“अगर मैं जानता कि वह डोवाल थे, तो मैं मिलने नहीं जाता”

“अगर मैं जानता कि वह डोवाल थे, तो मैं मिलने नहीं जाता”


अनुच्छेद 370 खत्म करने के फैसले के तीन दिन बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल को शोपियां में जिन लोगों से बात करते हुए दिखाया गया था उन्हें पता ही नहीं था कि वह किससे बात कर रहे हैं। दक्षिण कश्मीर में स्थिति इस इलाके के नागरिकों के एक समूह से बात करते डोवाल का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। और सरकारी से लेकर निजी टीवी चैनलों तक सबने इसको खूब प्रचारित किया था। लेकिन उसकी असलियत अब सामने आ रही है।


7 अगस्त को जारी किए गए इस वीडियो में डोवाल को इस समूह के साथ बिरयानी खाते हुए दिखाया गया था। और इसे इस रूप में पेश किया गया था जैसे घाटी में स्थितियां बिल्कुल सामान्य हो गयी हैं।


हफिंगटन पोस्ट ने उस शख्स को खोजने की कोशिश की जो वीडियो में डोवाल से बात कर रहा है। और शोपियां के अलियलपोरा इलाके में पहुंचने के बाद उसकी कोशिश कामयाब हो गयी। डोवाल से बात करने वाले शख्स का नाम मोहम्मद मंसूर माग्रे है। 62 वर्षीय माग्रे रिटायर्ड गवर्मेंट अफसर हैं और आजकल सामाजिक कामों में अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हैं। और इलाके में उनकी पहचान एक सोशल एक्टिविस्ट की है। उन्होंने हफिंगटनपोस्ट को बताया कि वह वहां कत्तई नहीं जाते अगर उनको बताया गया होता कि उन्हें डोवाल से मिलना है, जिनको कि वह पहचानते ही नहीं थे।


माग्रे ने कहा कि “मैंने अपने जीवन में उनको (डोवाल) कभी नहीं देखा था। मैंने सोचा कि ऐसा हो सकता है कि वो डीजीपी साहेब के निजी सचिव हों।” इसके साथ ही उन्होंने बताया कि वीडियो वायरल हो जाने के बाद उनका परिवार बहुत डर गया था।


माग्रे ने यह भी कहा कि वह कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के खिलाफ मानहानि का मुकदमा करेंगे जिन्होंने 'पेड एजेंट' बताकर उनकी जिंदगी को खतरे में डाल दिया है।


उसके बाद हफिंगटन पोस्ट के रिपोर्टर ने माग्रे का विस्तार से साक्षात्कार किया। पेश है उसका कुछ अंश:


क्या आप अपने बारे में मुझको कुछ बताएंगे?


मैं पिछले तीन दशकों से सामाजिक काम में हूं। नौकरी के दौरान कर्मचारियों के सवालों को उठाने में मैं बेहद मुखर रहता था और मैं ट्रेड यूनियन के एक नेता के तौर पर भी काम कर चुका हूं।


मैंने संसद पर हमले के मामले में अफजल गुरू को सजा देने का भी विरोध किया था। हाल में मैंने जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को खत्म करने का भी विरोध किया था।


रिटायरमेंट के बाद मेरी गतिविधियां जिले में विकास को सुनिश्चित करने के लिए जनता के मुद्दों को सरकार के संज्ञान में लाने तक सीमित हो गयी थीं।


पुलिस और सरकारी अधिकारियों के साथ मेरे संपर्क के चलते पीड़ित परिवार कई बार अपने बच्चों को सुरक्षा बलों की गिरफ्त से छुड़ाने के लिए भी मुझसे संपर्क करते हैं। उनका मुझ पर बहुत ज्यादा विश्वास है। और रोजाना आप देख सकते हैं कि लोग अपनी समस्याओं को हल करने के लिए मेरे दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं।


मुझे राजनीति नहीं पसंद हैं।


7 अगस्त को क्या हुआ?


7 अगस्त को जब कुछ पुलिस वाले सादे ड्रेस में सीआरपीएफ जवानों के साथ मोटरसाइकिल पर सवार होकर मेरे घर आए तो मैं दोपहर की नमाज की तैयारी कर रहा था। उन्होंने मुझसे शोपियां पुलिस स्टेशन चलने के लिए कहा।


जैसा कि अनुच्छेद 370 की परिघटना के बाद पुलिस वाले नेताओं और एक्टिविस्टों की घेरेबंदी कर रहे थे तो मैंने सोचा कि उसी लिहाज से ये मुझे बुलाने आए हैं।


लेकिन उन्होंने मुझे बताया कि जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीजीपी दिलबाग सिंह शोपियां के दौरे पर आए हैं।


चूंकि डीजीपी साहेब सरकार के प्रतिनिधि हैं लिहाजा मैंने एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पुलिस स्टेशन जाने का फैसला किया। मैं उनकी एक मोटरसाइकिल पर बैठ गया और फिर उनके साथ चल दिया।


मैंने सोचा कि क्योंकि स्थानीय लोग पिछले 72 घंटों से अपने घरों में कैद हैं लिहाजा उनके सामने आ रही परेशानियों के बारे में डीजीपी को बताऊंगा। जब मैं पुलिस स्टेशन पहुंचा तो देखता हूं कि आकाफ (मस्जिद प्रबंधन) से 5-6 लोग पहले से ही वहां मौजूद थे। जब मैंने 5-10 मिनट वहां इंतजार किया और कोई नहीं आया तो मैंने पूछा कि “आप मुझे किस सेल में रख रहे हैं? यहां या फिर तिहाड़ जेल में?”


