आरसीईपी पर हस्ताक्षर के खिलाफ देश भर में प्रदर्शन करेंगे किसान
आउटलुक से
देश के किसानों को मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने वाले रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरईसीपी) में भारत के शामिल होने पर कड़ी आपत्ति है। शुरू में दस आसियान देशों के बीच हुए इस समझौते में भारत सहित छह और देश शामिल हो रहे हैं। लेकिन अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने सरकार को चेताया है कि इस संधि में भारत शामिल होता है तो देश के कृषि क्षेत्र पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। एआईकेएससीसी ने घोषणा की है कि चार नवंबर को पूरे देश में करीब 250 किसान संगठन जिला और स्थानीय स्तर पर इसके विरोध में प्रदर्शन करेंगे। भारत उसी दिन आरईसीपी पर हस्ताक्षर करने वाला है।
पहले से ही खेती घाटे का सौदा साबित होने के कारण देश में किसानों की आत्महत्याएं लगातार बढ़ती जा रही है। लेकिन सरकार किसानों को और बर्बाद करने वाले आरसीईपी पर हस्ताक्षर करने जा रही है। इस बहुपक्षीय संधि में ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, चीन और जापान समेत 16 देश शामिल होंगे। इससे देश का डेयरी उद्योग पूरी तरह से तबाह हो जायेगा। इसके विरोध में किसान संगठनों ने चार नवंबर को समझौते की प्रतियां जलाने का निर्णय लिया है। इस के बाद भी अगर केंद्र सरकार ने समझौते पर हस्ताक्षर किए तो, किसान संगठन आंदोलन को मजबूर होंगे।
80 फीसदी किसान बेरोजगार हो जाएंगे
एआईकेएससीसी के संयोजक वीएम सिंह ने गुरुवार को दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि खेती पहले ही घाटे का सौदा साबित हो रही है। इस समय छोटे किसानों की आय का एकमात्र साधन दूध उत्पादन ही बचा हुआ है, अत: अगर सरकार ने आरसीईपी समझौता किया तो डेयरी उद्योग पूरी तरह से तबाह हो जायेगा और 80 फीसदी किसान बेरोजगार हो जायेंगे। उन्होंने कहा कि हमारी प्रधानमंत्री से मांग है कि किसानों के हित में आरसीईपी समझौते से डेयरी और कृषि को पूरी तरह से बाहर रखा जाए।
चार नवंबर को समझौते की प्रतियां जलायेंगे
उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने इस समझौते से डेयरी उद्योग और कृषि उत्पादों को बाहर नहीं किया तो इसके विरोध में एआईकेएससीसी के साथ जुड़े 250 किसान संगठन चार नवंबर को समझौते पर हस्ताक्षर वाले दिन देशभर में जिला स्तर पर की आरसीईपी की प्रतियां जलाएंगे।
सरकार नहीं मानीं तो सड़कों पर उतरेंगे
इसके बाद भी अगर सरकार ने समझौता किया तो हमें मजबूरन सड़कों पर उतरना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि गांव की 80 फीसदी आबादी की आजीविका दूध पर टिकी हुई है जबकि देश की 65 फीसदी आबादी कृषि पर आधारित है। वीएम सिंह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के सेब उत्पादक मंडियों में अपनी उपज नहीं बेच पा रहे हैं, जिस कारण उन्हें भारी नुकसान हो रहा है। हमारी सरकार से मांग है कि जम्मू-कश्मीर के सेब उत्पादकों के घाटे की भरपाई करे। एआईकेएससीसी का एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही जम्मू-कश्मीर जायेगा और वहां के किसानों से मुलाकात करेगा।
सरकार की नीतियां किसान विरोधी
आल इंडिया किसान महासभा के महासचिव राजाराम सिंह ने कहा कि सरकार किसान विरोधी नीतियां बना रही है। एआईकेएससीसी ने सरकार के सामने दो प्राइवेट बिल रखे थे, सरकार किसानों की हितैषी होती तो इन बिलों पर चर्चा के लिए तैयार हो जाती। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार से मांग है कि आरसीईपी समझौते में दूध उत्पादों को शामिल नहीं किया जाये।
महाराष्ट्र में दस दिनों में दस किसानों ने खुदकुशी की
स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के नेता एवं पूर्व लोकसभा सांसद राजू शेट्टी ने कहा कि पहले सूखा और फिर बाढ़ से देश के किसानों को भारी नुकसान हुआ है। लेकिन केंद्र के साथ ही राज्य सरकारें किसानों के नुकसान की भरपाई नहीं कर रही हैं। महाराष्ट्र में बाढ़ और सूखे से गन्ना, कपास, मक्का और सोयबाीन आदि फसलों को भारी नुकसान हुआ है। उन्होंने बताया कि उनकी दुर्दशा आलम यह है कि राज्य में पिछले आठ-दस दिनों में ही करीब 8 से 10 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। राज्य सरकार जहां चुनाव में व्यस्त थी, वहीं केंद्र सरकार को किसानों की कोई फिक्र ही नहीं है।
डेयरी किसानों की यह है चिंता
राजू शेट्टी ने कहा कि अगर सरकार ने आरसीईपी समझौते से डेयरी उत्पादों को बाहर नहीं किया तो आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से शून्य शुल्क पर डेयरी उत्पादों का आयात होगा, जिससे देशभर के करीब 10 करोड़ किसानों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जायेगा।
संधि से इन उपजों पर भी होगा असर
जय किसान आंदालेन के राष्ट्रीय संयोजक अविक शाह ने कहा कि आरसीईपी समझौते से डेयरी उद्योग के साथ ही तिलहन, दलहन, बागवानी और रबर के साथ ही कालीमिर्च के किसानों को भारी घाटा होगा। उन्होंने कहा कि एआईकेएससीसी का 29-30 नवंबर को दिल्ली में राष्ट्रीय अधिवेशन होगा जिसमें देशभर के 250 किसान संगठन मिलकर आगे की रणनीति तय करेंगे। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार से फसलों के एमएसपी स्वामीनाथन रिपोर्ट के आधार पर लागत का डेढ़ गुना तय करने के साथ ही किसानों की संपूर्ण कर्ज मुक्ति की मांग है।