माले के आह्वान पर "भूख के विरुद्ध भात के लिए" देश भर में बजी थाली







माले के आह्वान पर "भूख के विरुद्ध भात के लिए" देश भर में बजी थाली







लॉक डाउन में दिन बीतने के साथ आम लोगों की जेब में जो थोड़ा बहुत पैसा था वह भी खत्म हो रहा है। लगातार सूचनायें आ रही हैं कि मदद मांगने वाले लोगों की कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही हैं। बहुत से स्थानों पर पुलिस व प्रशासन से भयाक्रांत लोग अपने करीबी मित्रों, सम्बंधियों और मदद में उतरे संगठनों से गुहार कर रहे हैं लेकिन लॉक डाउन के चलते वे भी उनकी मदद करने की हालत में नहीं हैं।


सबसे बुरा हाल गांव-शहर के गरीबों के मुहल्लों-टोलों में है जहां जेबें हमेशा खाली होती हैं। वंचित समुदायों और प्रवासी मजदूरों का हाल मीडिया में हाईलाइट हो रहा है लेकिन सच यही है कि विभिन्न सामाजिक संगठनों, आम जनता और जमीनी राजनीतिक कार्यकर्ताओं के प्रयासों से ही अब तक कुछ ठोस काम इस दिशा में हुआ है। सरकारी घोषणायें कमोबेश प्रचारात्मक ही हैं। हालत और खराब होने लगी है क्योंकि जो अब तक काम चला ले रहे थे उनके भी पैसे खत्म हो रहे हैं, ऊपर से रिपोर्टें मिल रही हैं कि कई जगहों पर किराने वाले महंगा सामान दे रहे हैं। 



विडम्बना तो यह है कि एक वक्त का खाना मांगने के लिए भी सरकार कहीं राशन कार्ड दिखाने को कह रही है, तो कहीं आधार कार्ड। अभी तक किसी अन्य देश से तो ऐसी कोई खबर नहीं आयी है कि वायरस की बीमारी के अलावा लॉक डाउन के कारण भी दर्जनों लोग (सोशल मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार शायद सौ के आस-पास भी हो सकते हैं) की मौत हो गई । 





कई राज्यों से खबर आ रही है कि सरकारी हेल्पलाइनों से मदद नहीं मिल पा रही है। कई बार मदद इतना देर से पहुंचती है कि एक-दो दिन लोग भूखे ही रहते हैं। कई जगह सार्वजनिक भोजन वितरण हो रहा है वहां लाइनें इतनी लम्बी हो जाती हैं कि लोग लम्बा इंतजार करते रहते हैं। इन लाइनों में लगने के लिए जरूरतमंदों को दूर-दूर से भी आना पड़ता है क्योंकि उनके निवास के पास ऐसा प्रबंध नहीं है। आम तौर पर हमारे समाज में किसी की मदद करना खुद को आत्म संतोष और गर्व से भर देता है, लेकिन आज जब खुद ही लाइन में खड़े हैं तो अपने आत्मविश्वास को हिलता हुआ देख रहे हैं।


यदि ठीक से प्रशासनिक तैयारी की जाती और सरकार ठीक काम करती तो नागरिकों के साथ ऐसा नहीं होता। इसमें एक वर्गीय पूर्वाग्रह स्पष्ट दिख रहा है, इसके अलावा साम्प्रदायिक घृणा और विद्वेष बढ़ाने का कारोबार तो तेजी से चल ही रहा है। ऐसे लोगों को समझ लेना चाहिए कि महामारियां वर्ग और सम्प्रदायों में भेद नहीं करतीं और ऐसी हरकतें सभी को कोरोना महामारी के और निकट ले जा रही हैं। बाद के दौर में जिन इलाकों को सील कर दिया गया है उनमें तो गरीब परिवारों की हालत और ज्यादा खराब हो रही है क्योंकि वे गैरसरकारी संगठनों की पहुंच से बाहर हो गये हैं। 





