धर्म के आधार पर बना कानून संविधान सम्मत नहीं
नागरिकता कानून में हुए संशोधन पर संविधान एक्सपर्ट्स का क्या कहना है?
नागरिकता संशोधन विधेयक 11 दिसंबर को राज्यसभा से पास हो गया. 13 दिसंबर की सुबह-सुबह इसे राष्ट्रपति ने भी मंज़ूरी दे दी है. इस बिल का पूर्वोत्तर में बहुत विरोध हो रहा है. सरकार का दावा है कि ये बिल संवैधानिक है. लेकिन कानूनी जानकार सरकार के दावे से सहमत नहीं हैं.
लॉ कमीशन और नीति आयोग के पूर्व सदस्य रहे कानून के प्रोफेसर मूलचंद शर्मा ने इस बिल के बारे में कहा,
धर्म के आधार पर नागरिकता की बहस 1950, 1971 में हुई थी. लेकिन संसद ने इसे नकार दिया था. हम आज क्या कर रहे हैं? ये (CAB) धर्म के आधार पर वर्गीकरण है.
प्रोफेसर शर्मा ने आगो कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई जजमेंट में कहा है कि राइट टू डिग्निटी एक मूलभूत हक़ है. नैतिक मूल्यों को पहले भी परिभाषित किया जा चुका है, लेकिन आप उसे छीन रहे हो.'
लोकसभा के सेक्रेटरी रह चुके और कानूनी जानकार पीडीटी आचार्य ने भी नागरिकता कानून में हुए इस संशोधन पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा,
जैसा कि बिल अभी दिख रहा है, वह सिर्फ आर्टिकल 14 का ही नहीं बल्कि आर्टिकल 5, आर्टिकल 11 का भी उल्लंघन करता है जो कि नागरिकता के अधिकार को परिभाषित करता है.' देश के पूर्व चीफ जस्टिस के. जी. बालाकृष्णन ने कहा कि
जिस तरह धर्म के आधार पर प्रताड़ित लोगों को सरकार स्वीकार रही है, वह बड़ा दिल दिखाना हुआ. लेकिन कानूनी नजरिए से इस पर बहस हो सकती है. इस बिल को सुप्रीम कोर्ट से होकर गुजरना होगा, क्योंकि नागरिकता को लेकर कई तरह नियम होते हैं जिन्हें पूरा करना जरूरी है.'
देश के पूर्व चीफ जस्टिस के जे बालाकृष्णन. देश के पूर्व चीफ जस्टिस के जे बालाकृष्णन.
पूर्व सॉलिसिटर जनरल मोहन परासरण ने इस बिल की आलोचना की है. उन्होंने इसे असंवैधानिक करार दिया है. मोहन परासरण ने कहा कि ये बिल कानून का उल्लंघन करता है, ये मनमानी है जिसका कानून से कोई वास्ता नहीं है.
उनके अलावा सुप्रीम कोर्ट में त्रिपुरा पीपुल्स फ्रंट द्वारा दायर याचिका की अगुवाई करने वाले वकील मनीष गोस्वामी ने कहा, 'ये बिल धर्म के आधार पर लाया गया है जो सीधे तौर पर संविधान का उल्लंघन है.'उनके अलावा सुप्रीम कोर्ट में त्रिपुरा पीपुल्स फ्रंट द्वारा दायर याचिका की अगुवाई करने वाले वकील मनीष गोस्वामी ने कहा, 'ये बिल धर्म के आधार पर लाया गया है जो सीधे तौर पर संविधान का उल्लंघन है.'