हजारों मील पैदल चलने वाला मजदूर पूंजीवाद की कब्र खोद सकता है
शिवाजी राय
जब इस व्यवस्था ने मजदूरों को पच्चीस तीस वर्षों से लगातार देस के कोने कोने से पलायन करके ट्रेड सेंटरों पर पहुचने को मजबूर किया और सारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था से लेकर के सभी स्थापित कल कारखानों को उजाड़ा और नष्ट किया था तब अपने क्षेत्र से उजड़ कर जाने वालें लोगों को या नेताओं को ये समझदारी क्यों नहीं आई कि ये व्यवस्था यदि उजड़ जाती है तो हमारे ये लोग दूसरी जगह पहुँच करके नई व्यवस्था में कैसे समायोजित हो पाएंगे। आखिर वे इसके खिलाफ लड़े क्यों नहीं? और आज फिर जब उजड़ा हुआ समाज यह निर्णय लेता है कि हम वापस नहीं आएंगे तो उसका आधार क्या है? यह सवाल भी यक्ष प्रश्न की तरह हमारे सामने खड़ा है।
(लेखक किसान मजदूर संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष हैं)