सावरकर का सच, कपूर आयोग रिपोर्ट-1:
जनचौक संपादकीय टीम द्वारा तैयार
हर आम और खास मौके पर सावरकर के साथ मौजूद रहते थे गांधी के हत्यारे गोडसे और आप्टे
बीजेपी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के घोषणापत्र में वीडी सावरकर को भारत रत्न देने की घोषणा की है। इसके घोषणापत्र में शामिल होने के साथ ही नया विवाद खड़ा हो गया है। सबसे बड़ा एतराज तो इसी बात को लेकर है कि इतने बड़े सम्मान को चुनावी मुद्दा बनाया जा रहा है। ऊपर से जिस शख्स को देने की बात की जा रही है वह खुद इतिहास का सबसे विवादित व्यक्ति रहा है। आजादी की लड़ाई के दौरान उसने अंग्रेजों से न केवल छह बार माफी मांगी है बल्कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब सुभाष चंद्र बोस बाहर रहकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई संगठित कर रहे थे तब यह शख्स युद्ध में अंग्रेजों के साथ लड़ने के लिए जगह-जगह सैनिक भर्ती कैंप लगा रहा था। और इस काम को उसकी अगुआई में पूरी हिंदू महासभा कर रही थी। और उससे भी बड़ा मामला यह है कि यह शख्स गांधी की हत्या में आरोपी था। और नाथूराम गोडसे और उसके साथियों के साथ हत्या के मुकदमे के दौरान कठघरे में खड़ा था।
पहले मुकदमे में ठोस सबूतों के अभाव में बच गया था। लेकिन बाद में 1969 में इंदिरा गांधी के शासन के दौरान गांधी की हत्या की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज जीवन लाल कपूर के नेतृत्व में एक जांच आयोग गठित किया गया था। एक सदस्यीय इस आयोग ने इनके खिलाफ कई सबूत हासिल कर लिए थे। लेकिन रिपोर्ट आने के कुछ ही दिनों बाद सावरकर की मौत हो गयी। नतीजतन इस मामले को कानूनी तौर पर आगे नहीं बढ़ाया जा सका। लेकिन यह रिपोर्ट आज भी सार्वजनिक डोमेन में मौजूद है। दो वाल्यूम में प्रकाशित इस रिपोर्ट को पूरा का पूरा दे पाना तो संभव नहीं है। लेकिन इसके कुछ प्रासंगिक अंशों को यहां दे रहे हैं।
25.161: वीडी सावरकर के निजी सुरक्षाकर्मी अप्पा रामचंद्र कासर का 4 मार्च 1948 को दर्ज किया गया बयान यह दिखाता है कि यहां तक कि 1946 में आप्टे और गोडसे (दोनों गांधी की हत्या के दोषी) सावरकर के घर अक्सर जाने वालों में शामिल थे और करकरे (गांधी की हत्या का दोषी) भी कभी-कभी जाता था। जब देश के विभाजन की चर्चा चल रही थी तो ये तीनों सावरकर से मिलने जाया करते थे और उनसे विभाजन के मसले पर विचार-विमर्श करते थे। सावरकर आप्टे और गोडसे को बताते थे कि कांग्रेस जिस तरह से काम कर रही है वह हिंदू हितों के खिलाफ है। और उन्हें अग्रणी के जरिये कांग्रेस, महात्मा गांधी और उनकी अधिनायकवादी नीतियों के खिलाफ प्रचार संचालित करना चाहिए। (अग्रणी अखबार था जिससे ये सब जुड़े हुए थे। बाद में इसे सावरकर ने ही ले लिया था।)
