समीक्षा
(एक जरूरी पुस्तक )
डॉ. नवीन जोशी
...दर्शन की प्राथमिक समझ जरूरी है...
कामरेड पुरूषोत्तम शर्मा जी की एक अद्वितीय पुस्तक आज हमारे हाथ में है। ऐसे समय में जब दुनिया मार्क्सवाद के अस्तित्व पर सवाल खडा कर रही है उस घनघोर अँधेरे में रास्ता दिखाती यह पुस्तक हर मायने में अब्बल है। जहाँ हमें पुस्तक में पृथ्वी की उत्पत्ति के विषय में गम्भीर जानकारी मिलती है वही वैज्ञानिक तथ्यों से भरपूर उनकी पारखी नजर सृष्टि की रचना को भी इंगित करती है। कामरेड पुरूषोत्तम शर्मा जी मार्क्सवादी विद्वान अद्येता तो हैं ही साथ ही वे इस प्रकार के लेखक हैं जो चीजों को मूल से पकडते हैं जो मार्क्सवाद की पहली पहचान है। लेखक शानदार तरीके से पुस्तक में अनेकों धर्म के आधार पर पृथ्वी पर मानव जीवन की उत्पत्ति और विकास को रेखांकित करते हैं तथा वैज्ञानिक तुलना से इसको खारिज भी करते जाते हैं। धर्म में दर्शन की भाववादी गडमड को वे बारिकी से तलछट व पटाक्षेप करते हैं तथा साथ ही भाववादी फुहडता को भी नंगा कर देते हैं जो वास्तविक वैज्ञानिक लेखक की पहचान होती है। धर्म के ढोंग को वे हर हिन्दू सनातन धर्म पुस्तक से उठा कर तुलनात्मक अध्ययन करते हैं जो इस पुस्तक की ज्ञान बोध की प्रमाणिकता है। एक बडे लेखक होने के नाते वे अपने अध्ययन को इस तरह से स्थापित करते हैं कि आपको हर पंक्ति में फुटनोट की आवश्यकता ही महसूस नहीं होती। कामरेड पुरूषोत्तम शर्मा जी के नास्तिक होने पर भी वेद पुराण उपनिषदों कुरान बाईबिल अनन्य धार्मिक ग्रन्थों की गहन जानकारी आपको पुस्तक में झलकती हुई मिलती है। आपसे मौखिक चर्चा भी बहुत रोचक रहती है। कम्युनिस्ट पार्टी में गुरु शिष्य की परम्परा नहीं होती फिर भी मेरे लिए वे गुरु ही हैं उनके सान्निध्य में बहुत कुछ सीखने को मिलता है। कामरेड आगे लिखते हैं कि किस प्रकार आदिम साम्यवाद से सामंतवाद और पूंजीवाद पर भाववाद कैसे प्रभावी रहा और फिर अप्रभावी हुआ।
मध्य व आधुनिक पुनर्जागरण से चीजें कैसे बदल रही है और समाज कैसे बदल रहा है। वैज्ञानिक आविष्कार एवं समस्त नई तकनीकी से मानव जीवन कैसे सुखमय बन रहा है। यह सब यदि है तो द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के प्रकृति के नियम के अनुसार ही है। लेखक भाववादी दर्शन के कांट हेगेल के भौतिकवादी दर्शन में संक्रमणकालीन फायरबाख के आधिभौतिकवादी दर्शन में बदला, दर्शाते हैं । वही फिर मार्क्स ने कैसे इस सबकी चीरफाड़ कर द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का नियम स्थापित किया। मार्क्स और ऐगेल्स की महान सौद्धान्तिक समझ ने पूरी दुनिया को एक नया नजरिया दिया जिसको लेखक ने बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। जिसका सकारात्मक प्रभाव रहा कि पाठक एक सांस में पूरी पुस्तक पढ जाए। इतनी रोचक बन पडी है कि मूल स्रोत पुस्तक पढने का हर किसी नए पाठक का मन करने लगेगा जैसे कांट हेगेल मार्क्स ऐगेल्स आदि को। साम्यवादी समाज और व्यवस्था पर भी लेखक ने गहन पूर्वावलोकन किया है। समाजवाद और उससे साम्यवाद कैसे आएगा ऐसी तश्वीर भी लेखक प्रस्तुत करते हैं जो पाठकों एवं समाजवाद के लिए लड़ रहे तमाम लोगों के मन में नई सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। पुस्तक लिखने के पीछे रहे मनतव्य पर लेखक सफल होते दिख रहे हैं। जो पुस्तक के सफल होने के पुख्ता प्रमाण हैं।
पुस्तक बहुत शानदार बनी पडी है लेखक के अपने निजी अनुभवों की अनुभूति हर वाक्य में दिखती है। जनसाधारण के लिए लिखी पुस्तक भाषागत और व्याकरण के अनुसार थोडा हल्का भार रखती है जो पुस्तक का एक मात्र समालोचना है साथ ही नए और साधारण पाठकों के लिए सकारात्मक प्रभाव भी। कुल मिलाकर पुस्तक पठनीय है तथा संग्रह में रखने औरों को पढाने के साथ साथ आज के वातावरण में व्यवहार में लाने के लिए शानदार स्रोत है। विज्ञान के सुधीपाठक और विद्यार्थी विज्ञान पढने से पूर्व ऐसी पुस्तक पढें , जो कि आम रूप से हमारे समाज में उपलब्ध नहीं होती। इस कमी की पूर्ति करती यह पुस्तक हर विद्यार्थी और यहाँ तक कि हर विद्यालय के पास अनिवार्य रुप से पढ़ने के लिए होनी चाहिए।
लेखक कामरेड पुरूषोत्तम शर्मा जी को बहुत बहुत बधाइयाँ अगली श्रृखंला शीघ्र हमारे पास होगी की उम्मीद के साथ.....