मोदी राज में प्रधान मंत्री आपदा राहत कोष में बड़ा घोटाला
राइजिंग राहुल की रिपोर्ट
पीएनआरएफ यानी प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष होने के बावजूद पीएम मोदी ने अलग से क्यों पीएम केयर्स फंड बनाया उसकी तस्वीर अब धीरे-धीरे साफ होने लगी है। रिलीफ फंड के पिछले 10 सालों की बैलेंस सीट को चेक करने पर यह और भी खुलकर सामने आ जाती है। और पिछले दो सालों के भीतर उस फंड के साथ की गयी कारगुजारियों ने इसको और स्पष्ट कर दिया है।
प्रधानमंत्री राहत कोष की दस साल की बैलेंस सीट बताती है कि राहत देने के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी ढीले थे। लेकिन नरेंद्र मोदी ने राहत देने की बात दूर उसका गैरकानूनी और बेजा इस्तेमाल करना शुरू कर दिया जो अपराध की श्रेणी में आता है। उन्होंने जनता के ऊपर खर्च करने के लिए दान में मिले पैसे को न केवल बेनामी चीजों में लगाया बल्कि उससे सरकारी लोन चुकता करने जैसा अपराध भी किया। जो अंतत: सीधे-सीधे कॉरपोरेट के लिए मददगार साबित हुआ।
इस पूरे मामले में की गयी छानबीन को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है। इसके पहले हिस्से में हम आपको बताते हैं कि कैसे साल 2017 से ही पीएम मोदी आपदा राहत कोष का पैसा बेनामी चीजों में निवेश करना शुरू कर दिए थे। जिसमें सिर्फ और सिर्फ कोष को घाटा सहना पड़ा। इसके साथ ही उस स्रोत और उसके निवेश के हिसाब की कोई जानकारी भी नहीं दी गयी है।
प्रधानमंत्री राहत कोष की साल 2009 से साल 2019 तक की बैलेंस शीट इसकी वेबसाइट के अबाउट पीएमएनआरएफ के पन्ने पर पड़ी हुई है। यह बैलेंस शीट बताती है कि नरेंद्र मोदी ने साल 2016-17 में कुल 2750 करोड़ रुपये बैंकों के टायर टू बॉन्ड और फिक्स डिपॉजिट में खर्च किए। इसके बाद साल 2017-18 में उन्होंने इसमें से 1000 करोड़ रुपये के बॉन्ड या तो बेच दिए या फिर कहां किसे दिए, इसका कोई हिसाब नहीं है। उन्होंने बेचने का कोई हिसाब नहीं दिया है, लेकिन टायर टू के बॉन्ड का पैसा जरूर कम हो गया है। अलबत्ता साल 2017-18 की बैलेंसशीट यह जरूर दिखाती है कि इस साल 1750 करोड़ रुपये इसी मद में यानी कि बैंकों के टायर टू बॉन्ड और फिक्स डिपॉजिट में लगा हुआ है।
अब आते हैं साल 2018-19 की बैलेंस शीट पर। इस साल बैलेंस शीट में पिछले साल का बैलेंस यानी कि साढ़े सत्रह सौ करोड़ रुपये को साल 2018-19 की बैलेंस शीट में लाया गया है, लेकिन इस साल के बैलेंस को जीरो कर दिया गया है। यानी यह साढ़े सत्रह सौ करोड़ रुपये भी उन्होंने गायब कर दिए। साल 2016-19 में ये पैसे पीएम मोदी ने कहां खर्च किए, इसकी जानकारी बैलेंस शीट में कहीं नहीं है। आपको बता दें टायर टू बॉण्ड एक तरह से बेनामी इन्वेस्टमेंट होते हैं, जिसे बैंक न तो अपने खाते में कहीं दर्ज करते हैं और न ही बैलेंस शीट में दिखाते हैं। यह तो रही बैलेंस शीट की विशुद्ध आर्थिक भाषा में कही गई बात। दिल्ली में आईएएस और लॉ स्टूडेंट्स के लिए कोचिंग चलाने वाले और आर्थिक मामलों के जानकार हिमेश चौधरी बताते हैं कि “टायर टू बांड बैंकों के टायर टू कैपिटल से संबद्ध है।
