विभाजनकारी राजनीति और बड़ी पूंजी की सेवा का छुपा एजेंडा - गतांक से आगे जारी

विभाजनकारी राजनीति और बड़ी पूंजी की सेवा का छुपा एजेंडा -


पुरुषोत्तम शर्मा


गतांक से आगे जारी


दलितों, मुश्लिमों और भूमिहीनों पर ज्यादा प्रभाव


किसान मुक्ति यात्रा के दौरान मैंने ग्रामींण भारत में देखा कि ग्रामींण आबादी में भूमिहीन और खेत मजदूर की श्रेणी में दलितों, आदिवासियों और मुसलामानों की ही मुख्य संख्या है. उन्होंने अपने सहायक रोजगार के रूप में या कुछ ने तो मुख्य रोजगार के रूप में भी गौ पालन और डेयरी को अपनाया था. पर अब गायों की बिक्री पर लगी रोक और मुश्लिम गौ पालकों को गौ तस्कर कह कर उनके खिलाफ लगातार संगठित की जा रही भीड़ हत्या के आतंक से ये लोग गाय पालना छोड़ रहे हैं. हमारे देश में मुश्लिम समुदाय में कुरेसी बिरादरी का मुख्य रोजगार ही पशुओं की खरीद बिक्री से चलता है. मगर साम्प्रदायिक विभाजन की राजनीति के तहत लाए गए गौ रक्षा कानून, पशु क्रूरता कानून के नए आदेश के साथ ही छोटे बूचड़खानों की बंदी ने इन्हें पूरी तरह से रोटी का मोहताज बना दिया है.


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