चूंकि कोई भी उच्च अफसर पुलिस स्टेशन में नहीं दिख रहा था तो मैंने वहां से जाने का फैसला कर लिया और पुलिसकर्मियों को बताया कि मैं लंच करने के बाद लौटूंगा। वहां मौजूद दूसरे स्थानीय लोगों से भी मैंने कहा कि हमें घर जाना चाहिए और फिर कुछ देर बाद आ जाएंगे।


आपकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल के साथ मुलाकात कैसी रही?


अभी हम लोग पुलिस स्टेशन छोड़ने ही जा रहे थे कि तभी एक एंबुलेंस के साथ एक पुलिस की गाड़ी आयी। हम सभी को एंबुलेंस में बैठा लिया गया और उन्होंने शोपियां में स्थित श्रीनगर बस स्टाप पर पशु की तरह हमें उतार दिया। एक बार जब हम वहां पहुंच गए तो क्या देखते हैं कि पूरे इलाके को सेना और पुलिस की गाड़ियों की श्रृंखला से घेर दिया गया है।


एंबुलेंस से उतरने के बाद हम लोगों का शोपियां के एसपी संदीप चौधरी द्वारा स्वागत किया गया। उनके बाद मेरी डीजीपी साहेब से मुलाकात हुई और मैंने उनको पिछले 72 घंटों के दौरान लोगों के अपने घरों में कैद होने के चलते आने वाली परेशानियों के बारे में बताया।



नागरिकों के साथ बिरयानी खाते डोवाल।
जब मैं डीजीपी साहेब के सामने परेशानियों की व्याख्या कर रहा था तभी वह मुझे जैकेट पहने एक शख्स की तरफ ले गए और मुझे बताया कि इन सब मामलों पर उनके साथ बातचीत करिए। मैंने अपने जीवन में उन्हें (डोवाल) कभी नहीं देखा था। मैंने सोचा कि शायद वह डीजीपी साहेब के निजी सचिव हों।


डोवाल ने आपको क्या बताया?


उन्होंने कहा: देखिए, अनुच्छेद 370 चला गया है।


मैंने उसके जवाब में कुछ नहीं बोला।


दूसरी बात उन्होंने कही कि 'लोगों को इससे लाभ होगा और ईश्वर सब कुछ ठीक करेगा।'


मैंने उत्तर दिया: इंशाल्लाह


उसके बाद उन्होंने विकास पर बात करना शुरू किया। युवाओं के लिए रोजगार के अवसर और दूसरे लाभों के बारे में बताया। वास्तव में वह हम लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहे थे कि इस फैसले से कश्मीर का कितना लाभ होगा।


यह सब कुछ जब हो रहा था उस दौरान 5-8 कैमरामैन वहां मौजूद थे और वो पूरी बातचीत को शूट कर रहे थे। यह बातचीत तकरीबन 10-15 मिनट चली होगी।


क्या आपको पता था कि आप किससे बात कर रहे हैं?


नहीं। यह तब हुआ जब हमने देखा कि डीजीपी और एसपी उनके सामने बिल्कुल एलर्ट पोजीशन में खड़े हैं तब मुझे लगा कि वह डीजीपी के निजी सचिव नहीं हो सकते हैं।


उसके बाद ही मैंने उनसे पूछा: 'सर, कृपया मुझे अपना परिचय दीजिए'?


उन्होंने उत्तर दिया: मैं मोदी जी का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हूं।


उसके बाद मैंने अपना परिचय दिया और उन्हें अपने सामाजिक कामों के बारे में बताया।


उन्होंने मुझसे हाथ मिलाया और मेरे साथ एक फोटो के लिए कहा। मैं समझ गया कि यह एक जाल है।


तो आप कह रहे हैं कि उस शख्स की सच्चाई आपको नहीं बतायी गयी जिससे आप मिलने जा रहे थे?


नहीं। अगर मैं जानता कि वह डोवाल थे, तो मैं मिलने नहीं जाता। यहां तक कि अगर वे मुझे घसीट कर भी ले जाते तब भी।


आपने उनके साथ बिरयानी भी खायी?


बातचीत खत्म होने के बाद डीजीपी ने मुझसे उनके साथ लंच करने के लिए कहा।


यह बिरयानी नहीं थी। जब मैं डोवाल से बातचीत कर रहा था तो किसी अफसर ने चावल का एक प्लेट मेरे हाथ में पकड़ा दिया। चावल के अलावा उसमें गोश्त का एक टुकड़ा था और उसके ऊपर कुछ करी फैली हुई थी। डोवाल उसको मन लगा कर खा रहे थे।


मुलाकात को लेकर आपके परिवार में क्या प्रतिक्रिया थी?


जब मैंने अपने बेटे को बताया कि मैंने अजीत डोवाल से मुलाकात की है तो वह अपने बिस्तर से कूद पड़ा। उसने मुझे बताया कि “डैडी आप जल्दी ही टेलीविजन पर होंगे।” और फिर बिल्कुल वही हुआ।


जब वीडियो वायरल हो गया तो वो बहुत डर गए थे। मेरे बेटे ने तो अपनी मां से यहां तक कह दिया कि बैग बांधों और श्रीनगर चलते हैं।


तो क्या आप कह रहे हैं कि डोवाल से मुलाकात के मामले में आप को धोखा दिया गया है?


मैं इसे 'धोखा' नहीं कहूंगा। लेकिन हां, उन्होंने मुझे गलत तरीके से पेश किया। मैं डीजीपी साहेब पर विश्वास करके उनसे एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर मिलने गया था।


जिस बात ने परिस्थिति को और जटिल बना दिया वह कांग्रेस नेता और राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद का बयान था जिन्होंने हमें पेड एजेंट करार दे दिया। इस बयान ने मेरे पूरे जीवन को क्षति पहुंचायी है। मैं उनके खिलाफ मान-हानि का मुकदमा दायर करने जा रहा हूं।