विभाजनकारी राजनीति और बड़ी पूंजी की सेवा का छुपा एजेंडा -
पुरुषोत्तम शर्मा
गतांक से आगे जारी .....
नकद आय ख़त्म होने के साथ बढ़ गई खेती की लागत
इसके दुष्परिणाम दो तरह से दिख रहे हैं, पहला छोटे किसानों की खेती में लागत बढ़ गयी है और दूसरा इनसे होने वाली नकद आय ख़त्म हो रही है. जिन छोटी जोतों को गरीब किसान अपने बैलों से जोतता था, उसे अब किराए के ट्रैक्टर से खेत जोतने पड़ रहे हैं. जिस गोबर को वह ईधन और खाद के रूप में इस्तेमाल कर रहा था, उसकी जगह उसे अब ईधन और खाद बाजार से खरीदनी पड़ रही है. दूसरा बैलों, दूध और खाद की जरूरत के लिए उसे गाय पालनी होती थी. इन पाली गई गायों से हर साल बढ़ रहे बछड़े/गाय की बिक्री या बैलों की खरीद-बिक्री से भी उसकी कुछ आय हो जाती थी. पर अब इस कानून के तहत गौ वंश की बिक्री पर लगी रोक के कारण ग्रामीणों ने गौवंश को पालना ही धीरे–धीरे छोड़ दिया है.
जारी.....