इस दमन के खिलाफ आन्दोलनकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री से मिला. अंततः गिरफ्तार किसान रिहा किए गए और 4 जुलाई को मुख्यमंत्री ने आन्दोलन कारियों के साथ वार्ता करने का समय निर्धारित किया है. आंदोलनकारी किसानों और राज्य में जन आन्दोलनों के संयुक्त मंच ने घोषणा की है कि फ्रीडम पार्क में दिन रात का धरना जारी रहेगा. इससे पूर्व राज्य के माध्यम उद्योग मंत्री एम बी पाटील ने 13 में से 3 गाँवों की जमीन को अधिग्रहण के दायरे से बाहर करने का वायदा किया था. मंत्री ने यह भी कहा था कि राज्य सरकार भविष्य में औद्योगिक उद्येश्यों के लिए इस होबली में कोई भूमि अधिग्रहण नहीं करेगी. पर किसानों ने इसे पूरी तरह से खारिज कर दिया था. मंत्री ने यह घोषणा आंदोलनकारी किसानों और 40 से ज्यादा संगठनों की 25 जून को आयोजित संयुक्त रैली से एक दिन पूर्व की थी. इस परियोजना के लिए अधिग्रहित की गयी 1777 एकड़ भूमि 1867 भूमि धारकों के स्वामित्व की है.
भूमि अधिग्रहण के खिलाफ साढ़े तीन वर्षों से अनवरत चल रहा किसानों का यह आन्दोलन कर्नाटक में अब तक का सबसे लंबा किसान आन्दोलन है, जो अपनी खेती और आजीविका की रक्षा के लिए शुरू हुआ है. धरना प्रदर्शन, भूख हड़ताल, निर्वाचित प्रतिनिधियों को याचिका सौंपने, विशाल रैलियाँ आयोजित करने तक इस आन्दोलन ने प्रतिरोध के तमाम शांतिपूर्ण तरीकों को अपनाया है. चन्नारायपटना गाँव के किसान एरम्मा कहते हैं कि हमने बेंगलुरु के किसानों से सीख कर यह आन्दोलन शुरू किया है. बेंगुलुरु के किसानों ने अधिक मुआवजे के लालच में अपनी आजीविका के साथ जमीन को खो दिया था. यही नहीं तकनीकी कारणों से कई किसानों को जमीन के साथ ही मुआवजा भी खोना पड़ा था. एरम्मा के आठ सदस्यों के परिवार के पास मात्र एक एकड़ भूमि है जिसमें वे गुलाब और स्वीटकार्न उगाकर अपना गुजारा करते हैं. इस आन्दोलन के दौरान ही उन्हें पता चला कि उनकी भूमि के अधिग्रहण के लिए ग्राम पंचायत के 70 प्रतिशत आबादी की सहमति अनिवार्य है जो नहीं ली गयी थी.
चन्नारायपटना होबली के किसानों के 24 जून 2025 को मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि इस परियोजना से प्रभावित 95 प्रतिशत भूमिधर भूमि अधिग्रहण के खिलाफ हैं. किसानों ने कहा कि 2022 में ही केआईएडीबी ने जब इसके लिए किसानों की राय ली थी तब भी 80 प्रतिशत किसानों/भूमिधरों ने अपनी जमीन न छोड़ने की राय दे दी थी. पत्र में दावा किया गया गया है कि आज 95 प्रतिशत भूस्वामी अपनी जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ हैं. क्योंकि बाक़ी किसान भी अब उस जमीन से जुड़ी अपनी आजीविका और उससे जुड़े कानूनों से परिचित हो चुके हैं. आंदोलनकारी किसान चीमाचलहल्ली कहते हैं कि सरकार का यह कदम कर्नाटक अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति (कुछ भूमि के हस्तांतरण का निषेध) अधिनियम 1978 का उलंघन है. यह अधिनियम एससी, एसटी परिवारों को मिली भूमि के हस्तांतरण पर रोक लगाता है. उनके अनुसार अगर भूमि अधिग्रहण हुआ तो उनके गाँव के 800 परिवारों में से 387 परिवार भूमिहीन हो जाएंगे जिनमें 163 परिवार एससी–एसटी होंगे.
भूमि अधिग्रहण की चपेट में आ रहे इन गांवीं में कृषि का एक मजबूत पारिस्थितिक तंत्र है, जिसमें अनाज, सब्जियां, फल, फूल, मुर्गी पालन और डेयरी व्यवसाय शामिल है. कई किसानों ने इस भूमि में पॉली हाउस, बाग़, डेयरी, मुर्गी फ़ार्म और सिंचाई प्रणाली विकसित करने में काफी निवेश किया है. मट्टावारालू गाँव की मुनिवेंकटम्मा कहती हैं कि हम बेंगुलुरु को खाद्यान की आपूर्ति करते हैं. सरकार उद्योगों के लिए हमारे खाद्यान श्रोतों को क्यों छीन रही है? उनका गाँव उद्योगमंत्री के अधिग्रहण से छूट वाले प्रस्ताव में शामिल है. पर वो उद्योग मंत्री के प्रस्ताव के विरोध में हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह प्रस्ताव आन्दोलन को तोड़ने की साजिश है. उन्होंने कहा जब तक सभी 13 गाँवों की अधिसूचना वापस नहीं होती है, हम अपनी खेती के काम को जारी रखते हुए लड़ते रहेंगे. मुनिवेंकटम्मा अपने पति के साथ रैली में पहुंची थी, जबकि उनकी पुत्रबधू उनकी अनुपस्थिति में खेती की देखभाल कर कर रही हैं. आम दिनों में पुरुष विरोध धरनों में शामिल होते हैं, जबकि महिलाएं खेती का काम देखती हैं.
समाज विज्ञानी ए आर वासनी कहते हैं, ऐसे समय में जब जलवायु संकट और अस्थिर बाजारों के कारण खेती संकट में है, कर्नाटक के ये किसान खेती के अपने अधिकार की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं. सामाजिक कार्यकर्ता मल्लिगे कहते हैं कि अधिग्रहित भूमि की ज्यादा कीमत के बजाय यहाँ किसान शुरू से ही भूमि और आजीविका की रक्षा के सवाल पर लड़ रहे हैं. कर्नाटक में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किसानों के इस आन्दोलन को संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) का समर्थन प्राप्त है. एस के एम और अखिल भारतीय किसान महासभा ने कर्नाटक सरकार से उपरोक्त 13 गाँवों के भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना को वापस लेने की मांग की है.L
(डेक्कन हेराल्ड में छपी अनिता पैलूर की रिपोर्ट को आधार बनाकर तैयार किया गया लेख)