वित्त मंत्रालय ने बीएसएनएल और एमटीएनएल को बंद करने की सिफ़ारिश की
सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम विपणन कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड के प्रस्तावित पूर्ण निजीकरण का भी रास्ता साफ हो चुका है. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार विनिवेश की आड़ में नवरत्न कंपनियों को बेच रही है. वित्त मंत्रालय ने सरकार द्वारा संचालित दो टेलीकॉम कंपनियों- बीएसएनएल और एमटीएनएल को बंद करने की सिफारिश की है. फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशंस (डीओटी) ने सार्वजनिक क्षेत्र (पीएसयू) की टेलीकॉम कंपनियों बीएसएनएल और एमटीएनएल की वित्तीय हालत सुधारने के लिए 74 हजार करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव दिया था, जिसे केंद्र सरकार ने ठुकरा दिया था. रिपोर्ट के अनुसार डीओटी की ओर से यह भी कहा गया है कि सरकार द्वारा संचालित इन दोनों कंपनियों को बंद करने की लागत तकरीबन 95 हजार करोड़ रुपये आएगी. इतनी अधिक लागत बीएसएनएल के 1.65 लाख कर्मचारियों को आकर्षक स्वैच्छिक रिटायरमेंट प्लान और कंपनी का कर्ज लौटाने के मद में आएगी.
अभी फिलहाल इन दोनों कंपनियों में तीन तरह के कर्मचारी हैं. पहले, जो सीधे नियुक्ति किए गए हैं. दूसरे, जो अन्य कंपनियों और विभागों से ट्रांसफर होकर आए हैं और तीसरी तरह के कर्मचारी इंडियन टेलीकम्युनिकेशंस सर्विस के अधिकारी हैं. कंपनियों को बंद करने की सूरत में इंडियन टेलीकम्युनिकेशंस सर्विस के अधिकारियों के किसी अन्य सरकारी विभाग में नियुक्त किया जा सका है. उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति देने की जरूरत नहीं. इसके अलावा जिनकी नियुक्ति सीधे हुई है, उनमें से अधिकांश जूनियर स्तर के कर्मचारी है. इनका वेतन बहुत ज्यादा नहीं है. इनकी संख्या कुल कर्मचारियों का सिर्फ 10 प्रतिशत है. ऐसे कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी जा सकती है. रिपोर्ट के अनुसार, दोनों कंपनियों से कहा गया है कि वे हर श्रेणी के कर्मचारियों की संख्या बताएं ताकि कंपनी बंद करने के सही लागत का अनुमान लगाने में मदद मिल सके.
मालूम हो कि सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम विपणन कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) के प्रस्तावित पूर्ण निजीकरण का भी रास्ता साफ हो चुका है. सरकार ने बीपीसीएल के राष्ट्रीकरण संबंधी कानून को 2016 में रद्द कर दिया था. ऐसे में बीपीसीएल को निजी या विदेशी कंपनियों को बेचने के लिए सरकार को संसद की अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी.
(द वायर से साभार)