भारतीय कृषि के सम्मुख चुनौतियां – भाग–6

भारतीय कृषि के सम्मुख चुनौतियां – भाग–6


पुरुषोत्तम शर्मा


गतांग से आगे...


आजाद भारत में भूमि सुधारों की शुरुआत


आजादी की लड़ाई के अंतिम दौर में तेलंगाना किसान विद्रोह के जारिये देश में मुक्कम्मल भूमि सुधार की चुनौती कम्युनिस्टों ने पेश कर दी थी. आजादी के बाद भारत में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, मद्रास, असम एवं बाम्बे राज्य सबसे पहले अपने यहाँ 1949 में जमींदारी उन्मूलन बिल लाए. इन सब ने गोविन्द बल्लभ पन्त के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन समिति की रिपोर्ट को अपने बिल का आधार बनाया. 1950 में भारत सरकार भी जमींदारी उन्मूलन कानून ले आई. पर जमींदार इसके खिलाफ अदालत में चले गए. क्योंकि संविधान में उस वक्त संपत्ति के अधिकार का आर्टिकल 19, 31 संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार का दर्जा देता था. 1951 में केंद्र सरकार ने संविधान संशोधन कर संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार का दर्जा देने वाले प्रावधान बदले. इससे देश में जमींदारी उन्मूलन कानूनों को लागू करने का रास्ता साफ़ हुआ.


जमीन के बदले जमींदारों को दिया मुआवजा और बांड


इसके बाद राज्य सरकारों ने 17,00 लाख हैक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया. इसकी एवज में जमींदारों को 670 करोड़ रुपए मुआवजा बांटा गया. कई राज्य सरकारों ने जमींदारों से फंड लेकर उन्हें जमीन के 10 से 30 साल के बांड जारी कर दिए, ताकि जमीनों पर उनका नियंत्रण बना रहे.


कश्मीर में भारत का पहला क्रांतिकारी भूमि सुधार 


नेशनल कांफ्रेंस के नेता शेख अब्दुल्ला जो कि वामपंथी विचारों से प्रभावित थे, ने सर्व प्रथम जम्मू कश्मीर में एक क्रांतिकारी भूमि सुधार कार्यक्रम लागू किया. 1950 में उनके द्वारा लाये गए “बिग लैंडेड एस्टेट्स अबोलिशन एक्ट” के तहत (1) भूमि की अधिकतम सीमा 182 कैनाल (22.75 हेक्टेयर) तय कर दी गई. इसमें बागानों, चारागाहोंजलाऊ और न जोतने योग्य बेकार भूमि को शामिल नहीं किया गया, (2) बंटाई पर खेती करने वाले किसानों को ज़मीन का मालिकाना दिया गया, (3) जिन किसानों को ज़मीन उपलब्ध कराई गई उनके लिए 160 कैनाल की सीमा निर्धारित की गई जिसमें पहले से मालिकाने की ज़मीन भी शामिल थी, (4) मुआवज़े के सवाल पर यह व्यवस्था दी गई कि राज्य की विधानसभा इसे बाद में तय करेगी. बाद में  विधानसभा में  फ़ैसला लिया गया कि किसी तरह का मुआवज़ा नहीं दिया जाएगा. इस तरह जम्मू और कश्मीर भारत का इकलौता राज्य बन गया जहाँ बड़े ज़मींदारों को ज़मीनों के बदले कोई मुआवज़ा नहीं दिया गया, (5) पुंछ क्षेत्र के सभी ग़ैर मौरूसी काश्तकारों को उनकी ज़मीनों का मालिकाना दे दिया गया, (6) ऊधमपुर में शिक़ार के लिए आरक्षित की गई ज़मीनों का आरक्षण समाप्त कर दिया गया और किसानों को इन ज़मीनों पर खेती करने की अनुमति दी गई, (7) शिक़ार के नियमों में बदलाव करके जंगलों के आसपास के गाँवों के किसानों को उन जंगली जानवरों पर गोली चलाने के अधिकार दिए गए जो उनकी खेती को नुकसान पहुँचाते थे और (8) 13 अप्रैल 1947 के बाद ज़मीन के अंतरण के सभी आदेश और डिक्रियों को अमान्य घोषित कर दिया गया ताकि इस क़ानून की मूलभावना से खिलवाड़ न हो सके. पर कुछ वर्ष बाद केंद्र सरकार ने शेख अब्दुल्ला की सरकार को बर्खास्त कर उन्हें जेल में डाल दिया गया.


जारी...