बिहार में एक बड़े किसान आंदोलन की जमीन तैयार


डैम निर्माण हेतु सोन अंचल के गांवों में अखिल भारतीय किसान महासभा के द्वारा बैठकों का दौर शुरू है। गांव-गांव बैठकें और किसान कमेटियों के गठन का अभियान चल रहा है। किसान महासभा के राष्ट्रीय महासचिव राजा राम सिंह स्वयं गांवों में बैठकें कर रहे हैं। बिहार प्रदेश में किसान महासभा का पूरा नेतृत्व इस अभियान को सफल बनाने में जुटा है। बिहार में एक बड़े किसान आंदोलन की जमीन तैयार हो रही है। इस धारावाहिक आंदोलन के तहत अक्टूबर में दीवाल लेखन का अभियान भी चलेगा !!!


तीनों राज्यों के बीच सोन नदी के जल के बँटवारे को बाणसागर समझौता कहते हैं। समझौते में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गवर्नर ने केंद्रीय जल आयोग के समक्ष हस्ताक्षर किये गए थे। तय किया गया था कि हिस्सेदारी के अनुरूप समय पर पानी दिया जाएगा, बाणसागर पर मेंटनेंस का खर्च, बिहार, को समय से देना होगा। जो लगातार बिहार के तरफ से दिया जा रहा है बावजूद बंटवारे के अनुरूप पानी का हिस्सा नहीं मिल रहा है।


रोहतास जिले के तिलौथू प्रखंड के इंद्रपुरी में सोन नदी पर स्थित इंद्रपुरी बराज है, जिसे सोन बराज भी कहा जाता है। सोन मध्यप्रदेश से निकल कर उत्तरप्रदेश, झारखण्ड और बिहार के पहाड़ियों से गुजरते हुए पटना के समीप जाकर गंगा नदी में मिल जाती है।


अब बात इंद्रपुरी बराज की तो इंद्रपुरी में इंद्रपुरी बराज 1,407 मीटर (4,616 फीट) लंबा है, जो दुनिया में चौथा सबसे लंबा बराज है। इस पर सड़क पुल भी है। फरक्का बांध का निर्माण करने वाली कंपनी एचसीसी ने इंद्रपुरी बराज का निर्माण किया था। इंद्रपुरी बराज का निर्माण 1960 के दशक में किया गया था और इसे 1968 में चालू किया गया था। इसकी करीब 239 मील की मुख्य नहरें हैं और 150 मील की छोटी नहरें और आगे डेढ़ हजार मील तक उससे भी छोटी नहरें हैं।


डेहरी-आन-सोन के एनिकट में तीन किलोमीटर चौड़ी पाट के कारण हहराते मिनी सागर जैसा दिखने वाली सोन नदी पर 14 फीट ऊंचा व 12469 फीट लंबा एनिकट का बांध बनाकर इसके जलस्तर को ऊंचा उठाया गया। एनिकट के पूर्वी सिरे की नहर में 1874 और पश्चिमी सिरे की नहर में 1876 में पानी प्रवाहित किया गया था। 1867 में स्थापित हुई ईस्ट इंडिया इरिगेशन एंड कैनाल कंपनी के वाणिज्यिक उपक्रम सोन नहर प्रणाली का निर्माण कार्य 1868 में शुरू हुआ था।


 जानकार बताते हैं कि एनिकट में धीरे-धीरे बालू भरता गया और सोन नहर प्रणाली में पानी का प्रवाह कम होता गया। तब 1965 में डेहरी-आन-सोन से आठ किलोमीटर ऊपर इंद्रपुरी में सोन नदी पर 4624 फीट लंबा बराज बनाया गया। इसके दोनों सिरे से नहरें निकालकर उन्हें डेहरी-ऑन-सोन और बारुन की पुरानी नहरों से जोड़ा गया। तब नहरों से पानी की पहुंच फिर से 22.5 लाख एकड़ खेतों तक हुई और गया व औरंगाबाद जिलों के पांच लाख एकड़ खेतों के लिए सिंचाई क्षमता का भी विस्तार हुआ। आज करोड़ों लोगों के लिए जीवनदायिनी है। लाइफ लाइन है।


अखिलभारतीय किसान महासभा
सोन कमांड क्षेत्र