यह बैंकों की दोयम दर्जे की पूंजी होती है। जोखिम भरा होने के साथ ही इनका मूल्यांकन फिक्स नहीं होता है। हालांकि ब्याज ज्यादा मिलता है लेकिन असुरक्षित निवेश माना जाता है। बैंक अपने दोयम दर्जे की पूंजी को स्टेटमेंट में भी नहीं दिखाते हैं। यह छिपाया जाता है। इनकी वैल्यू भी फिक्स नहीं होती है। यह बैंकों के लिए अनंत काल तक इस्तेमाल के लिए दिया जा सकता है। राहत कोष के पैसे का निवेश में डालना कसी भी रूप में बुद्धिमानी नहीं कही जा सकती है”। यह एक किस्म का सट्टा है। और जनता के किसी पैसे से वह भी दान के पैसे का कम से कम सट्टा या जुआ नहीं खेला जा सकता है। यह अपने आप में न केवल गैरकानूनी है बल्कि अपराध की श्रेणी में आता है।
यानी पीएम मोदी ने यह पैसा, जो कि जनता ने प्रधानमंत्री राहत कोष में दान दिया था, बेनामी चीजों में लगा दिया। चूंकि प्रधानमंत्री राहत कोष को पीएमओ आरटीआई के दायरे के बाहर की चीज बताता है, इसलिए यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि यह पैसा जो कि मुसीबत के मारे लोगों को दिया जाना था, उसे मोदी ने किसे दे दिया। इसके अलावा यह भी जानने का कोई तरीका नहीं है कि इस पैसे में से कितना वापस मिला और कितना डूब गया। आरटीआई कार्यकर्ता असीम तकयार प्रधानमंत्री राहत कोष को मिले दान का हिसाब जानने की कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
हफिंग्टनपोस्ट की एक खबर में उन्होंने बताया है कि जब उन्होंने इसका हिसाब जानने की कोशिश की तो पीएमओ ने उन्हें कहा कि यह सूचना नहीं दी जा सकती क्योंकि यह पब्लिक इन्ट्रेस्ट में नहीं है और इसकी वजह से दान देने वाले की और इस दान से जिन्हें फायदा पहुंचा, उनके जीवन में अनुचित आक्रमण हो सकते हैं। इसके बाद असीम तकयार ने अदालत का रुख किया। मई 2018 में उनकी याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच ने एक खंडित या जिसे कहें कि बंटा हुआ फैसला दिया। इस बेंच के एक जज जस्टिस ए रवींद्र भट ने महसूस किया कि प्रधानमंत्री राहत कोष एक पब्लिक अथॉरिटी है जो कि सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत आती है और इस अधिनियम के तहत इसे असीम तकयार को पूरी सूचना देनी चाहिए। जबकि बेंच के दूसरे जज जस्टिस सुनील गौर का कुछ और मानना था।
जस्टिस सुनील गौर ने कहा कि प्रधानमंत्री राहत कोष पब्लिक अथॉरिटी नहीं है और यह आरटीआई के दायरे में नहीं आती, इसलिए असीम को इसके बारे में सूचनाएं नहीं दी जा सकतीं। दोनों ही जजों ने तब के दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को मामले को तीसरे जज को रेफर करने को कहा। अब इस मामले की सुनवाई 15 जुलाई 2020 में होनी है। मतलब कोर्ट कचेहरी को जो करना होगा, वह तो वे करेंगे ही, लेकिन मोदी को जो हेरफेर करना था, वह वो इस राहत कोष के साथ पहले ही कर चुके हैं।
