कारपोरेट सैन्यवादी हिंदूराष्ट्र की अवधारणा लोकतंत्र और संविधान पर खतरा

कारपोरेट सैन्यवादी हिंदूराष्ट्र की अवधारणा लोकतंत्र और संविधान पर खतरा


पुरुषोत्तम शर्मा



आज आजादी का 74वां दिवस है। यह मौका इस बात पर मनन करने का है, कि हजारों शहादतों और अनेकों कुर्बानियों को देकर हमारे बुजुर्ग जिस आजादी, संविधान और लोकतंत्र को हमें हस्तांतरित कर के गए, हमने उसकी कितनी हिफाजत की, हमने उसे कितना समृद्ध किया?


इन चौहत्तर वर्षों में आज जब हम देश की सूरत देखते हैं तो वह डरावनी लगती है। जिस संविधान और लोकतंत्र की रक्षा की शपथ लेकर हमारे आज के सत्ताधारी सत्ता पर काविज हैं, उसी संविधान और लोकतंत्र की रक्षा की आवाजें उन्हें डरावनी लगती हैं।


जिन संवैधानिक संस्थाओं की रक्षा का दायित्व उनके ऊपर था, एक-एक कर उन सभी संवैधानिक संस्थाओं को उन्होंने पंगु कर सत्ताधारियों का चाकर बना दिया है। लोकतंत्र, मजबूत और मुखर विपक्ष जिसकी आत्मा होती है, उसकी आवाज को खत्म करना आज की सत्ता का प्रमुख एजेंडा बना हुआ है। शिक्षित और बुद्धि का इस्तेमाल करने वाले लोग, उत्पीड़ितों और मजलूमों की आवाज उठाने वाले लोग अब देशद्रोही बताये जाने लगे हैं।


जिन मुगलों और अंग्रेजों ने हमें गुलाम बनाया, जिस 60 साल के कांग्रेस शासन को आज के सत्ताधारी कोसते नहीं थकते, उन तीनों दौर में स्थापित और निर्मित राष्ट्रीय धरोहरों और संस्थानों को बेचकर आज के सत्ताधारी मौज कर रहे हैं। अगले 5 साल के लिए यह सरकार अगर सत्ता में और आ गई, तो इस देश के पास बेचने के लिए मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों और पटेल की मूर्ति के अलावा कुछ नहीं बचेगा।


इस लिए आज जब प्रधान मंत्री लाल किले से कह रहे थे कि इस सदी का तीसरा दशक हमारे सपनों के पूरा होने का दशक है, तो उनका इशारा साफ था। भारत को एक ऐसा हिंदू राष्ट्र बनाना, जिसके सारे संशाधनों पर कारपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा हो। एक कारपोरेट सैन्यवादी हिंदू राष्ट्र। जहां आम लोग कारपोरेट और उनकी सैन्यवादी सत्ता के रहमोकरम पर जिएं।


इस लिए आज आजादी के मूल्यों, आजादी से प्राप्त संविधान और लोकतंत्र को बचाने की शपथ, देश के संशाधनों को नीलाम करने से बचाने की शपथ लेने का दिन है। देश वासी इस शपथ को लेकर देश, लोकतंत्र, संविधान की रक्षा के लिए आगे आएंगे। यह भरोषा किया जाना चाहिए। यही आजादी के मतवालों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।