों सहित तमाम राजनीतिक बंदियों की रिहाई के सवाल पर भी लम्बे समय से पंजाब में आन्दोलन जारी है.

इंडिया गठबंधन से जुड़े पंजाब के सभी दलों को 2024 के लिए फासीवाद विरोधी और संघीय ढाँचे पर आधारित भारतीय लोकतंत्र व संविधान की रक्षा के लिए एक बड़े आन्दोलन की जमीन तैयार करने के संयुक्त प्रयास तेज करने होंगे. पंजाब सरकार को जनता से किये वायदों को पूरा करने के लिए तत्काल पहल लेनी होगी. नशे के खिलाफ जंग आज पंजाब और उसकी आने वाली नस्लों को बचाने की जंग है. इस जंग में आप की राज्य सरकार व इंडिया गठबंधन की ताकतों को इमानदारी से जुटना होगा. इसके साथ ही सीट बटवारे पर अभी से एक आम राय बनाने की तरफ बढना होगा. पंजाब आजादी के दौर से ही गदरी बाबाओं, शहीद भगत सिंह, मुजारा आन्दोलन और नक्सलबाड़ी आन्दोलन की लहरों के कारण कम्युनिस्ट आन्दोलन की जमीन रहा है. एतिहासिक किसान आन्दोलन से लेकर अभी नशा विरोधी आन्दोलन में कम्युनिस्टों की भूमिका व प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. ऐसे में पंजाब में इंडिया गठबंधन अगर कांग्रेस 5, आप 5, लिबरेशन 1, सीपीएम 1, सीपीआई 1 के फार्मूले पर साझा उम्मीदवार खड़ा करने की रणनीति अभी से तैयार करता है तो 2024 के लोकसभा चुनाव में पंजाब से भाजपा-अकाली जैसे दलों का सूफड़ा साफ़ किया जा सकता है.