ईको सिस्टम की रक्षा में किसानों का परम्परागत ज्ञान ज्यादा समृद्ध- गतांक से आगे पुरुषोत्तम शर्मा

ईको सिस्टम की रक्षा में किसानों का परम्परागत ज्ञान ज्यादा समृद्ध-  


गतांक से आगे  


पुरुषोत्तम शर्मा


 


अब ईको सिस्टम के पहरेदारों को सजा


पहाड़ के जीवन में अति मुनाफे के लिए जब तक यह बाहरी हस्तक्षेप नहीं था, तब तक यहां के इको सिस्टम को कोई नुकसान नहीं पहुचा था. मगर अब अति मुनाफे पर खड़ी प्रकृति के लिए विनाशकारी यह राजनीति “इको संसिटिव जोन” के माध्यम से उन पर्वत वासियों को विस्थापन की सजा दे रही है जो हजारों वर्षों से इस इको सिस्टम के मजबूत पहरेदार रहे हैं. “इको संसिटिव जोन” कानून इनकी परम्परागत आजीविका पर एक बड़ा हमला है जो इन दुर्गम क्षेत्रों के नौजवानों को भी पलायन के लिए मजबूर कर देगा. इको सिस्टम को बचाए रखने  और जैव विविधता की रक्षा के नाम पर उत्तराखंड के एक बड़े भू - भाग को “इको संसिटिव जोन” में तब्दील करने का षडयंत्र चल रहा है. इसके पहले चरण में 18 दिसंबर 2012 से गंगोत्री से उतरकाशी तक के एक सौ किमी क्षेत्र को  “इको संसिटिव जोन” घोषित किया जा चुका है.


केंद्र सरकार ने देश के सभी राष्ट्रीय पार्कों और सेंचुँरीज के दस किलोमीटर बाहरी क्षेत्र को “इको संसिटिव जोन” घोषित करने का निर्णय लिया है. उत्तराखंड में पहले से चौदह राष्ट्रीय पार्क और सेंचुँरीज मौजूद थे. बावजूद इसके राज्य सरकार ने इनकी संख्या बढाने का प्रस्ताव भेज कर इस साल तीन नए सेंचुँरीज क्षेत्रों को स्वीकृति दिला दी है. पहले ही इन राष्ट्रीय पार्कों व सेंचुँरीज की सीमा में आये राज्य के हजारों गांवों पर विस्थापन का खतरा मंडरा रहा है, ऐसे में अगर इनके दस किमी बाहरी क्षेत्र को “इको संसिटिव जोन” घोषित कर दिया गया तो उत्तराखंड की आबादी के एक बड़े हिस्से को विस्थापन के लिए मजबूर कर दिया जाएगा. राज्य में “इको संसिटिव जोन” का भारी विरोध देख सत्ताधारी कांग्रेस और भाजपा ने भी इसका विरोध किया है. इन दोनों पार्टियों का विरोध सिर्फ दिखावा है.


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