सूरत में फंसे प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा और उन पर पुलिस दमन की जानकारी मिल रही है। बहुत से स्थानों पर ऐसे ही संकट से जूझ रहे लॉक डाउन प्रभावितों की पूरी खबर भी नहीं मिल पा रही। ऐक्टू और माले ने वाट्सऐप व ट्विटर के माध्यम से प्रवासी मजदूरों से संपर्क व मदद करने का एक चैनल बनाया है उसके जरिए हजारों ऐसे लोगों को मदद पहुंची है लेकिन इससे काफी ज्यादा करने की जरूरत है। 


कई लाख मजदूरों की रोजी रोटी अचानक ही छिन गई है, उनमें से बहुत से लोग बिना किसी आय के अपने घरों से दूर फंसे हुए हैं और उनमें से बहुतेरे अपने घर वापस जाने के लिए बेचैन हैं। भूख का दायरा तेजी से बढ़ रहा है और रोजमर्रा के जरूरी सामान की भारी कमी है।”


उन्होंने कहा कि, “इस महामारी का मुकाबला एकता, भाईचारे, तार्किकता, जागरूकता और सही सूचना से करने की जरूरत है लेकिन इसकी जगह घृणा, अफवाह, अंधविश्‍वास और गलत उपचार फैलाया जा रहा है, जो कि इस आपदा से निपटने में बाधा का काम कर रहा है, इस पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए।



इस कार्यक्रम के माध्‍यम से सरकार से कहा गया कि भोजन की गारंटी करो, सबको राशन मिले, कोई वेतन कटौती नहीं, कोई नौकरी का नुकसान नहीं, आश्रय का कोई नुकसान नहीं, सबके लिए सामाजिक सुरक्षा की पक्की व्यवस्था हो, कोरोना महामारी को सांप्रदायिक एजेंडे के रूप में इस्तेमाल करना बंद करो तभी हम COVID-19 से लड़ सकते हैं।


थाली, ताली बजवाई और दिया-मोमबत्ती जलावा दिया। चलिए ठीक है। अब मोदी सरकार की पहली जिम्मेदारी है कि विभिन्न राज्यों में फंसे हुए प्रवासी मजदूरों, उनके गांव में परिवारों और सभी गरीब जरूरतमंदों को लॉकडाउन के दौरान पूरे सम्मान के साथ भोजन एवं आवश्यक वस्तुयें उपलब्ध कराये। 


भाकपा-माले ने प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन के जरिए मांग की है कि इस दिशा में ठोस कदम उठाये जायें और सभी तबकों की विशिष्ट जरूरतों का ध्यान रखा जाए। यह भी मांग की है कि साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ने और तनाव व भेदभाव करने वालों के खिलाफ, अफवाहों और अंधविश्वास फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाय, जैसा कि अभी तक कहीं दिख नहीं रहा। अन्यथा कोरोना वायरस के खिलाफ दुनिया में चल रही जंग में भारत पीछे रह जायेगा और हमारे देश के लिए इसके बुरे परिणाम होंगे। 





किसी की थाली खाली न रहे, की मांग के साथ 12 अप्रैल को विभिन्न राज्यों में कार्यक्रम लिया गया जिसमें आम जनता व जरूरतमंदों ने उचित शारीरिक दूरी व अन्य सावधानियों का ध्यान रखते हुए अपने घरों के दरवाजों पर आ कर हिस्सा लिया। इसके साथ ही सभी से एक दिन के उपवास का आह्वान किया गया। मोदी सरकार से कहा गया कि खाली थालियों को भरा जाय, सभी को राशन-भोजन-ईंधन व जरूरी वस्तुओं की होम डिलीवरी हो तथा एक भी व्यक्ति खुद को वंचित व असुरक्षित महसूस न करे। इस दिन सभी पार्टी कार्यकर्ता उपवास पर रहे।


कई सरकारों को आम लोगों का इस तरह आवाज उठाना रास नहीं आया। हालांकि मोदी जी के थाली-मोमबत्ती-भाषण कार्यक्रम में उन्होंने भी पूरी जान लगा दी थी। लेकिन आज लोग बोल रहे थे कि थोथे भाषण से किसी का पेट नहीं भरता। तमिलनाडु के डिंडिगुल जिला के वसन्त कादिर पालयम गांव में गरीब थाली लेकर घरों के बाहर आये तो तसहीलदार साहब और पुलिस गांव में ही पहुंच गये। लेकिन पूरा गांव ही बाहर आ गया और सभी ने थालियां बजा कर उन्हें अपनी जरूरतें सुनने पर मजबूर कर दिया। बेहतर होता कि जब आ ही गये थे तो कुछ आश्वासन भी देकर जाते। तमिलनाडु व पुदुच्चेरि में विल्लुपुरम समेत कई जगह ग्रामीण गरीब आगे आये। 





