अब स्टेट बैंक का निजीकरण, पार्टनर बना रिलायंस पेमेंट बैंक

*अब स्टेट बैंक का निजीकरण, पार्टनर बना रिलायंस पेमेंट बैंक


RPB, रिजर्व बैंक ने दी अनुमति, दिसंबर में शुरू होगा काम, विरोध शुरू*



अब स्टेट बैंक का निजीकरण, पार्टनर बना रिलायंस पेमेंट बैंक RPB, रिजर्व बैंक ने दी अनुमति, दिसंबर में शुरू होगा काम, विरोध शुरू  
रायपुर. सरकारी उदयमों के दिनोंदिन होते निजीकरण की आशंकाओं के बीच एक बुरी खबर आई है कि भारतीय स्टेट बैंक यानि एसबीआई के साथ अब रिलायंस पेमेंट बैंक यानि आरपीबी भागीदार बनने जा रहा है. भारतीय रिज़र्व बैंक ने मार्च 2017 में अपना भुगतान बैंक शुरू करने के लिए रिलायंस इण्डस्ट्रीज लिमिटेड को अंतिम मंजूरी दे दी है जिसके बाद दिसंबर से रिलायंस कंपनी स्टेट बैंक के साथ मिलकर अपना बैंक संचालित करेगी. 


आरआईएल द्वारा रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज को लिखे गए पत्र के अनुसार, आरआईएल ने 1 जुलाई 2016 को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को सूचित किया है कि उसने एसबीआई के साथ एक साझेदारी उद्यम के तौर पर प्रवेश कर लिया है जिसमें RIL 70 प्रतिशत इक्विटी निवेश के साथ प्रमोटर होगा और SBI की 30 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी. 


रिलायंस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने टेलीफोन पर कहा कि देश के सबसे बड़े कॉरपोरेट समूह और सबसे बड़े बैंक के साथ हाथ मिलाने के बाद, देश का बैंकिंग परिदृश्य हर समय के लिए बदल जाएगा जैसे कि मोबाइल सेगमेंट. हमने देश के उपभोक्ताओं को सबसे सस्ती और नि:शुल्क् मोबाइल सेवा उपलब्ध कराई. 
शर्तों के अनुसार आरआईएल 70 प्रतिशत इक्विटी निवेश के साथ प्रमोटर होगा और इसमें एसबीआई की 30 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी. 


जानते चलें कि भारतीय स्टेट बैंक दुनिया के शीर्ष 50 बैंकों की सूची में शामिल होने वाला एकमात्र भारतीय बैंक है देश और दुनिया का सबसे बड़ा और विश्वसनीय बैंक माना जाता है. ना सिर्फ आम जनता बल्कि केन्द्र और राज्य सरकारों का 70 प्रतिशत आर्थिक व्यवस्था इसी बैंक से संचालित होती रही है लेकिन अब रिलायंस पेमेंट बैंक से जुड़ने के बाद इसके दुर्दिन शुरू हो सकते हैं. योजना के मुताबिक एक पैसा खर्च किए बिना रिलायंस इंडस्ट्रीज एसबीआई की बैंकिंग सेवाओं का पूरा इस्तेमाल कर सकेगा साथ ही बैंक के कर्मचारी और 1,50,000 से अधिक व्यापार संवाददाताओं का इस्तेमाल भी कर सकेगा. 


खतरा इस बात का है कि एसबीआई के कर्मचारियों को रिलायंस ग्रुप के उत्पादों जैसे रिलायंस म्यूचुअल फंड, रिलायंस जनरल इंश्योरेंस और रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस को बेचने में लगा सकता है जो निश्चित तौर पर एसबीआई की कमाई में सेंध लगाने जैसा होगा क्योंकि ऐसे ही उत्पाद एसबीआई खुद भी संचालित कर रहा है जैसे एसबीआई इंश्योरेंस, SBI Buddy, SBI Mobi Cash, SBI Anywhere और अन्य मोबाइल बैंकिंग सेवाएं. भविष्य का खतरा यह है कि इसके बाद एसबीआई की योजनाओं का भविष्य क्या होगा!


दूसरी ओर एसबीआई के साथ आरपीबी यानि रिलायंस पेमेंट बैंक को भागीदार बनाने का विरोध शुरू हो गया है. स्टेट बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन (चेन्नई सर्कल) के महासचिव और अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ के अध्यक्ष थॉमस डी फ्रेंको के अनुसार, आरआईएल को अपना काम कराने के लिए रिश्वत देने, जोड़-तोड़ करने में महारत हासिल है. कंपनी ने अपने व्यावसायिक हितों की पूर्ति के लिए कई कानून तोड़े हैं. उन्होंने अपनी बात को साबित करने के लिए कई उदाहरणों, सार्वजनिक लेखा समिति (पीएसी) और भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट और यहां तक ​​कि आपराधिक आरोपों का भी हवाला दिया. 


एसबीआई में पांच बैंकों के विलय के बाद वैसे ही मानव संसाधन की कमी से जूझ रहा है. ऐसे रिलायंस कंपनी के जुडने के बाद यह समस्या और ज्यादा बढ़ जाएगी क्योंकि बैंक के कर्मचारियों का इस्तेमाल रिलायंस कर सकेगा. इसलिए एसबीआई को किसी भी साझेदार के साथ जुड़ने से पहले उसे बैंक प्रबंधन को सभी हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श करना चाहिए ।


आर पी वर्मा की वाल से