ईको सिस्टम की रक्षा में किसानों का परम्परागत ज्ञान ज्यादा समृद्ध-
गतांक से आगे
पुरुषोत्तम शर्मा
सच तो यह है कि “इको संसिटिव जोन” के गठन का निर्णय एनडीए सरकार ने 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेई की अध्यक्षता में हुई बैठक में लिया था. इसी तरह 18 दिसंबर 12 को उत्तरकाशी में “इको संसिटिव जोन” के गठन का निर्णय हो जाने के बाद भी न तो राज्य की कांग्रेस सरकार ने इसके खिलाफ कोई कदम उठाया और न ही पूर्व में भेजे गए नए सेंचुँरीज के प्रस्तावों को ही वापस लेने की कोई पहल की. अगर राज्य में निर्धारित सभी क्षेत्रों को इको संसिटिव जोन बना दिया गया तो वहां के निवासियों का जीना मुश्किल हो जाएगा.
वनों पर निर्भर उनकी परम्परागत आजीविका के साधन पशुपालन और खेती छोड़ने के लिए उन्हें मजबूर कर दिया जाएगा, वे लघु वन उत्पाद जो उनका परम्परागत वनाधिकार है से वे वंचित हो जायेंगे. वे अपनी आबादी का विस्तार नहीं कर पायेंगे और पुराने घरों का पुनर्निर्माण करने के लिए वन पर्यावरण मंत्रालय से इजाजत लेनी होगी. जबकि पूंजीपतियों को होटल व काटेज बनाकर अपना व्यवसाय करने की इजाजत होगी.
बात साफ़ है कि सरकार “इको संसिटिव जोन” के नाम पर इको सिस्टम को नुकसान पहुंचाने वाली ताकतों के व्यावसायिक हितों की रक्षा के लिए स्थानीय जनता को (जो हजारों वर्षों से इको सिस्टम के एक अंग के रूप में यहां मौजूद हैं) उनकी जमीनों व परम्परागत आजीविका से बेदखल करना चाहती है.
जारी.....