कर्नाटक व आन्ध्र प्रदेश के भी कई इलाकों में अपनी मांगों को थाली बजा कर सुनाया गया।


पश्चिम बंगाल में हुगली, उत्तर व दक्षिण 24 परगना, बर्धवान, नदिया, बांकुरा, सिलीगुड़ी, कोलकाता समेत कई जिलों में यह कार्यक्रम हुआ। असम के कुछ जिलों से इसकी खबरें आयी हैं।


राजस्‍थान के उदयपुर, जोधपुर, भीलवाड़ा, चित्‍तौड़गढ़ आदि जिलों में हजारों गरीबों व आदिवासियों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। 


राजधानी दिल्‍ली के कई इलाकों में मजदूरों ने अपनी मांग उठाई। उन्‍होंने पोस्‍टरों पर अपनी मांगे लिख कर सभी को बताई। 


पंजाब के बटाला में पुलिस ने सुबह ही स्‍थानीय समाचार पत्रों में इस कार्यक्रम की खबर पढ़ कर वहां के पार्टी कार्यालय पर धावा बोल दिया और माले के नेताओं को दिन भर थाने में बिठाये रखा। ऑफिस में पुलिस द्वारा तोड़-फोड़ करने की जानकारी भी आई है। 


उड़ीसा के कोरापुट और रायगढ़ा जिलों से करीब तीन दर्जन ग्रामीण आदिवासी इलाकों से थाली प्रदर्शन की सूचना आई है, भुवनेश्‍वर व अन्‍य स्‍थानों पर कार्यकर्ता अनशन में बैठे। 


उत्‍तराखण्‍ड में पार्टी कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों ने ‘भूख के विरुद्ध भोजन के लिए’ आज 12 अप्रैल को अपनी अपनी जगह पर रहते हुए 12 घंटे का “एकदिवसीय अनशन” (सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक) किया। अपने-अपने स्थानों पर लॉकडाउन का पालन करते हुए भाकपा (माले) राज्य सचिव कामरेड राजा बहुगुणा, बहादुर सिंह जंगी, अम्बेडकर मिशन के अध्यक्ष जी आर टम्टा, पीपुल्स फोरम के संयोजक जयकृत कंडवाल, भार्गव चंदोला, विजय शंकर शुक्ला, दीपेंद्र कोहली, इन्द्रेश मैखुरी, के के बोरा, आनन्द सिंह नेगी, के पी चंदोला, गोविंद कफलिया, राजेन्द्र जोशी, ललित मटियाली, मदन मोहन चमोली,


डॉ कैलाश पाण्डेय, गणेश दत्त पाठक, बचन सिंह, उमरदीन, आलमगीर, मोहम्मद यामीन, गुलाम रसूल, कमल जोशी, राधा देवी, हरीश धामी, चार्वाक, उत्तम दास, रामकरण पासवान, राजेन्द्र सिंह बिष्ट, नमिता सरकार आदि के साथ ही तिलपुरी, पीपलपड़ाव, ढिमरी, भूड़ा, चोया, चोरगलिया, रैला, रैखाल, हँसपुर, जौलासाल, बगुआताल,  बिन्दुखत्ता, हल्दूजद्दा, नहर, हथगाड, कलेगा, तपसानाला, नब्बे फिट आदि खत्तों के किसानों,अन्य लोगों व छात्र युवाओं ने बड़ी संख्या में अपनी भागीदारी करते हुए अनशन किया।






बुरी खबर योगी अजय सिंह बिष्ट के उत्तर प्रदेश से आई जहां सीतापुर में भाकपा-माले नेता अर्जुन लाल जी को रात में ही घर से पुलिस गिरफ्तार कर ले गई। हालांकि उत्तर प्रदेश के सोनभद्र, वाराणसी, मिर्जापुर, पीलीभीत, रायबरेली, खीरी, चंदौली, आजमगढ़, देवरिया, गोरखपुर, बलिया और लखनऊ समेत कई जिलों में गरीबों ने घर के आगे आ कर अपनी मांगों को थाली बजा कर सुनाया। 





