बयान || आलोचना का अर्थ अवमानना नहीं है.
आलोचना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अदालत की अवमानना थोप कर खामोश नहीं किया जा सकता.
दो ट्वीटों के लिए अधिवक्ता प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी करार देने के उच्चतम न्यायालय के फैसले से हम अत्याधिक क्षुब्ध हैं. स्वतंत्र अभिव्यक्ति और उचित आलोचना का गला घोंटने वाला यह फैसला अदालत की कार्यप्रणाली और न्याय के शासन के संदर्भ में वास्तविक चिंताओं को गहराने वाला है.
हम समझते हैं कि न्यायपालिका का लोगों का सम्मान पाने का यदि कोई निश्चित रास्ता है तो वह अपनी अवमानना की शक्तियों का प्रयोग करना नहीं है बल्कि स्वतंत्र, निर्भीक और वस्तुपरक हो कर जनता के मानवाधिकार और नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा करना है.
बहुत सारे महत्वपूर्ण संस्थान, भारत के संविधान के बजाय शासक सत्ता के प्रति वफादारी प्रदर्शित करने की चिंताजनक प्रवृत्ति दर्शा रहे हैं. अपने स्वतंत्र मत का उपयोग करते हुए, संवैधानिक दायित्व का निर्वहन करने और भय और पक्षपात से ग्रसित हुए बिना, निर्णय लेने के बजाय वे कार्यपालिका के हाथों की कठपुतली जैसे कार्य कर रहे हैं.
हम प्रशांत भूषण के प्रति एकजुटता जाहिर करते हैं.
दीपंकर भट्टाचार्य
महासचिव,भाकपा(माले)
केंद्रीय कमेटी,भाकपा(माले) की ओर से