खाद्य संप्रभुता का संवैधानिक अधिकार ही खाद्य असुरक्षा का हल है
"जीवन मुनाफे से ऊपर है", मानव सभ्यता का यही आधार बने
जियोंगयोल किम और प्रमेश पोखरेल
हमें अपने भोजन के लिए कॉरपोरेशन और बड़े कृषि व्यवसाय पर निर्भर रहना बंद करना होगा। कोरोना महामारी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि क्यों मानव समाज अपने पिछले किये हुए दुष्कर्मों का सामना करता है। कोरोना वायरस ने मानव जाति को अपने घुटनों पर ला दिया है और उसके कई दोषों को उजागर कर दिया है।
जैसे कि वैज्ञानिक खोजों के जरिए महामारी में इस वायरस के वैक्सीन (टीका) की खोज करने में लगे हुए बहुत से देशों ने लॉकडाउन लगा दिया है। जिसमें लोगों को अपने घरों पर रहने की जरूरत है। मगर झुग्गी - झोपड़ियों में रहने वाले लोग पानी की कमी के कारण सरकार के द्वारा बताए गए सोशल डीस्टेंसिंग और सफाई बनाने जैसी मांगों का पालन नहीं कर सकते हैं। लॉकडाउन ने शहरों में रहने वाले करोड़ों दैनिक मजदूरों से उनकी रोजी छीन कर कई परिवारों को भुखमरी के कगार पर ला के खड़ा कर दिया है।
गांवों में रहने वाले लोग भी संघर्ष कर रहे हैं। जैसा कि हम किसान अपने खेतों में काम करना जारी रखे हैं। किसानों को अपनी फसल बेचने में बहुत ही समस्या हो रही है। सरकारों ने स्थानीय बाजारों को बंद करके हमारी फसलों को खेतों में सड़ने के लिए मजबूर कर दिया है। छोटे मछुआरों को भी नुकसान उठाना पड़ा है। यहां तक कि अगर वे समुद्र, झीलों या नदियों में मछली पकड़ने में सफल भी हो जाए तो उन्हें बाजार तक अपनी मछली पहुंचाने और बेचने में मुश्किल हो रही है। ये पशुपालकों और दूध का कारोबार करने वाले परिवारों के लिए भी लागू होता है। छोटे पैमाने पर पशुपालक किसान और घरेलू पशुओं वाले किसान परिवार भी पशुओं के लिए पर्याप्त चारा खोजने के लिए चिंतित हैं।
हालांकि, स्थानीय लघु-स्तरीय खाद्य उत्पादन का नाश वास्तव में दर्शाता है कि बड़े पैमाने पर खाद्य उद्योग, जो कार्य करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भर करते हैं, श्रम आपूर्ति और अंतर्राष्ट्रीय वितरण पर प्रतिबंधों के कारण ज्यादा प्रभावित हुए हैं। वास्तव में इस महामारी ने बड़े अंतर्राष्ट्रीय खाद्य उद्योगों पर निर्भर कई देशों की कमजोरियों को उजागर किया है। दशकों से सरकारों ने छोटे खेतों और खाद्य उत्पादकों जिन्हें कॉरपोरेट कृषि उद्योगों ने मार्केट से बाहर कर दिया है, की रक्षा करने के लिए बहुत कम काम किया है।
आज वे देश सिर्फ मूर्त बने देख रहे हैं जो खाद्य पदार्थों के लिए सिर्फ कुछ प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर हो गए थे। जिन्होंने स्थानीय उत्पादकों को अपनी उपज को कम कीमतों पर बेचने के लिए मजबूर किया, ताकि कॉरपोरेट कंपनियां अपने लाभ को बढ़ा सकें। वे चुप रहे जबकि प्रमाण दिखाते रहे कि बड़े कृषि व्यवसाय छोटे पैमाने पर पारंपरिक खेती की तुलना में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग के लिए अधिक जिम्मेदार हैं।
