उपेक्षा के शिकार रहे देश के महान गणितज्ञ विशिष्ठ नारायण का निधन


 


उपेक्षा के शिकार रहे देश के महान गणितज्ञ विशिष्ठ नारायण का निधन।


(अखिल भारतीय किसान महासभा की ओर से श्रद्धांजलि)


श्याम सिंह रावत 


देश की एक महान विभूति महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का आज गुरुवार को पटना के पीएमसीएच में निधन हो गया। वे पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे। बताया जा रहा है कि आज तड़के उनकी तबीयत आज सुबह अचानक खराब हो गई। उनके मुंह से खून निकलने लगा। जिसके बाद उन्हें तत्काल पीएमसीएच ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।


वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर नामक गाँव में 1942 में हुआ था। पटना के साइंस कॉलेज में पढ़ते हुए उनकी मुलाकात अमेरिका से पटना आए प्रोफेसर कैली से हुई। उनकी प्रतिभा से प्रभावित हो कर प्रोफेसर कैली ने उन्हें बरकली आकर शोध करने का निमंत्रण दिया। वे 1963 में कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में शोध के लिए गए। जहां से उन्होंने 1969 में पी.एच.डी. प्राप्त की। उनके शोध कार्य ने उन्हें भारत और विश्व में प्रसिद्ध कर दिया। इसके बाद वे वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर नियुक्त हो गए।


महान प्रतिभाशाली वशिष्ठ नारायण सिंह ने विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत E=MC2 को चुनौती दी थी। साथ ही, गौस की थ्योरी पर भी सवाल उठाए थे। यहीं से उनकी प्रतिभा का लोहा दुनिया ने मानना शुरू किया था।


भोजपुर जिले के बसंतपुर गांव से शुरू हुआ उनका सफर नासा तक पहुंचा, उन्होंने नासा में भी काम किया। उनके बारे में यह भी मशहूर है कि नासा में अपोलो की लॉचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक जैसा ही रहा था।


वे 1971 में भारत लौट आए। यहां लौटने के बाद उन्होंने आइआइटी कानपुर, आइआइटी बंबई और भारतीय सांख्यिकी संस्थान कोलकाता में सेवा की। 1973 में शादी के कुछ समय बाद 1974 में उन्हें मानसिक दौरे आने लगे और युवावस्था में ही 1975 में वे भूलने की बीमारी सिजोफ्रेनिया रोग से पीड़ित हो गए। पत्नी ने उनकी सालों की मेहनत से तैयार रिसर्च को आग लगा दी और बीमारी से ग्रस्त पति से तलाक ले लिया। 


अगस्त 1989 को रांची में इलाज कराकर उनके भाई उन्हें बेंगलुरु ले जा रहे थे। रास्ते में खंडवा स्टेशन पर उतर गए और भीड़ में कहीं खो गए। करीब 5 साल तक गुमनाम रहने के बाद उनके गांव के लोगों को वे छपरा में मिले। इसके बाद राज्य सरकार ने उनकी सुध ली। उन्हें विमहांस बेंगलुरु इलाज के लिए भेजा गया। जहां मार्च 1993 से जून 1997 तक इलाज चला। इसके बाद से वे गांव में ही रह रहे थे।


तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री शत्रुध्न सिन्हा ने इस बीच उनकी सुध ली थी। स्थिति ठीक नहीं होने पर उन्हें 4 सितंबर 2002 को मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया। करीब एक साल दो महीने उनका इलाज चला। स्वास्थ्य में लाभ देखते हुए उन्हें यहां से छुट्टी दे दी गई थी। डॉ. वशिष्ठ 44 साल से सिजोफ्रेनिया से जूझ रहे थे और दो दशक से वे गुमनामी में जी रहे थे।


यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुनियाभर में चर्चित और अग्रणी गणितज्ञों में शुमार किए जाने वाले वशिष्ठ नारायण जी निधन के बाद भी सरकारी उपेक्षा के शिकार बने और काफी देर तक उनका शव एंबुलेंस का इंतजार करता रहा। 


ऐसी महान विभूति को विनम्र श्रद्धांजलि।