भारतीय कृषि के सम्मुख चुनौतियां, भाग-4

भारतीय कृषि के सम्मुुुख चुनौतियां


पुरुषोत्तम शर्मा


गतांक से आगे....


जहरीले खाद्य प्रदार्थ और जमीन का मरुस्थल में बदलने का खतरा


भारत अमेरिका कृषि ज्ञान संबंधी समझौते के बाद हमारे कृषि शोध संस्थान और कृषि विश्वविद्यालय भी इन्हीं अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की अधीनता में जाते जा रहे हैं. अति उत्पादन के नाम पर जीएम बीजों, रासायानिक खादों व कीटनासकों के अत्यधिक प्रयोग ने न सिर्फ हमारे खाद्य प्रदार्थों को जहरीला बना दिया है, बल्कि हमारी खेती की प्राकृतिक उत्पादन क्षमता पर भी बड़ा प्रहार किया है. पंजाब जो इस प्रयोग की प्रमुख स्थली है, आज कैंसर के मरीजों की बहुतायत वाला राज्य बन गया है. वैज्ञानिक पंजाब की जमीन के आने वाले कुछ दशक बाद मरुस्थल में तब्दील होने की आशंका जताने लगे हैं.


भारत में हरित क्रांति- खेती किसानी की तबाही व गुलामी की नीव


भारत में खेती किसानी की इस दुर्दशा की कहानी 1967 से ही लिखनी शुरू हो गयी थी जब अपनी बिना लागत की खेती को हरित क्रांति के नाम पर अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर निर्भरता की ओर ढाला गया. हरित क्रान्ति से उत्पादन बढाने के नाम पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बीजों, रासायनिक खादों और कीटनाशकों का जमकर हमारी खेती में प्रयोग कराया गया. धीरे–धीरे हमारे परम्परागत बीज, जो हमारी जलवायु के अनुकूल थे, जिनके अन्दर रोग प्रतिरोधक क्षमता थी, बहुतायत में विलुप्त हो गए. हमारी खेती को अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का गुलाम बना दिया. 


भारत के परम्परागत बीजों का संरक्षण नहीं


भारत में अपनी बिना लागत या कम लागत की खेती से भी हरित क्रांति को सफल कर देने के लिए गंभीर शोध में लगे तब के कृषि वैज्ञानिकों को किनारे कर दिया गया. इनमें से एक मशहूर कृषि वैज्ञानिक डॉ. रिछारिया भी थे, जिन्होंने भारत के किसानों द्वारा हजारों वर्षों से अलग-अलग जलवायु में संजोए गए परम्परागत धान के बीज की तीन हजार से ज्यादा प्रजातियों को विकसित व संरक्षित कर दिया था. 


WTO में शामिल होकर हमने वर्तमान बड़े कृषि संकट को निमंत्रण दिया


भारत की खेती किसानी पर दूसरे बड़े हमले की नीव 1995 में रखी गई, जब भारत सरकार ने किसानों व देश के लोकतांत्रिक जनमत के व्यापक विरोध के बावजूद विश्व व्यापार संगठन (WTO) में शामिल होने का फैसला किया. बाद में भाजपा की अटल बिहारी बाजपेई सरकार ने 1999 की जीत के बाद WTO की शर्तों को जोर-शोर से लागू करना शुरू किया. 


वायदा कारोबार और आयात पर मात्रात्मक प्रतिबन्ध का हटना भारत की खेती के लिए घातक


WTO के दबाव में कृषि उत्पादों के लिए वायदा कारोबार के दरवाजे खोल दिए गए. खुले व प्रतिस्पर्धात्मक व्यापार के नाम पर कृषि जिंसों के आयात पर लगे मात्रात्मक प्रतिबंधों को हटा दिया गया. महंगी उत्पादन लागत वाले हमारे किसानों को भारी सब्सिडी पा रहे अमेरिका और यूरोप के किसानों के साथ प्रतिस्पर्धा में डाल दिया गया. नतीजा सबके सामने है. इसके बाद ही भारत की खेती पर गंभीर संकट आ गया. बाजार में भाव न मिलने के कारण 2004 के बाद ही किसानों को अपना आलू, टमाटर, प्याज सड़क पर फेंकने और गन्ना जलाने को मजबूर होना पड़ा.


जारी....