25.162: अगस्त 1947 में जब एक बैठक के सिलसिले में सावरकर पूना गए तो गोडसे और आप्टे उस दौरान हमेशा सावरकर के साथ रहे और ये सभी मिलकर हिंदू महासभा की भविष्य की नीति को लेकर बहस करते थे। (सावरकर ने) उन्हें बताया कि वह खुद अब बूढ़े हो रहे हैं और अब उनको ही इस काम को आगे बढ़ाना है।
25.163: अगस्त की शुरुआत में 5-6 अगस्त को अखिल भारतीय हिंदू महासभा का दिल्ली में एक कन्वेंशन था। (जिसमें भाग लेने के लिए) सावरकर, गोडसे और आप्टे हवाई जहाज में एक साथ गए थे (मुंबई तब बांबे से दिल्ली)। कन्वेंशन में कांग्रेस की नीतियों की जमकर आलोचना की गयी थी। 11 अगस्त को सावरकर, गोडसे और आप्टे प्लेन से बांबे एक साथ आये।
25.164: नवंबर 1947 के महीने में अखिल भारतीय हिंदू महासभा की माहिम (मुंबई) में एक कांफ्रेंस थी और ग्वालियर के डॉ. परचुरे (गांधी हत्या के दोषी) और सूर्य देव ने भी उसमें शिरकत की थी।
25.165: दिसंबर 1947 के बीच में बडगे (गांधी की हत्या का दोषी, हथियार इसी शख्स ने रखे थे।) सावरकर के स्वास्थ्य की जानकारी लेने के लिहाज से उनके पास आया लेकिन उसकी उनसे मुलाकात नहीं हो सकी।
25.166: 13 या 14 जनवरी या फिर इसी के आस-पास करकरे सावरकर का हाल चाल लेने के लिहाज से उनके पास एक पंजाबी युवक के साथ आया था। वे सावरकर के पास 15-20 मिनट तक रुके। 15 या फिर 16 जनवरी को आप्टे और गोडसे सावरकर से रात में 9.30 बजे के आस-पास मिलने आए थे। फिर उसके तकरीबन एक सप्ताह बाद 23 या फिर 24 जनवरी को आप्टे और गोडसे एक बार फिर सावरकर के पास आए और उनके साथ सुबह 10 से लेकर 10.30 बजे तक तकरीबन आधा घंटा रहे।
25.167: महात्मा गांधी की हत्या की जब शाम 5.45 मिनट पर रेडियो पर घोषणा हुई तो कासर सावरकर के पास गया और उन्हें उसकी सूचना दी तो उन्होंने इसे एक बुरी खबर बताया और उसके बाद वह शांत हो गए। उसी रात 2 बजे दामले (सावरकर के निजी सचिव) और कासर गिरफ्तार हो गए और उन्हें सीआईडी दफ्तर ले आया गया। कासर ने कहा कि उसे हत्या के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं है।
25.168: सावरकर के निजी सचिव गजानन विष्णु दामले से भी बांबे की पुलिस ने 4 मार्च 1948 को पूछताछ की थी। उसने बताया कि वह अग्रणी के एनडी आप्टे को पिछले चार साल से जानता था। आप्टे ने अहमदनगर में एक राइफल क्लब शुरू किया था और युद्ध (द्वितीय विश्वयुद्ध) के समय आनरेरी रिक्रूटमेंट अफसर था। (आपको बता दें कि सावरकर के नेतृत्व में हिंदू महासभा ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजी सेना में भर्ती के लिए जगह-जगह रिक्रूटमेंट सेंटर खोले थे। आप्टे उन्हीं में एक अफसर था।)
आप्टे सावरकर के घर अक्सर आने-जाने वालों में शामिल था। कभी-कभी गोडसे के साथ आता था। जब अग्रणी अखबार के लिए सिक्योरिटी की मांग की गयी तब सावरकर ने आप्टे और गोडसे को 15 हजार रुपये दिए थे। वह अखबार बंद कर दिया गया था और हिंदू राष्ट्र के नाम से नया अखबार शुरू कर दिया गया था। सावरकर उसके निदेशकों में से एक थे। जबकि आप्टे और गोडसे मैनेजिंग एजेंट थे। वह वीआर करकरे को भी तीन साल से जानता था जो अहमदनगर में हिंदू महासभा का कार्यकर्ता था। और कभी-कभी सावरकर के पास आया करता था। बडगे (गांधी की हत्या का दोषी) को भी वह तीन सालों से जानता था। वह भी सावरकर के पास आता रहता था।