इस प्रदर्शन के माध्यम से दूर राज्यों में फंसे अपने प्रवासी संबन्धियों को मदद पहुंचाने के लिए अपने राज्य के मुख्यमंत्रियों से मांग की गई। 


बिहार में राशन की मांग पर माले के आह्वान पर हजारों गांवों में थाली बजी।सभी जिलों में गांव व शहर के गरीब घरों के बाहर आये और थाली बजाने के साथ पोस्टरों आदि के माध्यम से अपनी बात कही। दलित – गरीबों, दिहाड़ी मजदूरों व कामकाजी हिस्से ने इसके कार्यक्रम के माध्यम से अपनी बात कही। राजधानी पटना के कई इलाकों में यह प्रभावी रूप में दिखा। इसके जरिए केंद्र व पटना की सरकारों से महज भाषण देने की बजाए तत्काल राशन उपलब्ध कराने की मांग की। थाली पीटने के साथ-साथ माले नेताओं ने एकदिवसीय उपवास का भी कार्यक्रम आयोजित किया।


भाकपा-माले के इस आह्वान को जनता ने जिस मजबूती से समर्थन किया है, उससे साबित होता है कि भूख की समस्या आज सबसे विकराल समस्या बन गई है और सरकारों को इसका तत्काल हल निकालना चाहिए। सुबह से ही भाकपा-माले राज्य कार्यालय में राज्य सचिव कुणाल, ऐपवा की बिहार अध्यक्ष सरोज चौबे और अन्य नेतागण एकदिवसीय अनशन पर बैठे। खेत एवं ग्रामीण मजदूर सभा के कार्यालय में भाकपा-माले के पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेन्द्र झा और ऐपवा की बिहार राज्य सचिव शशि यादव ने अनशन किया. वरिष्ठ माले नेता व अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव राजाराम सिंह, केडी यादव, मीना तिवारी, आर एन ठाकुर, पटना जिला कार्यालय में अमर, ऐक्टू नेता रणविजय कुमार आदि नेताओं ने भी अपनी-अपनी जगहों पर एकदिवसीय उपवास के जरिए केंद्र सरकार से गरीबों के लिए राशन उपलब्ध करवाने की मांग की।


अन्य जिलों में भी पार्टी के नेताओं ने उपवास पर रह जनता के साथ कार्यक्रम में हिस्सा लिया। भोजपुर, अरवल, सिवान, जहानबाद, गया, मुजफ्फरपुर, नवादा, नालंदा, दरभंगा, गोपालगंज, रोहतास, मधुबनी, सहरसा, पूर्णिया, भागलपुर, समस्तीपुर, खगडि़या आदि तमाम जिला मुख्यालयों पर अपने कार्यालयों में माले नेताओं ने एकदिवसीय अनशन किया। 




भोजपुर में विधायक सुदामा प्रसाद, इनौस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज मंजिल, जिला माले सचिव जवाहर लाल सिंह, राजू यादव; सिवान में विधायक सत्यदेव राम, नईमुद्दीन अंसारी, अमरनाथ यादव; अरवल में महानंद; गया में निरंजन कुमार, दरभंगा में वैद्यनाथ यादव, मुजफ्फरपुर में कृष्णमोहन, मसौढ़ी में गोपाल रविदास, रोहतास में पूर्व विधायक अरूण सिंह, कटिहार में महबूब आलम आदि नेताओं ने उपवास कार्यक्रम का नेतृत्व किया।



2 बजे एक साथ पूरे राज्य में माले के थाली बजाओ आह्वान को लागू करते हुए गरीबों व दिहाड़ी मजदूरों ने थाली पीटना आरंभ किया। राजधानी पटना के कई इलाकों में गरीबों ने थाली बजाकर केंद्र व राज्य सरकार को आगाह किया कि वे बिना किसी भेदभाव के सब के लिए राशन का प्रबंध करें।