स्थानीय किसान बाजारों पर सुपर मार्कीटों को रास्ता दे दिया गया। बड़े व्यवसायों और उनके कमोडिटी ट्रेडिंग भागीदारों ने एग्रोकोलॉजी और खाद्य संप्रभुता के सभी सिद्धांतों की अवहेलना करते हुए, वैश्विक खाद्य प्रणाली पर नियंत्रण कर लिया।औद्योगिक खाद्य उत्पादन के आक्रामक विस्तार ने मानव स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाया है। रसायनों के अधिक प्रयोग और खाद्य पदार्थों के अति-प्रसंस्करण के अलावा, जो उन्हें कम पौष्टिक और अधिक हानिकारक बनाता है, के परिणामस्वरूप जेनैटिक रोगों में भी एक बड़ी वृद्धि हुई है। जेनैटिक रोग वे रोग हैं जो जानवरों से मनुष्यों में फैलते हैं जैसे कि कोरोना वायरस।
आज, दुनिया भर के देशों में खाद्य सुरक्षा बड़े औद्योगिक खाद्य उत्पादन से जुड़ी हुई है। उदाहरण के लिए, सिंगापुर अपने भोजन का लगभग 90 प्रतिशत आयात करता है; इराक, जो मध्य पूर्व का ब्रेडबैकेट हुआ करता था, 80 प्रतिशत से अधिक भोजन विदेशों से प्राप्त करता है।अंतरराष्ट्रीय खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं पर इस निर्भरता के खतरे अब सामने आ रहे हैं। क्योंकि दुनिया भर के समुदाय भूख की संभावना का सामना कर रहे हैं। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पहले ही दुनिया भर में "भोजन की कमी" के जोखिम की चेतावनी दे दी है। कोरोना महामारी खाद्य संप्रभुता के महत्व और जरूरत को पहचानने के लिए जोर दे रही है, जोकि लोगों को अपने भोजन और कृषि प्रणालियों को निर्धारित करने का अधिकार और स्वस्थ एवं सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त भोजन का उत्पादन और उपभोग करने के उनका अधिकार को कायम रखता है।
नेपाल, माली, वेनेजुएला और कई अन्य देशों ने खाद्य संप्रभुता को अपने लोगों के संवैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है। अन्य राज्यों को भी इसका पालन करना चाहिए। लोगों की खाद्य संप्रभुता किसी भी आर्थिक आघात के खिलाफ सबसे अच्छा बचाव है।
यह लोगों की सबसे जरूरी आवश्यकताओं को संबोधित करता है। यह मूल रूप से लोगों की सबसे महत्वपूर्ण जरूरतों जो कि अपने परिवारों के लिए स्वस्थ, पौष्टिक और जलवायु के अनुकूल भोजन को पूरा करता है। यह आस - पड़ोस में उगाया जाता है और उगाने वाला और खाने वाला दोनों ही इन भोजनों से परिचित होते हैं। भोजन के संबंध में एग्रोइकोलॉजी और स्थानीयकृत कृषि उत्पादन हमारे प्राकृतिक परिवेश के साथ सह-अस्तित्व में हैं। यह हानिकारक कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों से दूर रहते हैं।
एक मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था के कठोर प्रतिस्पर्धी तर्क के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को परिभाषित करना बंद कर देना चाहिए। एकजुटता के मानवीय सिद्धांतों को आधार बना कर वैश्विक व्यापार नीतियों और नेटवर्कों का निर्धारण करना चाहिए। उन देशों के लिए जहां जलवायु या अन्य परिस्थितियों के कारण स्थानीय उत्पादन असंभव या गंभीर रूप से चुनौतीपूर्ण है, व्यापार को सहयोग के भरोसे पर करना चाहिए ना कि प्रतिस्पर्धा के आधार पर। इसीलिए सालों से, दुनिया भर में "ला वाया कैंपसीना" जैसे किसान आंदोलनों ने अभियान चलाया और कृषि को सभी मुक्त व्यापार वार्ता से बाहर रखने की मांग की है। जीवन को मुनाफे से ऊपर रखने वाला कोई भी आदेश मानव सभ्यता का आधार बनना चाहिए। हम अब ऐसी दुनिया में नहीं रह रहे हैं, लेकिन हम निश्चित रूप से ऐसा कर सकते हैं।
जैसा कि आज दुनिया एक महामारी के पतन के कारण पिस रही है, अब समय आ गया है कि एक समान, न्यायपूर्ण और उदार समाज का निर्माण शुरू किया जाए जो खाद्य संप्रभुता और एकजुटता को गले लगाता है।