क्यों क्यूबा को लाल सलाम कहना चाहिए
मनमीत
क्यूबा, एक ऐसा देश जिसका नाम आते ही दो दाढ़ी वाले क्रांतिकारी मुँह में सिगार दबाए याद हो आते है। क्यूबा में जब कम्युनिस्ट क्रांति हुई तो अमेरिका समेत पूंजीवादी देश इनके पीछे पड़ गए। लेकिन, कॉमरेड फिदेल कास्त्रो और चे ग्वेरा झुके नही। और अमेरिका के सामने ही सयुंक्त राष्ट्र संघ में दहाड़ लगाई ' समाजवाद या मौत'। अमेरिका डर गया।
ऐसा ही हेकड़ी अमेरिका ने कभी कम्युनिस्ट वियतनाम को दिखाई तो कभी कोरिया को। दोनों जगह तरीके से पिटाई हुई। असल में, कम्युनिस्ट भगवान अल्लाह या गॉड के लिए नही लड़ते। मानवता के लिए लड़ते है। इसलिए सिर ऊंचा करके जीते है। खैर..हम बात क्यूबा की कर रहे थे। वो भी कोरोना की लड़ाई में उसकी भागीदारी को लेकर। आप लोगों ने सुना ही होगा कि क्यूबा ने ब्रिटिश जहाज को अपने समुद्री तट पर लंगर डालने दिया। जिस जहाज को उसके ही देश ने दुदकार दिया। क्यूबा के डॉक्टर बेख़ौफ़ होकर जहाज पर सवार यात्रियों का उपचार कर रहे हैं। किसी गॉड के खातिर नही। बल्कि मानवता के लिए। और इसके लिए वहाँ की कम्युनिस्ट समाजवादी सरकार ने बहुत मेहनत की है। कैसे, तो सुनिए फिर।
दुनिया के उत्तरी छोर पर एक देश है क्यूबा। दुनिया में सबसे ज्यादा डाक्टर इसी देश में है। यहां प्रति 70 लोगों के लिये एक डाक्टर है। जैसे भारत में 10,000 लोगों पर एक डॉक्टर है (एमसीआई के अनुसार)। ट्रोपिकल स्टेट (उष्णीय कटिबंध मौसम वाले देश) वाले देशों में जो भी संक्रमित बिमारियां होती है, उनसे निपटने के लिये क्यूबा के डाक्टर सबसे ज्यादा प्रशिक्षित भी होते हैं। क्योंकि यूरोप और अमेरिका में उतनी गर्मी नहीं पड़ती, लिहाजा वहां की बीमारियां गर्म देशों से अलग होती है, इसलिये अनुशंधान भी अलग हैं।
बहरहाल, यहां मेडिकल की पढ़ाई के साथ ही अस्पताल पूरी तरह से निशुल्क है। अमीर हो या गरीब। सबके लिये एक स्कूल है और अस्पताल भी। अब अगर किसी मंत्री या बड़े अधिकारी का बेटा सरकारी स्कूल में ही पढ़ेगा। तो लाजमी है, स्कूल बेहतर ही होगा। उसी तरह जब कारपोरेट अस्पताल ही नहीं होंगे तो जिला अस्पताल और सीएचसी सेंटर मजबूत होंगे। एक और दिलचस्प बात और है इस देश की। यहां इतने मैधावी डाक्टर है कि पैट्रोलियम के बदले इन्हें बेचा जाता है। इसके चलते क्यूबा को कई देशों को प्रत्यक्ष रूप से मुद्रा नही देनी होती।
ये बात सोवियत रूस के सम्राज्य के ढहने से शुरू होती है, 1991 में सोवियत यूनियन के टूट गया, जिसका सीधा असर क्यूबा पर हुआ। रूस को छोडक़र सोवियत यूनियन के लगभग सभी देशों क्यूबा से संबंध खत्म कर लिए। इससे क्यूबा की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। सप्लाई बंद होने से देश में पेट्रोल की किल्लत शुरू हो गई। वहीं, दूसरी तरफ क्यूबा का सहयोगी और पड़ोसी मुल्क वेनेजुएला डॉक्टर्स की कमी से जूझ रहा था। इसी के चलते क्यूबा और वेनेजुएला में पेट्रोलियम पदार्थ के बदले डॉक्टर्स का समझौता हुआ। समझौते के तहत क्यूबा ने करीब 30 हजार डॉक्टर्स वेनेजुएला भेजे, जिनका काम वहां क्लीनिक खोलने से लेकर डॉक्टर्स तैयार करना था। इसके बदले में वेनेजुएला ने करीब तीन साल (2003 से 2006) तक 90 हजार बैरल पेट्रोल की सप्लाई क्यूबा में की। इसके अलावा दुनिया में कहीं भी कोई आपदा आती है तो सबसे पहले पहुंचने वालों में क्यूबा के डाक्टर होते है।
अब क्योंकि उनकी मेडिकल पढ़ाई निशुल्क होती है तो उनके आंखों में लगे चश्मे से मुनाफ दिखता ही नहीं। अलबत्ता, हम क्यूबा से बहुत कुछ सीख सकते हैं। हालांकि स्वास्थ्य और शिक्षा केवल क्यूबा में नहीं, बल्कि दुनिया के 22 देशों में फ्री है। वो देश कौन से हैं, वो आप गूगल में देख सकते हैं। गूगल से ज्यादा अच्छी और प्रमाणिक तथ्य चाहिये तो दो लेखक हैं, एक डॉन फिट्ज और दूसरें हैं गेब्रियल गार्सिया मॉकरवेज। इनकी किताबें पढक़र क्यूबा की हेल्थ पॉलिसी के बारे में जाना जा सकता है। वैसे, क्यूबा ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां पर जन्म से तीन साल तक के बच्चे को हर दिन सुबह और शाम एक एक लीटर दूध सरकार की तरफ से मुफ्त दिया जाता है। ताकि बच्चा तंदुरस्त रहे। स्वास्थ्य विभाग का कर्मचारी हर दिन मिल्क वेन लेकर घर घर दूध दे आते हैं। बहरहाल, क्यूबा को एक लाल सलाम तो बनता ही है।