कोरोना के बहाने उद्योगों के हर अपराध को माफी का मोदी पैकेज

कोरोना के बहाने उद्योगों के हर अपराध को माफी का मोदी पैकेज


पुरुषोत्तम शर्मा


प्रवासी मजदूरों पर तीखी आलोचना झेलने के बाद अपने पांचवे व अंतिम पैकेज एपिसोड में वित्त मंत्री ने पूरे पैकेज को फिर दोहराते हुए मनरेगा मद में अतिरिक्त 40 हजार करोड़ रुपए डालने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि इससे 3 करोड़ अतिरिक्त कार्य दिवस सृजित होंगे। जिससे प्रवासी मजदूरों को गांव में ही रोजगार मिलेगा। वित्त मंत्री गणित में इतनी कमजोर हैं या देश को मूर्ख बना रही हैं? अगर 30 करोड़ ग्रामीण मजदूर जिनमें प्रवासी भी होंगे, मनरेगा में काम करेंगे तो 40 हजार करोड़ रुपए में उन्हें मात्र 10 दिन का ही काम मिल पाएगा। जिससे उनकी कुल इनकम मात्र 2 हजार रुपए होगी।


इसके बाद वित्त मंत्री ने घोषणा की कि अब कानून में बदलाव कर उद्योगों द्वारा की जा रही अपराधिक कार्यवाहियों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया जाएगा।


एमएसएमई को आगामी एक साल तक दिवालिया नहीं किया जा सकेगा। किसी कम्पनी को दिवालिया घोषित करने के लिए बनाए गए नियम एक लाख की डूबी रकम को करोड़ की रकम में बदल दिया गया है। यानी एक करोड़ से कम डूबी रकम पर कोई उद्योग दिवालिया नहीं घोषित होगा। उद्योगों को शिकायतों के बाद होने वाले निरिक्षणों से भी छूट दी जा रही है।


तमाम सरकारी सार्वजनिक क्षेत्र की लिस्ट बना कर उसको बेचा जाएगा। देश में सिर्फ एक ही सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम बचाया जाएगा। नीलामी के बाद भी जो सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र बिकने से बच जाएगा उसमें भी प्राइवेट कंपनियों को मौका दिया जाएगा। कंपनियों का आपस में विलय करना भी आसान होगा।


राज्य अब रिजर्व बैंक से अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत के बजाए 5 प्रतिशत तक ऋण ले पाएंगे। सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र पर विभागों व संस्थानों का जीएसटी व अन्य बकाया लगभग 5 लाख करोड़ का भुगतान सरकार व सार्वजनिक क्षेत्र कब करेंगे इसका कोई जवाब नहीं नहीं मिला।


हमारा ही नहीं देश के अर्थशास्त्रियों का भी मानना है कि मोदी सरकार के 20 लाख करोड़ के कोरोना आर्थिक पैकेज में असल में देने के लिए मात्र 3.21 लाख करोड़ ही हैं। बाकी लगभग 16.79 लाख करोड़ या तो रूटीन बजट की पेकेजिंग है या ऋण बांटने के लिए रखा हुआ पैसा है। वह ऐसा ऋण मद का पैसा है जिस पर लेने वाला उद्यमी और बैंक दोनों में से कोई भी जोखिम उठाने को तैयार नहीं हैं।


इस आर्थिक पैकेज से देश के 70 प्रतिशत जरूरत मंदों को कुछ भी ऐसा नहीं मिला है जिसके बल पर वे कोरोना संकट का मुकाबला कर सकें। कोरोना संकट से पूर्व ही हमारी अर्थव्यवस्था लगभग 4.20 लाख करोड़ के वित्तीय घाटे से जूझ रही थी। कोरोना संकट ने इसे और भी गहरा दिया है। इस संकट से निबटने के कारपोरेट लूट के जो रास्ते मोदी सरकार अपना रही है, वह भारत की अर्थव्यवस्था को और भी गहरे संकट में धकेलने जा रही है।


इस संकट का पूरा बोझ देश के गरीबों पर लादने के षडयंत्रों के खिलाफ बड़ी जन गोलबन्दी के अवसर हमारे सामने भी मौजूद हैं। कोरोना संकट से निपटने में भारत से लेकर अमरीका तक पूंजीवाद की पूर्ण विफलता, और समाजवादी सार्वजनिक आधारभूत राज्य ढांचों के महत्व ने हमारे सामने भी नई दुनिया के रास्ते खोले हैं। हमें भी पूंजीवाद के खिलाफ जन विद्रोह के अवसर के रूप में इस मौके को देखना चाहिए।