अब आते हैं इस इन्वेस्टिगेशन के दूसरे हिस्से पर। प्रधानमंत्री राहत कोष की वेबसाइट पर साल 2009 से लेकर साल 2019 तक की बैलेंस शीट और ऑडिटिंग उपलब्ध है जिसे कोई भी चेक कर सकता है। यानी कोई चाहे तो वहां जाकर देख सकता है कि मनमोहन सिंह ने दान के पैसों को कहां खर्च किया और नरेंद्र मोदी ने इन पैसों को कहां खर्च किया। जनता के दान के पैसे की ऑडिटिंग कैग को करनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। अलबत्ता प्रधानमंत्री राहत कोष के हिसाब-किताब का जिम्मा सार्क एंड एसोसिएट्स चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को दिया गया है, जिसका ऑफिस उत्तर प्रदेश के नोएडा के सेक्टर 78 में है। यह जिम्मा इस फर्म को किस सन् में दिया गया और इसके लिए इस फर्म को कितना भुगतान किया जाता है, इसकी भी जानकारी प्रधानमंत्री राहत कोष की वेबसाइट पर नहीं है।
इसलिए हम यह दावा नहीं कर सकते कि प्रधानमंत्री राहत कोष की वेबसाइट पर जनता के दान के पैसे का जितना भी हिसाब किताब दिया गया है, सारा इसी फर्म ने बनाया है। 2009-10 में मनमोहन सिंह सरकार ने तकरीबन 1200 करोड़ के आस-पास की रकम सुनामी राहत में खर्च की। लोगों को अस्पताल और दवाइयों का खर्च उठाने के लिए दी, बरसात और बाढ़ से राहत के लिए दी, सांप्रदायिक दंगों में बरबाद लोगों के पुनर्वास के लिए दी, अप्राकृतिक कारणों से मरे लोगों के परिजनों को दी और उड़ीसा में आए तूफान से बरबाद हुए लोगों की मदद करने के लिए दी। इस साल सरकार को हम लोगों ने यानी कि जनता ने कुल तकरीबन साढ़े सैंतीस करोड़ रुपये दान में दिए थे और सवा सोलह सौ करोड़ रुपये इसके पास पिछला बैलेंस था।
बाकी के काफी पैसे फिक्स डिपॉजिट से आए ब्याज से मिले। साल 2010-11 में लेह में बादल फटने पर सहायता दी गई, लोगों को अस्पताल का खर्च दिया गया, बाढ़ से राहत दी गई, सांप्रदायिक दंगों में बरबाद हुए लोगों का पुनर्वास किया गया, बंगाल, उड़ीसा में आए तूफान और सुनामी से राहत में दिया गया, मल्टीमीडिया रिसर्च सेंटर बनाया गया और जम्मू कश्मीर में कंप्यूटर लैब और लाइब्रेरी बनाई गई।
इसमें भी तकरीबन सवा 18 सौ करोड़ रुपये खर्च किए गए। इस साल जनता ने तकरीबन साढ़े 28 करोड़ रुपये दान में दिए, बाकी के पैसे मनमोहन सिंह ने इन्वेस्टमेंट से निकाले। साल 2011-12 में भी इन्हीं चीजों में यह रकम खर्च की गई और इस साल इसमें बाल बंधु योजना को जोड़ा गया। इस साल पौने तेरह सौ करोड़ रुपये आपदा राहत में दिए गए और जनता का दान सवा बाइस करोड़ रुपये के आसपास रहा। यहां भी बाकी का डिफरेंस इन्वेस्टमेंट से मिले ब्याज और दूसरी चीजों से पूरा किया गया।
साल 2012-13 में भी इन्हीं सब मदों में राहत के लिए पैसे दिए गए और इस साल सिक्किम में भूकंप, महाराष्ट्र में रेप के बाद मारी गई तीन बहनें और केरल में आए तूफान में दी गई राहत से जुड़ी हैं। इस साल कुल सवा 18 सौ करोड़ रुपये आपदा राहत में खर्च किए गए और जनता की ओर से तकरीबन साढ़े 17 करोड़ रुपये दान में मिले।
साल 2013-14 में भी राहत देने के मद यही सब रहे और इस साल राहत कार्यों में लगभग साढ़े 29 करोड़ रुपये खर्च किए गए। हालांकि इस साल आश्चर्यजनक तरीके से जनता ने अपना दान बढ़ा दिया और इस साल दान में भारत सरकार को तकरीबन 376 करोड़ रुपये मिले। जनता से मिले दान और राहत के लिए दिए गए पैसों का जो बड़ा डिफरेंस है, यह भी मनमोहन सिंह ने इन्वेस्टमेंट से मिले पैसों से पूरा किया।