25.169: जनवरी 1948 के पहले सप्ताह में करकरे और एक पंजाबी रिफ्यूजी युवक सावरकर के पास आए थे। और ये दोनों उनके पास तकरीबन 30 से लेकर 45 मिनट तक रुके। दोनों फिर कभी सावरकर से मिलने नहीं आए।
25.170: आप्टे और गोडसे 1948 के मध्य में रात में सावरकर से मिलने आए थे। बडगे ने आखिरी बार जब सावरकर से मुलाकात की थी वह दिसंबर, 1947 था। डॉ. मुंजे समेत बहुत सारे हिंदू महासभा के नेता सावरकर से मिलने आया करते थे।
25.171: 26 जनवरी 1948 को अखिल भारतीय हिंदू महासभा के सचिव आशुतोष लाहिरी भी सावरकर सदन आए थे। उनके साथ दो और लोग थे। ये सभी एयरपोर्ट से सीधे सावरकर सदन में स्थित उनके ऊपर के कमरे में पहुंचे थे। दूसरे दिन एक बार फिर लाहिरी सावरकर सदन से मिलने आए। और उनके साथ तकरीबन एक से डेढ़ घंटे तक रहे। उसके बाद वह पूना चले गए। और फिर 29 जनवरी को लौटे। वह फिर 30 जनवरी को सावरकर से मिलने आए और उनके साथ लंबी बातचीत की। लाहिरी ने शाम को 4 बजे एक प्रेस कांफ्रेंस की। और उन्हें चौपाटी पर एक आम सभा को संबोधित करना था जिसको महात्मा गांधी की हत्या के चलते रद्द कर दिया गया।
25.172: रेडियो न्यूज में इस बात की घोषणा होने पर दामले तुरंत उसकी सूचना देने के लिए सावरकर के पास गया उन्होंने उससे कहा कि वह अगली सुबह एक प्रेस बयान देंगे। उसी रात दामले और कासर गिरफ्तार कर लिए गए।
25.173: इन दोनों गवाहों के बयान दिखाते हैं कि आप्टे और गोडसे दोनों बांबे स्थित सावरकर के घर पर अक्सर जाते रहते थे। यहां तक कि सम्मेलनों में या फिर तकरीबन हर सभा में उन्हें सावरकर के साथ देखा जा सकता था। जनवरी 1948 में वे सावरकर के साथ दिल्ली से बांबे आए और फिर बांबे से दिल्ली गए। यह प्रमाण यह भी दिखाता है कि करकरे भी सावरकर से अच्छे से परिचित था। वह अक्सर उनके घर आता-जाता रहता था। बडगे भी सावरकर के घर अक्सर आने जाने वालों में शामिल था।
डॉ. परचुरे ने भी उनसे मुलाकात की। यह सब कुछ दिखाता है कि महात्मा गांधी की हत्या में जो लोग भी शामिल थे वो सभी किसी खास समय या फिर किसी दूसरे समय सावरकर सदन में इकट्ठा होते रहते थे। और कभी-कभी इनकी सावरकर के साथ लंबी-लंबी बैठकें होती थीं। यह बेहद महत्वपूर्ण है कि करकरे और मदनलाल (मदन लाल पाहवा जिसने 20 जनवरी को दिल्ली स्थित बिड़ला हाउस पर पीछे से बम फेंका था) ने दिल्ली रवाना होने से पहले सावरकर से मिले थे। और आप्टे तथा गोडसे दोनों ने बम फेंके जाने और हत्या होने से पहले भी सावरकर से मुलाकात की थी और हर मौके पर उनकी लंबी बैठकें हुई थीं। यह खास कर नोट किया जाना चाहिए कि 1946, 1947 और 1948 के दौरान हुईं विभिन्न जगहों की आम सभाओं में गोडसे और आप्टे उनके साथ मौजूद थे।
जारी…..