निश्चिंत रहें! एक दिन जीत तुम्हारे सपनों की ही होगी!






निश्चिंत रहें! एक दिन जीत तुम्हारे सपनों की ही होगी!



 

पुरुषोत्तम शर्मा

 

19 अगस्त 1942 को "भारत छोड़ो आंदोलन" के आह्वान पर देघाट, जिला अल्मोड़ा में पुलिस की गोली से शहादत दिए अमर शहीद हीरामणी बडोला और हरिकृष्ण उप्रेती को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि!



 

अमर शहीदों, जब आजादी के संघर्ष में पूरा देश सड़कों पर था। आप देघाट में शहादत दे रहे थे, कांग्रेस ने सभी प्रांतीय सरकारों से इस्तीफा दे दिया था। तब सावरकर की हिंदू महासभा, जिन्ना की मुश्लिम लीग के साथ मिलकर देश के तीन प्रान्तों में साझा सरकार चलाते हुए अंग्रेजों का साथ दे रही थी।



 

जब देश के लोग आजादी के लिए खून दे रहे थे, वही हिन्दू महासभा, आरएसएस और मुश्लिम लीग अंग्रेजों की शह पर देश के साम्प्रदायिक विभाजन और दंगों की रणनीति बनाने में लगे हुए थे।



 

हमें दुख है कि आज अंग्रजों का साथ देने वाले उन्हीं गद्दारों के राजनीतिक वंशजों का तुम्हारे सम्मान में आयोजित समारोह पर कब्जा है। हमें पता है जब वे तुम्हारे स्मारक पर फूल चढ़ा रहे होंगे, तुम्हारी आत्मा खून के आंसू रो रही होगी।



 

पर माफ करना! तुम्हारे सपनों का भारत अभी नहीं बन पाया है। अभी तो सत्ता पर काविज सावरकर और हेगडेवार के राजनीतिक वंशज अंग्रेजों से भी बढ़कर राज्य दमन की राह बना रहे हैं। देश के सभी संशाधनों को नीलाम करने पर लगे हुए हैं। संवैधानिक संस्थाओं को ध्वस्त करने पर लगे हुए हैं।



 

तुम्हारी शहादत से प्राप्त आजादी, लोकतंत्र और संविधान पर सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग ही हमले कर रहे हैं। इस आजादी, लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए लोग तुम्हारी राह पर चल कर आज भी संघर्ष के मैदान में हैं। जेल जा रहे हैं, गोली खा रहे हैं।



 

हम तुमसे वादा करते हैं, इस संघर्ष की अगली कतार में बने रहेंगे। हर तरह के दमन का सामना करते हुए भी हम तुम्हारी शहादत से प्राप्त आजादी, लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौच्छावर करने को तैयार रहेंगे।



 

आप निश्चिंत रहें, एक दिन जीत तुम्हारे सपनों की ही होगी।