कोरोना और अर्थव्यवस्था का संकट-पूरी तरह फेल मोदी सरकार

कोरोना संकट से निपटने और अर्थ व्यवस्था को संभालने में पूरी तरह असफल सिद्ध हुई है मोदी सरकार


पुरुषोत्तम शर्मा


दो माह से प्रवासी मजदूर भूखे पैदल अपने गांवों को लौट रहे हैं। यह सिलसिला अभी पूरे जून तक चलने की संभावना है। पर कारपोरेट को सारे संशाधन लुटाने वाली सरकार के लिए तो यह मजदूरों का देश के लिए त्याग है।


देश की अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट के बाद भी उसे 5 ट्रिलियन करने की ढपोरशंखी घोषणा करने वाले नरेंद्र मोदी अर्थव्यवस्था के मामले में अब तक के सबसे नक्कारा प्रधान मंत्री साबित हुए हैं। RBI ने खुद माना कि पिछले साल जीडीपी ग्रोथ 4.5 प्रतिशत थी जो इस साल नकारात्मक यानी सून्य से नीचे होगी।


फिर भी देश की डूबती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की नीतियों को बनाने के लिए जिम्मेदार RBI गवर्नर, वित्तमंत्री, प्रधान मंत्री कोई अर्थशास्त्री नहीं हैं।


देश में कोरोना संकट अब धीरे धीरे अपने चरम की ओर है। कोरोना से निपटने को मोदी सरकार द्वारा बनाई गई 11 कमेटियों के प्रमखों में कोई स्वास्थ्य विशेषज्ञ नहीं है।


अप्रैल में मोदी सरकार की इसी टीम ने कहा था कि 16 मई से देश में कोरोना के कोई नए मामले नहीं आएंगे। जबकि स्वास्थ्य विशेषज्ञ बता रहे हैं कि भारत में कोरोना जून-जुलाई में अपने चरम पर होगा। हमारी तैयारियां आज भी फेल हैं।


केंद्र सरकार ने 'आत्मनिर्भर बनो' का नारा देकर देश की जनता को उसके अपने और राज्यों के हाल पर छोड़ दिया है।


आज तक हर संकट को सांप्रदायिक विभाजन की राजनीति, पाकिस्तान और चीन सीमा पर तनाव पैदा कर टालने का जो रास्ता मोदी सरकार आजमाती रही है, कोरोना और अर्थव्यवस्था के संकट ने उसके इस फिट फार्मूले को फेल कर दिया है। आज मोदी सरकार कोरोना और अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर ऐसी भूल भुलैया में फंस गई है, जहां से देश को बाहर निकलना उसके बूते की बात नहीं।