गिरफ्तार अपनों से मिलने देश भर में भटकते कश्मीरी

गिरफ्तार अपनों से मिलने देश भर में भटकते कश्मीरी


70 वर्षीय हमीदा बेगम भारतीय प्रशासित कश्मीर से सैकड़ों मील की यात्रा करके आगरा सेंट्रल जेल में अपने बेटे से मिलने पहुंची हैं।


थकी हारी बेगम जेल परिसर के गर्म और उमस भरे कमरे में मुलाक़ात के लिए अपना नम्बर आने का इंतेज़ार कर रही हैं, उसी वक़्त 20 वर्षीय एक लड़का उन्हें पानी की एक बोतल पेश करते हुए कहता है, आप उम्मीद नहीं हारें, आप अकेली नहीं हैं।


हमीदा एक लम्बी आह भरती हैं, अपना हाथ उस लड़के के हाथ पर रखकर बहुत ही धीमी आवाज़ में कहती हैं, ख़ुदा हमें सभी को सब्र दे।


निकट ही लोहे की बेंच पर अन्य कश्मीरी परिवार भी बैठे हैं, जो अपने बिछड़ों से मिलने का इंतेज़ार कर रहे हैं।


घंटों के इंतेज़ार के बाद, हमीदा बेगम का नाम पुकारा जाता है और उन्हें अंदर एक कमरे में बुलाया जाता है।


यही कोई 20 मिनट के बाद वह काफ़ी बदली बदली नज़र आईं, उनका कहना था कि अब वह ख़ुश हैं और उनकी परेशानी कुछ कम हुई है।


उनका कहना था कि अपने बेटे को देखना मेरे लिए ईद का जश्न मनाने जैसा था, क्योंकि कुछ भी हो आख़िरकार मैं एक मां हूं।


हमीदा और गौहर मल्ला 965 किलोमीटर की दूरी और दो दिन का सफ़र तय करके कश्मीर से आगरा पहुंचे थे।


अपनी यात्रा शुरू करने से पहले वे एक दूसरे के लिए अजनबी थे, लेकिन दोनों का एक ही उद्देश्य था, भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा पकड़े गए और सैकड़ों मील दूर भारत की सबसे बड़ी जेलों में से एक में सलाख़ों के पीछे बंद किए गए अपने प्यारों से मिलना।


अगस्त के शुरू में कट्टरपंथी हिंदुत्वा वादी बीजेपी की सरकार द्वारा कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली धारा 370 हटाए जाने के बाद सैकड़ों की संख्या में कश्मीरी युवाओं को उत्तर प्रदेश के शहर आगरा की जेल में बंद करके रखा गया है।


पहले से ही दुनिया के सबसे अधिक सैनिकों की तैनाती वाले कश्मीर में बीजेपी सरकार ने हज़ारों की संख्या में अधिक सैनिक भेज दिए।


अल-जज़ीरा की रिपोर्ट के मुताबिक़, भारतीय सुरक्षा बल 4 हज़ार से भी अधिक कश्मीरियों युवाओं को गिरफ़्तार कर चुके हैं, जिसमें एक बड़ी संख्या 10 से 12 साल तक के बच्चों की भी है।


गिरफ़्तार होने वाले कश्मीरी युवाओं में से 300 को पब्लिक सेफ़्टी एक्ट के तहत हिरासत में रखा गया है, जिन्हें बिना किसी आरोप या मुक़दमे के 2 साल तक जेल में रखा जा सकता है।


हमीदा 5 अगस्त की उस मनहूस सुबह को याद करते हुए कहती हैं कि भारतीय सुरक्षा बल घर में घुसकर मेरे बेटे को उसके बैडरूम से उठा कर ले गए। वे भारतीय अधिकारियों के डर से अपने बेटे का नाम नहीं लेना चाहती हैं कि कहीं उनके मीडिया से बात करने के कारण जेल में उसे प्रताड़ित किया जाए।


उन्होंने बताया, वे ज़बरदस्ती उसके कमरे में घुस गए और उसे उसके बैड से खींचकर ले गए।



उसके 10 दिनों बाद तक हमीदा ने कश्मीर में कई पुलित थानों और जेलों की ख़ाक छानी, लेकिन कहीं उनके बेटे का कोई अता-पता नहीं था। एक दिन अचानक ख़बर आई। एक अजनबी ने उनका दरवाज़ा खटखटाया और उनसे कहा, उनका बेटा आगरा की जेल में है।


उन्होंने कहा, मैंने इससे पहले कभी इस शहर का नाम तक नहीं सुना था। दूसरे कश्मीरी परिवारों की ओर इशारा करते हुए वे कहती हैं, अगर यह लोग नहीं होते तो मैं तो इतने बड़े शहर में खो जाती।


गौहर मल्ला क़रीब 70 हज़ार रुपये ख़र्च करके अपने परिवार के साथ बहनोई से मिलने आगरा पहुंचे हैं। वे कहते हैं, उनसे मिलना हमारे लिए पूरी दुनिया हासिल करने जैसा है।


कश्मीरी जेल में बंद अपने परिजनों से मिलकर तेज़ी से जेल परिसर से बाहर निकलते हैं। उनका कहना है कि अधिकारियों ने उन्हें धमकी दी है कि अगर किसी से इस बारे में बात की तो यह समझ लें कि उनके लाडलों की ज़िंदगी एक धागे में लटकी हुई है।


थके मारे मोहम्मद अशरफ़ मलिक दौड़कर अपने दस्तावेज़ों की फ़ोटोकॉपी लेने निकट की दुकान पर जाते हैं। उनके बेटे अशरफ़ को मार्च में प्रदर्शन के दौरान तीन गोलियां लगी थीं।


मलिक का कहना है कि पुलिस ने उनके बेटे को श्रीनगर के एक अस्पताल से उठाया है। वे पूछते हैं कि दुनिया में किस देश में गोलियों से घायल को इस तरह से अस्पताल से खींचकर जेल में डाला जाता है।


Parstoday.com से साभार