कविता-हम किसी के मसीहा नहीं हैं

हम किसी के मसीहा नहीं हैं


डॉ. नवीन जोशी


कोई भी हो 
लड़ता मरता फिरता 
सच को तलाशता 
चाहे कोई हो
दलित दमित शोषित 
अल्पसंख्यक मुस्लिम 
हिन्दू पतित जाति समझे जाने वाली
नारी 
चाहे भूखा हो
लूटता पिटता आदमी हो 
हम सबके लिए लड़ रहे हैं
लेकिन
समझना मत मसीह
हम किसी के मसीहा नहीं हो सकते 
मार्क्स आया
कुछ कह कर चला गया 
लेनिन बहुत कुछ कर के चला गया
स्टैलिन माओ भी कर रहे थे
लेकिन कुछ जमीन के टूकड़े
पर रेखा खींच कर भी
एक रूप नहीं कर पाए
फिर भी बहुत कुछ कर गए
लेकिन
मसीहा नहीं थे


उनको मसीहा बनना भी नहीं था
चे को भी नहीं
भगत को भी नहीं
मजूमदार को भी नहीं
चंदू को भी नहीं
इन किसी को भी 
मसीहा नहीं बनना था
वे चाहते ही नहीं थे बनना ढौंगी 
क्योंकि
उन सबने जान लिया था
द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद 
जान लिया था 
कि हम सब एक ही जैसे हैं
मार्क्स ने कभी नहीं कहा
एगेल्स से
कि वो बडा़ है
लेनिन ने कभी नहीं कहा ट्राट्रस्की से
तेरा सिद्धांत छोटा, तू छोटा
यह सैद्धांतिक द्वन्द्व होने पर भी
असहमति क्ष होने भी
कभी भेद नहीं कर सकते थे


क्योंकि वे सब जान गए थे
द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद
जिसको होना ही होगा सफल
बिना मसीहा के 
यहाँ मसीहा नहीं होते
जब जब होंगे
तब तब द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद फेल 
हो जाएगा
न हो सकने पर भी फेल, 
क्योंकि वह उस रास्ते आता ही नहीं
जिस रास्ते मसीहा बनते हैं
किसी नोबेल पाने वाले जैसा
किसी राष्ट्रपिता जैसे कुछ


सच है विज्ञान 
और यह प्रकृति का ज्ञान विज्ञान
जो बस द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद पर ही 
चलता है
हम समझ सकें तो समझें
वर्ना प्रकृति सब कुछ सीखा देती है
रोना हमेशा से हारा है
मानव सुख हमेशा से विजयी हुआ है
इतिहास दर्ज करता है
आदिम साम्य युग रह कर निकल गया
गुलाम युग बीत गया
सामंत युग चला गया
पूंजीवाद छाया है
साम्राज्य भी आएगा कुछ पल
यह भी चला जाएगा
फिर से नई क्रांति होगी 
समाजवाद के लिए फिर 
नया द्वन्द्व होगा
फिर भी लोग ही लड़ेंगे
नहीं गढ़गे कोई मसीहा
क्योंकि हम लोग हैं 
प्रकृति के साथ चलने वाले 
वैज्ञानिक चेतना के लोग
मसीहा नहीं चुनते 
बस कुछ नेतृत्वकारी तत्व ले कर
चलते हैं
क्रांतिकारी मसीहा नहीं बनते
दुनिया को मसीह से मुक्त करते हैं
इंसानियत के लिए.... 


डा नवीन