उत्तराखंड में उद्यानीकरण की हकीकत-1
चारु तिवारी
बज्यूला, ग्वालदम, डुमकोट, ओड़ा, लोध, दूनागिरी, जलना, बिनसर, गौलपालड़ी, सानी उड्यार, बेरीनाग, डोल, लोहाघाट, झगतोला, कौसानी, स्याहीदेवी, चकोड़ी, छीनापानी, लैंसडाउन, देहरादून आदि में चाय लगाई गई। पहले ये अंग्रेजों के पास थे बाद में ‘फ्री सिम्पल रियासतो’ के पास चले गये। इनके अलग-अलग मालिक हो गये। इन सब बागीचों के मालिकों की खासियत यह रही कि इन्होंने अपने बगीचों के साथ लोगों को फलदार पेड़ लगाने के लिये प्रेरित किया। गांव वालों को निःशुल्क फलदार पेड़ बांटे। यही वजह है कि उत्तराखंड में कई गांवों में हमें छोटे-छोटे बगीचों की पुरानी संस्कृति देखने को मिल जाती है। पहाड़ में उद्यानीकरण की इतिहास की इन बातों को जिक्र आगे उद्यानीकरण की हालत को समझने में सहायक होगा। इसलिये संक्षिप्त में उसका इतिहास जानना जरूरी है। उससे सीखना भी।