साल 2014-15 में राहत के मद यही सब रहे, और इस साल इसमें जम्मू कश्मीर में आई बाढ़ के अलावा सांप्रदायिक और एथिनिक हिंसा यानी कि क्षेत्रवादी हिंसा से प्रताड़ित लोगों को मदद दी गई। इस साल मदद में कुल तकरीबन 372 करोड़ रुपये दिए गए और जनता ने भारत सरकार को साठ करोड़ रुपये के आसपास दान में दिए। यहां तक तो नरेंद्र मोदी मनमोहन सिंह की नीति पर चले, लेकिन इसके बाद इनका गुजराती खेल शुरू हो गया।
साल 2016-17 में राहत कार्यों के मद तो यही रहे, बस इसमें जम्मू कश्मीर में आई बाढ़ के लिए 294 करोड़ रुपये अलग से मेंशन किए गए हैं। इस साल कुल मदद 204 करोड़ रुपयों की दिखाई गई है और जनता ने दान में तकरीबन 245 करोड़ रुपये दिए। यानी कि जितने पैसे दान में मिले, उतना खर्च नहीं किया गया, उल्टे ये पैसे और पहले के इन्वेस्टमेंट से रिलीफ फंड को जो पैसा मिला, उसमें से साढ़े 27 सौ करोड़ रुपये बेनामी बांडों में लगा दिए। जो अपने आप में अपराध है।
साल 2017-18 में बाढ़, भूकंप और प्राकृतिक आपदा, कम्युनल और एथिनिक वॉयलेंस, मेडिकल हेल्प और साइक्लोन के पीड़ितों को कुल 18 सौ करोड़ दिए गए। यह वही साल है, जब पीएम मोदी ने दान के मिले पैसे को बेनामी बांडों में लगाया था, उसे बेचना तो शुरू किया, लेकिन बेचने से मिली रकम कहीं भी बैलेंस शीट में नहीं दिख रही है। इस साल जनता ने दान में 236 करोड़ रुपये दिए। प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष में सबसे बड़ी आपराधिक हेर फेर हमें साल 2018-19 में मिली। इसे आप भी राहत कोष की वेबसाइट पर जाकर देख सकते हैं। इस साल नरेंद्र मोदी की सरकार थी और उन्होंने इस साल हम सबके दान के पैसे में से 13 सौ करोड़ रुपये राज्यों का उधार चुकता करने में लगा डाले और आपदा राहत के नाम पर उन्होंने कुल सोलह करोड़ रुपये इंडिविजुअल मेडिकल और हॉस्पिटल खर्च के लिए लोगों को दिए हैं।
क्या कोई है ये सवाल करने वाला कि हमने जो पैसा मुसीबत के मारे लोगों की मदद के लिए दिया था, मोदी उससे उधार क्यों चुकता कर रहे हैं? सरकार जो उधार लेती है, क्या वह राष्ट्रीय आपदा है जिसे चुकाने के लिए मोदी जी आपदा राहत कोष से पैसे दे रहे हैं? आपकी राजनीतिक प्रतिबद्धता किसी भी पार्टी के साथ हो सकता है लेकिन आप इस बात से तो सहमत ही होंगे कि आपके खून पसीने की कमाई अगर कहीं लगे तो उसी काम के लिए लगे, जिस काम के लिए उसे आपने दिए हैं।
अब चलते हैं इस इन्वेस्टिगेशन के तीसरे और आखिरी हिस्से की ओर। प्रधानमंत्री राहत कोष की वेबसाइट खोलते ही एक ग्राफ सामने आता है जो यह बताता है कि पिछले दस सालों में कितना पैसा इस कोष में था और कितना खर्च किया गया। साल 2009-10 में प्रधानमंत्री राहत कोष में जितना पैसा आया, उसका तकरीबन आधा ही राहत के कामों में लगाया गया, बाकी के पैसों के बारे में बैलेंस शीट बताती है कि मनमोहन सिंह ने उसे इन्वेस्ट कर दिया।
