उत्तराखण्ड में डीम्ड फारेस्ट के खिलाफ आंदोलन की तैयारी

उत्तराखण्ड में डीम्ड फारेस्ट के खिलाफ आंदोलन की तैयारी


अल्मोड़ा में 28 दिसम्बर 2019 को हुई विभिन्न संगठनों की बैठक में डीम्ड फारेस्ट को किसी भी कीमत पर नाप भूमि में ना बनाए जाने, नाप भूमि में पेड़ों के काटने तथा बेचने का अधिकार ग्रामीणों को देने तथा राज्य में वनाधिकार कानून को प्रभावी तरीके से लागू करने की मांग की गई।
संघर्ष को आगे बढ़ाने हेतु विभिन्न संगठनों को लेकर संघर्ष समिति का गठन किया गया। संघर्ष समिति ज्ञापन तैयार कर सरकार को देगा व जगह—जगह गोष्ठियां कर इन मुद्दों को जनता के सम्मुख रखेगा। आवश्यकता पड़ने पर अदालत जाएगा।


 उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, वन पंचायत संघर्ष मोर्चा, उत्तराखंड संसाधन पंचायत तथा अखिल भारतीय किसान महासभा की ओर से आयोजित इस संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि आज उत्तराखंड का 71 फीसदी भू—भाग वन के दायरे में आ चुका है। अब डीम्ड फारेस्ट के नाम से ग्रामीणों की नाप जमीनों को छीनने के प्रयास हो रहे है, जिसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नही किया जाएगा। वक्ताओं ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्र में मात्र 6 प्रतिशत नाप भूमि है। यदि उन्हें डीम्ड फारेस्ट के दायरे में लाया जाएगा तो न केवल काश्तकारों की जमीने छिनेगी बल्कि पहाड़ का विकास अवरूद्ध हो जाएगा। सरकार अदालत के सम्मुख इन तथ्यों को रखे।


बैठक में पर्यावरण संरक्षण के नाम पर तथाकथित पर्यावरण प्रेमियों द्वार जनता के वन अधिकारों को छीनने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों का पुरजोर विरोध किया गया। तथा उनसे ऐसी किसान विरोधी कार्यवाहियों को जनता के सम्मुख स्पष्ट करने की मांग की। 


बैठक में पीसी तिवारी, वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के तरूण जोशी, उत्तराखंड संसाधन पंचायत के ईश्वर जोशी, अखिल भारतीय किसान महासभा के आनंद नेगी, सरपंच संगठन बागेश्वर के जिलाध्यक्ष पूरन सिंह रावत, चंपावत के दान सिंह कठायत, उधम सिंह नगर के उदय सिंह, प्रभात ध्यानी, दीवान नगरकोटी, हयात रावत, दिनेश पांडे, महेश जोशी, दिनेश जोशी, मोहन कांडपाल, आनंदी वर्मा, गोपाल, विमला, किरन, मनोज पंत, राजू गिरी, भावना, भारती, दिपांशु आदि मौजूद थे