कोरोना संकट के बीच उत्तराखंड में सरकार बेच रही सरकारी अस्पताल

उत्तराखण्ड में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को बचाने और सुदृढ करने के लिए यह सड़कों पर उतरने का समय है


पुरुषोत्तम शर्मा


कोरोना संकट के इस काल में जब स्वास्थ्य क्षेत्र में बचा मात्र 20 प्रतिशत सरकारी क्षेत्र के अस्पताल ही अपनी जर्जर हालात के बावजूद आम लोगों की एक उम्मीद अभी भी बने हैं। जब स्वास्थ्य क्षेत्र के 80 प्रतिशत निजी अस्पताल कोरोना के बीमारों को लेने से ही इनकार कर रहे हैं या लूट के बड़े अड्डे बनकर उभरे हैं। ठीक इस संकट की घड़ी में उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार ने नैनीताल जिले के रामनगर स्थित संयुक्त अस्पताल को एक निजी कंपनी को सौंप कर आम लोगों को स्वास्थ्य सुविधा के दायरे से बाहर करने का कदम उठा लिया है। कोरोना जैसे विश्व व्यापी संकट ने दिखा दिया है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और सार्वजनिक वितरण प्रणाली ही दुनियां के गरीबों और आम लोगों के लिए संकट के समय सबसे कारगर संस्थाएं साबित हुई हैं। पर भाजपा तो हमारे देश में इन संस्थाओं को मिटाने पर ही तुली है। उत्तराखण्ड में रामनगर संयुक्त अस्पताल का निजीकरण का मामला उत्तराखण्ड में आम जन के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को बचाने और सुदृढ करने के लिए सड़कों पर उतरने का मुद्दा है। उत्तराखण्ड की तमाम आंदोलनकारी ताकतों को पूरी शक्ति के साथ इसके विरोध में उतारना चाहिए और सरकार को इस कदम से पीछे हटने पर मजबूर करना चाहिए। अगर यह नहीं हुआ तो उत्तराखण्ड में कुछ भी बचा नहीं रहेगा। क्योंकि इसके बाद सभी जिला और बेस अस्पतालों को निजी हाथों में देने का निर्णय भाजपा सरकारें ले चुकी हैं।