इसके अगले साल यानी कि 2010-11 में लेह में भयंकर बादल फटा था। यह ग्राफ दिखाता है कि इस खर्चे को सरकार ने साल 2011-12 में और जितना इसके पास था, उसका एक चौथाई ही राहत कार्यों में लगाया। बाकी के पैसों के बारे में बैलेंस शीट बताती है कि इसे भी इन्वेस्ट कर दिया गया, ताकि राहत कोष का पैसा और बढ़े। साल 2011-12 में मनमोहन सिंह सरकार को जितना मिला, उसका तकरीबन अस्सी फीसद इसने राहत कार्यों में लगाया। साल 2012-13 में आपदा राहत के नाम पर मनमोहन सिंह सरकार ने कुल रकम का आधे से कुछ कम पैसा आपदा राहत में लगाया।
इससे अगले साल, यानी कि साल 2013-14 तकरीबन एक तिहाई राहत कार्यों में लगाया गया, बाकी की रकम इन्वेस्ट कर दी गई। नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार के पहले साल यानी कि साल 2015-16 में राहत कार्यों के नाम पर अलबत्ता थोड़ा ठीक खर्च किया और इस साल सरकार ने राहत कोष में उपलब्ध कुल पैसों का तकरीबन 75 फीसद राहत कार्यों के लिए दिया। लेकिन इससे अगले साल यानी साल 2017-18 से नरेंद्र मोदी ने बेहद शर्मनाक राह पकड़ी और राहत कोष में उपलब्ध कुल पैसों का एक चौथाई ही खर्च किया।
ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें ये पैसे बेनामी बांडों में लगाने थे, जैसा कि इस साल की बैलेंस शीट हमें बताती है। इससे अगला साल पिछले साल से भी ज्यादा शर्मनाक रहा और मोदी जी ने अपने राहत कोष में मिले कुल पैसों का एक चौथाई से भी कम खर्च किया। लेकिन पिछले दस सालों में सबसे शर्मनाक रहा साल 2018-19, जब मोदी जी ने कुल पैसों का पांचवा हिस्सा भी राहत कार्यों में नहीं लगाया।
आपको याद होगा कि इस साल केरल में भयंकर बाढ़ आई थी। केरल मदद मांगता रह गया, लेकिन मोदी जी ने मदद देने से इन्कार तो किया ही, साथ ही ऐसा भी इंतजाम किया कि केरल को कहीं बाहर यानी दूसरे देशों से भी मदद न मिलने पाए। इन हालात में कोई यह अच्छे से समझ सकता है कि नरेंद्र मोदी ने पीएम केयर्स फंड इसलिए खोला, क्योंकि प्रधानमंत्री राहत कोष के साथ उन्होंने जिस तरह की आपराधिक हरकत की है, वह लाख कोशिशों के बाद भी छुपायी नहीं जा सकती थी।
पीएम केयर्स फंड की प्रधानमंत्री राहत कोष की तरह कोई वेबसाइट भी नहीं है और न ही मोदी जी ने यह बताया है कि इसकी ऑडिटिंग कैग करेगा या सार्क एसोसिएट्स की तरह कोई और फर्म करेगी। और तो और, बेहद शातिराना तरीके से नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री ने पीएम केयर्स के उद्योगपतियों और उनके सीएसआर फंड को आरक्षित कर लिया है।
ऐसा इस तरह से किया गया है कि केंद्र सरकार के एक आदेश के मुताबिक राज्यों के मुख्यमत्री राहत कोषों में दिया जाने वाला पैसा सीएसआर में नहीं माना जाएगा। पीएम केयर्स फंड के बारे में कुल जमा एक पन्ने की जानकारी दी गई है, जिसमें इसके हिसाब किताब की बात कहीं भी दर्ज नहीं है। ऐसे में यह बात भी बहुत अच्छे से समझी जा सकती है कि नरेंद्र मोदी ने कोरोना के आते ही जो पीएम केयर्स फंड बनाया है, वह क्यों बनाया है। ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी इस तरह से हम सभी से पैसे ठगने के लिए कोरोना जैसी ही किसी आपदा का इंतजार कर रहे थे।
(जन चौक से साभार)