ईको सिस्टम की रक्षा में किसानों का परम्परागत ज्ञान ज्यादा समृद्ध- गतांक से आगे

ईको सिस्टम की रक्षा में किसानों का परम्परागत ज्ञान ज्यादा समृद्ध-


गतांक से आगे


पुरुषोत्तम शर्मा


 


एक हजार साल पहले खोज ली थी पानी से चक्की चलाने की तकनीकी


आज जो सरकारें और लोग ऊर्जा की जरूरतों का हवाला देकर पहाड़ की नदी घाटियों को जेपी, रेड्डी, एलएनटी, एनटीपीसी आदि के हवाले करने, बिजली उत्पादन के नाम पर पहाड़ों व नदियों से उन्हें मनमानी करने की छूट देने की वकालत करते नहीं थकते हैं, उन्हें यह याद रखना चाहिए कि जब बिजली का आविष्कार ही नहीं हुआ था, तब पहाड़ के लोगों ने आज से एक हजार साल पहले घट (पनचक्की) का आविष्कार कर पानी से ऊर्जा उत्पन करने की विधि खोज ली थी. यह विधि नदी और पहाड़ों को छेड़े बिना ही रन वे रिवर पद्धत्ति से सफल हुई थी. तब पहाड़ के लोगों को यह विधि सिखाने के लिए किसी जेपी, रेड्डी, एलएनटी, एनटीपीसी को लाने की जरूरत नहीं पड़ी थी, यह इको सिस्टम को क्षति पहुंचाए बिना विकास करने का पहाड़ के लोगों का सिंचित परंपरागत ज्ञान था.


आज सुरंग आधारित जिन बड़ी –बड़ी विनासकारी परियोजनाओं को ये कम्पनियाँ बना रही हैं वो रन वे रिवर पद्धत्ति नहीं कहलाती हैं. पहाड़ के लोगों के इस सिंचित परम्परागत ज्ञान के आधार पर यहां की कृषि, पशुपालन और ग्रामीण दस्तकारी के साथ ही पनचक्की के लिए विकसित की गई रन वे रिवर पद्धति को ऊर्जा की अन्य जरूरतों के लिए विकसित कर यहां की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता था.


जारी...